मुंबई : कपिल शर्मा की बहुचर्चित फिल्म फिरंगी रिलीज़ हो गई है। फिल्म की कहानी स्वतंत्रता से पहले साल 1921 के भारत की है। यह कम बजट की पीरियड फिल्म है जिसकी लव स्टोरी बेहद कमजोर और थकी हुई है और इसमें देशप्रेम का भी थोड़ा बहुत टच है।
‘फिरंगी’ कहानी है पंजाब के एक छोटे से गांव की, जहां पर मंगा (कपिल शर्मा) अपने पूरे कूनबे के साथ रह रहा है। अपने दोस्त की शादी में जब वह दूसरे गांव पहुंचता है तो वहां पर उसके दिल पर छा जाती है सरगी( इशिता दत्ता)। संयोग से इसी बीच बेरोजगार मंगे को अपने हुनर के कारण अर्दली का काम मिल जाता है। इस बीच राजा गांव वालों की जमीन हड़पने की साजिश करता है और इस सब में दोषी हो जाता है मंगा।
इस फिल्म का पूरा प्लॉट फिल्म लगान से उधार लिया हुआ लगता है। भुवन (आमिर खान) की तरह मंगा (कपिल शर्मा) को भी गांववालों के एक समूह का नेतृत्व करते हुए अंग्रेज अधिकारी मार्क डेनियल (एडवर्ड सोनेनब्लिक जो लगान के कैप्टन रसल की नकल है) को चैलेंज करता है। इसमें उसकी मदद करती है रहम दिल श्यामली ( मोनिका गिल, लगान के कैप्टन रसल की बहन एलिजाबेथ की तरह) इशिता दत्ता फिल्म में सर्गी का किरदार निभाती हैं जो लगान की गौरी यानी ग्रेसी सिंह के किरदार से प्रभावित है। अंग्रेज अधिकारी मार्क आर्थिक लाभ के लिए जबरन सर्गी के गांव को खाली करवाना चाहता है।
इस फिल्म के लगान से प्रेरित होने की बात को अगर नजरअंदाज भी कर दें तब भी यह बेहद जरूरी हो जाता है कि एक पीरियड फिल्म एक ऐसे स्केल पर बनाया जाए जिसमें थोड़ी बहुत ही सही प्रामाणिकता हो। फिरंगी में ऐसा कुछ नहीं है। पूरी फिल्म में दिखाए गए सभी गांव एक जैसे ही दिखते हैं और पूरी फिल्म में आपको वही 15 लोग हर जगह घूमते-फिरते नजर आते हैं। फिल्म में किरदारों द्वारा पहने गए कपड़े और उनके बोलने का तरीका सही नहीं है। ब्रिटिश किरदार निभा रहे लोग अमेरिकन एक्सेंट में बात कर रहे हैं जबकि लंदन से वापस आई भारत की राजकुमारी (मोनिका गिल) के कपड़े और बात करने का तरीका अंग्रेजों की तुलना में कुछ ज्यादा ही अंग्रेज है। वह अपने भारतीय सहयोगियों के साथ अंग्रेजी में बात करती है जबकि ब्रिटिश सहयोगियों के साथ हिंदी में। दुष्ट भारतीय राजा (कुमुद मिश्रा) न तो फनी है और न ही डरावना।
अभिनय की अगर बात की जाए तो कपिल शर्मा का अभिनय सपाट रहा। उन्हें अगर आगे भी फ़िल्में करनी है तो अपने अभिनय पर ध्यान देना जरूरी है। स्टेज पर परफॉर्मेंस देना और कैमरा के आगे अभिनय की बारीकियों को पेश करना यह दोनों ही अलहदा पेशा है। राजा के रूप में कुमुद मिश्रा फ़िल्म पर पूरी तरह छाए रहे। हर एक सीन में उन्होंने बारीकियों से काम किया। जो फ़िल्म को एक अलग मुकाम पर ले जाता है।
इशिता दत्ता के हिस्से संवाद जरूर कम आए मगर उन्होंने पूरी फ़िल्म पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। इनामुल हक राजेश शर्मा और अंजन श्रीवास्तव जैसे दमदार अभिनेता भी अपने-अपने किरदारों में जान फूंकने में कामयाब रहे।
निर्देशक राजीव ढींगरा अपने सारे ही विभागों में अव्वल दर्जे से पास होते हैं मगर, इसके साथ ही अगर वह कपिल शर्मा से परफॉर्मेंस निकालने में कामयाब हो जाते साथ ही फ़िल्म की लंबाई 20 मिनट से कम कर देते तो फ़िल्म एक अलग आयाम पर होती। इन 2 कारणों से एक शानदार फ़िल्म औसत फ़िल्म में बदल गई।
हैरानी की बात यह है कि स्टैंडअप कॉमेडी के बादशाह कपिल शर्मा अपने शो में तो कमाल का परफॉर्म कर जाते हैं मगर जहां बात अभिनय की आती है तब वहां पर बुरी तरह से मार खाते हैं। ‘फिरंगी’ एक उदाहरण है इस बात का की फ़िल्म निर्माण एक टीम वर्क है और इस टीम में एक भी कमजोर खिलाड़ी होगा तो पूरी टीम हार जाती है।
एक बात साफ है। अपनी दूसरी फिल्म के जरिए कपिल शर्मा पूरी तरह से इस बात को साबित करने में लगे हैं कि वह अपने कॉमिडी टैलंट के बल पर फिल्मों में स्थापित होना नहीं चाहते हैं। हालांकि एक सफल कमीडियन के लिए यह एक साहसिक कदम कहा जाएगा कि वह दूसरी शैली में भी हाथ आजमाएं, लेकिन सवाल यह है कि क्या कपिल शर्मा के फैन्स इसके लिए तैयार हैं और क्या वह इस चीज को प्रभावकारी तरीके से कर सकते हैं? शायद नहीं, क्योंकि पूरी फिल्म में उनके चेहरे पर एक जैसा एक्सप्रेशन ही रहता है।
फ़िल्म का संगीत अच्छा है। कैमरा वर्क कमाल का है। एडिटिंग पर थोड़ा सा और काम किया जाना था। प्रोडक्शन बेहतरीन है। कुल मिलाकर ‘फिरंगी’ एक औसत फ़िल्म है। अगर आप कपिल शर्मा के फैन हैं तो आप यह फ़िल्म देख सकते हैं।