नई दिल्ली- भारत में शुरू से ही स्टील बनाने वाली कंपनियां बढ़े दामों पर माल बेचती रही हैं। इस स्टील पर निर्भर उद्योग यह भी आरोप लगा रहे हैं कि बड़ी स्टील कंपनियां कार्टेल बनाकर अपने दाम तय करती हैं। उनकी यह कीमत लागत मूल्य से बहुत अधिक रहती है।
महंगाई की मार से बचने के लिए कई स्टील उपभोक्ता फर्मे चीन और कोरिया जैसे देशों से कच्चा लोहा (रॉ मटीरियल) खरीद रहे थे। इससे उनकी उत्पादन लागत नियंत्रण में रहती थी। बाहर से कच्चा माल आने का प्रभाव स्टील उत्पाद कंपनियों पर भी बना हुआ था। वे भी दाम बढ़ाने से पहले विदेश से आ रहे स्टील के दाम पर नजर रखती थीं। लेकिन वर्ष 2016 से सरकारी नीतियां लगातार बदल रही हैं। सरकार ने उपभोक्ताओं की जगह स्टील उत्पादकों को संरक्षण देना शुरू कर दिया है। असमंजस यह है कि भारत के सबसे बड़ा निर्यातक होने के बावजूद यहां पर बढ़े हुए लोहे के दाम विदेश से बहुत ज्यादा हैं।
सबसे पहले सरकार ने संरक्षण देने के लिए फ्लैट स्टील उत्पादों पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगा दी। इससे आयातित उत्पादों की पोर्ट लागत में 30-35 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो गई। उसके बाद सरकार ने लांग प्रोडक्ट्स पर न्यूनतम आयात कीमत लागू कर दी। यह उत्पादकों के वास्तिवक मूल्य से लगभग दोगुना था। इसलिए विदेश से लांग प्रोडक्ट मंगवाना भी असंभव हो गया। इसके चलते यहां के स्टील उपभोक्ताओं को भारतीय मिलों पर निर्भर होना पड़ा। यहां की स्टील कंपनियों ने मनमाने दाम लेकर स्टील उपभोक्ताओं को बेचा।
ज्यादातर स्टील ऑटो, कलपुर्जे, हार्डवेयर, हैंडटूल, साइकिल, सिलाई मशीन, कंस्ट्रक्शन, फास्टनर व एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स में लगता है। स्टील पर सीमाशुल्क और एंटी डंपिंग ड्यूटी मिलाकर लगभग 50 प्रतिशत बैठते हैं। यह बहुत अधिक है, जबकि फिनिश्ड गुड्स पर कस्टम ड्यूटी पांच से बीस प्रतिशत है। ऐसे में भारतीय बाजार में विदेश से कच्चे माल की जगह निर्मित माल लाना फायदे का सौदा है। इससे मेक इन इंडिया की ओर स्टील उद्यमियों का रुझान कम हो रहा है।
लाखों छोटे कारोबारी संकट में: जिंदल
उद्योग से जुड़े संगठन के अध्यक्ष बदीश जिंदल के मुताबिक सरकार कुछ बड़े घरानों को संरक्षण देने के लिए लाखों छोटे कारोबारियों को संकट में डाल रही है। ऐसे में स्टील आयात पर सभी तरह के प्रतिबंध खत्म किए जाएं। इससे स्टील उपभोक्ता देश ही नहीं, विदेश में भी मेक इन इंडिया का लोहा मनवा सकें। अर्पण इंटरनेशनल के एमडी उमेश कुमार नारंग के मुताबिक स्टील से जुड़ी इंडस्ट्री के लिए लागत निकाल पाना ही बेहद मुश्किल है। आए दिन दामों में उठापठक से एडवांस ऑर्डर लेने की प्रक्रिया खतरे में है। जिन दामों पर ऑर्डर बुक किए जाते हैं, उनके एकदम बदलने से रिवाइज ऑर्डर मुश्किल हो जाते हैं।
विदेशी कंपनियां पैर पसार रहीं: गोयल
किंग एक्सपोर्ट के एमडी मदन गोयल के मुताबिक यह बेहद चिंता का विषय है। रॉ मटीरियल पर एंटी डंपिंग को हटाया जाना चाहिए। निर्यात में हम दामों के अंतर से बुरी तरह से पिछड़ रहे हैं। ग्लोबल मार्केट के साथ-साथ भारतीय बाजार में फिनिश्ड गुड्स पर डयूटी कम होने से विदेशी कंपनियां पैर पसार रही हैं।