नई दिल्ली- केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने वर्षो से खेल संघों की कुर्सी पर जमे पदाधिकारियों को चेता दिया है कि ऐसा नहीं चलेगा, पारदर्शिता लानी होगी। भारत में इस समय आयोजित हो रहे अंडर-17 फीफा विश्व कप, कॉमनवेल्थ-एशियन गेम्स की तैयारियों और खेलो इंडिया पर अभिषेक त्रिपाठी ने उनसे बातचीत की।
सवाल- खेल मंत्रालय का फोकस खेलो इंडिया पर ही जाकर क्यों टिक गया है?
जवाब- अब तक स्कूलों में एक या दो दिन स्पोर्ट्स डे आयोजित होता था और उसके बाद खेलों को लेकर बच्चों की तैयारी खत्म हो जाती थी। कुछ स्कूल चैंपियनशिप भी होती हैं, उनका स्तर भी सबको पता है। खेलो इंडिया स्कूल गेम्स के आने से जो स्कूल में अपने खेल का चैंपियन होगा उसके अंदर यह प्रेरणा जागेगी कि उसे देश के सभी स्कूलों में चैंपियन बनना है। 17 साल से कम उम्र का बच्चा जब इसमें खेलकर चैंपियन बनेगा तो खेल संघों, कॉपरेरेट्स और देश की जनता की उस पर नजर होगी। इन खेलों का सीधा प्रसारण होगा, जिससे उन बच्चों को भी लगेगा कि वे दुनिया के सामने चमक रहे हैं। इसमें देश भर से 1000 खिलाड़ी चुने जाएंगे, जिन्हें आठ साल तक प्रत्येक वर्ष पांच-पांच लाख रुपये दिए जाएंगे। इनको प्रशिक्षण देने के लिए अलग-अलग सेंटर तैयार करेंगे। ये सरकारी, निजी और एनजीओ भी हो सकते हैं। अगर जरूरत पड़ी तो बेहतर सुविधा दिलाने के लिए इन सेंटरों में सरकार धन भी खर्च करेगी।
सवाल- क्या कॉलेज गेम्स कराने की भी तैयारी है?
जवाब- जी, 2018 में हम सबसे पहला खेलो इंडिया कॉलेज गेम्स कराएंगे। हम खेलों को स्कूल स्तर से कॉलेज स्तर तक लेकर जाएंगे। यही नहीं अगले साल से हम स्कूल गेम्स में अन्य देशों के बच्चों को भी बुलाएंगे, जिससे हमारे बच्चे उनके साथ खेलकर खुद की स्थिति का पता लगा सकें। इससे हमारे बच्चों को प्रतिद्वंद्विता के स्तर का भी पता चलेगा।
सवाल- 2020 में ओलंपिक है। क्या टॉप्स से एथलीटों को फायदा मिल रहा है?
जवाब- हमें सबसे पहले एक कड़ी बनानी होगी। खेलो इंडिया स्कूल गेम्स, कॉलेज गेम्स और टारगेट ओलंपिक पोडियम इसका हिस्सा हैं। देश के शीर्ष-200 खिलाड़ियों की तैयारी अब प्रोफेशनल्स करेंगे। जब मैं खेलता था तो इसको लेकर लाल फीताशाही का आलम था। अगर आपको फंड लेना हो, कुछ काम हो तो दफ्तर के चक्कर काटने पड़ते थे। अब ऐसा नहीं होगा। अब हमारे शीर्ष खिलाड़ियों का पूरा कार्यक्रम प्रोफेशनल बनाएंगे। ये वे लोग होंगे जो खेल चुके हैं, जिन्हें खेलों की समझ है। ये हर खिलाड़ी की एयर टिकट, होटल बुकिंग, लोकल ट्रांसपोटेशन, मनोचिकित्सक, मसाजर तक का ख्याल रखेंगे। प्रोफेशनल इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि किस एथलीट को अपनी रैंकिंग के लिए कौन सा टूर्नामेंट खेलना ज्यादा बेहतर रहेगा। अपना खेल सुधारने के लिए उन्हें कहां अभ्यास करना चाहिए।
सवाल– क्या टास्क फोर्स की सारी सिफारिशों को मान लिया गया है?
जवाब- यह काम हो चुका है। प्रधानमंत्री ने ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन के लिए टास्क फोर्स बनाई थी। उनका यह विजन न्यू इंडिया और यंग इंडिया के लिए है। उनका मानना है कि अगर हम युवाओं को संगठित मौके नहीं देंगे तो प्रतिभाएं उभरकर नहीं आ पाएंगी। भारतीय खेल प्राधिकरण इस पर काम कर रहा है। आगे इससे प्रोफेशनल्स जुड़ जाएंगे। इंपावरमेंट स्टेयरिंग कमेटी के गठन का भी काम चल रहा है।
सवाल– कई मंत्री आए और गए, लेकिन स्पोर्ट्स बिल, एंटी डोपिंग बिल और स्पोर्ट्स फ्रॉड बिल पर कुछ खास नहीं हुआ?
जवाब- एंटी डोपिंग बिल पर बनी समिति काम कर रही है। हमारी तरफ से उनको साफ कहा गया है कि जो आपको सही लगता है वह करें। हमारे लिए खिलाड़ी, कोच और प्रशंसक महत्वपूर्ण हैं। प्रशंसक तभी खुश होगा जब उसका एथलीट बिना धोखाधड़ी करके पदक जीते। जहां तक स्पोर्ट्स कोड की बात है तो कुछ लोगों को यह गलतफहमी है कि खेल राज्य का विषय है। संविधान में भले ही खेल राज्य की लिस्ट में है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उस पर केंद्र सरकार का वर्चस्व नहीं। जो स्टेट के रूल हैं या स्टेट के सबजेक्ट हैं, जब तक खेल राज्य में हो रहे हैं तब तक वो राज्य का विषय हैं। जैसे ही कोई टीम या खिलाड़ी तिरंगे के लिए खेलता है उस पर केंद्र के नियम लागू होंगे। कई लोग खेल संघों में वर्षो से जमे हैं। वे चाहे सीधे या किसी के जरिये खेलों को चला रहे हों, उनको ये समझ लेना चाहिए कि अब यह नहीं चलेगा। उन्हें पारदर्शिता लानी ही होगी। उन सबको हटना ही होगा।
सवाल- अंडर-17 फीफा विश्व कप के आयोजन को कैसे देखते हैं?
जवाब- भारत खेलों में स्लीपिंग जाइंट है। जिस दिन जगेगा पूरे विश्व को पता चलेगा। फुटबॉल में हम भले ही शुरुआती मुकाबले हारे, लेकिन पहली बार किसी विश्व कप में खेलते हुए जिस तरह हमने प्रदर्शन किया वह शानदार है। स्टेडियम में जिस तरह का जोश है उससे लगता है कि हम अगले दस साल में इस खेल में बहुत आगे होंगे। हम फीफा से यही कह रहे हैं कि 2019 अंडर-20 विश्व कप की मेजबानी हमें दें। हमारे अंडर-17 के खिलाड़ी और कुछ नए खिलाड़ी तब तक इसके लिए और तैयार हो जाएंगे। अगले दस साल के अंदर इसका असर हमारी सीनियर टीम पर भी पड़ेगा।