अभय पाण्डेय/ पटना: पिछले कुछ महीनों में बिहार सरकार ने बालू माफियाओं पर जो कानूनी कोड़े बरसाये हैं वो कई मायनों में सराहनीय है। मसलन इस कोशिश से अवैध खनन, भ्रष्टाचार और कर चोरी जैसी घटनाओं पर तो लगाम लगेंगे ही साथ हीं पर्यावरण को होने वाली भारी क्षति से भी राहत मिलेगी, जिसका दूरगामी लाभ मिलेगा। लेकिन अगर इसका दूसरा पहलू देखा जाए तो सरकार के इस कदम से प्रदेश में कई समस्याएं भी उत्पन्न हो गई हैं जो अपने आप में बेहद गंभीर हैं और इसका कोई निदान सरकार के पास नहीं है।
बालू खनन पर रोक के बाद निर्माणाधीन इमारतों का काम रुक-सा गया है। कुछ लोग जो सक्षम हैं वो महंगी कीमत देकर बालू की खरीद कर रहे हैं ताकि निर्माण कार्य बाधित ना हो। बता दें कि कार्रवाई से पहले एक ट्रक बालू की कीमत जहां 20 हजार रुपये थी आज उसी बालू के एक ट्रक के लिए लोगों को 30 से 35 हजार रुपए तक भरने पड़ रहे हैं। कई जगहों पर तो 35 हजार में भी बालू उपलब्ध नहीं है। नतीजतन कई जगह चल रहे निर्माण कार्य या तो बंद हैं या बंदी के कगार पर हैं। कंस्ट्रक्शन के लिए मिक्स्ड कंक्रीट उपलब्ध कराने वाली एजेंसियों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। अभी राजधानी पटना में 1 बोरा बालू की किम्मत 125 रुपए तक पहुँच गया है।
वहीं समाज के एक बड़े तबके को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। आज जब पूरा देश त्योहारों के इस मौसम का लुत्फ उठा रहा है बालू खनन पर रोक के बाद कई घरों में सही तरीके से दो वक्त चूल्हे भी नहीं जल पा रहे । दरअसल ये तबका उन दिहाड़ी मजदूरों और कारीगरों का है जो बालू खनन या फिर भवन निर्माण के सहारे अपने परिवार का भरण-पोषण करते रहे हैं। अब रोक के बाद उनके सामने बेरोजगारी की समस्या खड़ी हो गई है। कई लोगों ने तो यहां तक मान लिया है कि अब यहां गुजर-बसर संभव नहीं। ऐसे में दूसरे प्रदेश में जाकर रोजगार की तलाश करना ही इनके लिए एकमात्र विकल्प है।
हाल ही में प्रदेश की सत्ता में हुए बड़े बदलाव के बाद सरकार ने सबसे पहले बालू माफियाओं के खिलाफ मोर्चा खोला है। जिसके बाद पुलिस-प्रशासन ने एक तरह से इसके उपर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। आए दिन छापेमारी और गिरफ्तारी का सिलसिला जारी है जिसमें अवैध ही सही पेट पालने के लिए बालू माफियाओं के इशारे पर काम करनेवाले कई मजदूरों को पुलिस ने सलाखों के पीछे धकेल दिया है।