नई दिल्ली – केंद्र सरकार ने सरकारी नियंत्रण वाले बैंकों का कायाकल्प करने के लिए अभी तक का सबसे बड़ा वित्तीय पैकेज देने का एलान तो कर दिया लेकिन इस योजना की राह में सबसे बड़ी अड़चन कुछ बैंक ही बने हुए हैं। सरकार की तरफ से लगातार दी जा रही मदद के बावजूद कुछ ऐसे बैंक हैं जिनकी माली हालात जस की तस बनी हुई है।
वित्त मंत्रालय का अपना अध्ययन बताता है कि इंडियन ओवरसीज बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया पांच ऐसे बैंक है जो बैंकिंग सुधारों को पीछे ढकेल सकते हैं। इन बैंकों में फंसे कर्जे (एनपीए) का स्तर ज्यादा होने के साथ ही इनकी पूंजी पर्याप्तता अनुपात की स्थिति भी खस्ता हाल है।
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक इन बैंकों को सरकार की तरफ से वित्तीय पैकेज का हिस्सा तभी मिलेगा जब इनकी तरफ से यह साबित किया जाएगा कि उनके वित्तीय प्रदर्शन में अब मजबूती आएगी। अभी इन बैंकों की जैसी स्थिति है उसे देखते हुए तो वे वित्तीय पैकेज के तहत मिलने वाली किसी भी मदद का फायदा नहीं उठा सकते हैं। मसलन, इनके मौजूदा प्रदर्शन को देखते हुए कोई भी निवेशक इनमें शायद ही पैसा लगाना चाहे। ऐसे में इनमें सरकार की हिस्सेदारी बेचने की योजना भी सफल नहीं हो सकती हैं।
साथ ही बांड्स जारी कर पूंजी जुटाने के लिए भी इन बैंकों को नाकों चने चबाने पड़ेंगे। ये पांचों बैंकों को अभी तत्काल सरकार की तरफ से अतिरिक्त पूंजी की दरकार है। आरबीआइ के नियम के मुताबिक सभी बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात (सीएआर) न्यूनतम 12 फीसद होनी चाहिए। यह इसलिए तय की गई है कि किसी आपात स्थिति में अगर बैंक किसी वित्तीय मुसीबत में फंस जाए तो उसके जमाकर्ताओं के हितों को सुरक्षित रखा जा सके।
वित्त मंत्रालय के ताजे आंकड़े के मुताबिक इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का यह अनुपात 11 फीसद है जबकि यूनाइटेड, यूको और सेंट्रल बैंक का सीएआर 10 फीसद है। पिछले पांच वर्षो से इन सभी बैंकों को केंद्र सरकार से सीएआर का स्तर बनाये रखने के लिए अतिरिक्त राशि दी जा रही है। लेकिन एनपीए पर लगाम नहीं लग पाने की वजह से इन्हें हर वर्ष भारी भरकम राशि अर्जित लाभ से निकालनी पड़ रही है। इस वजह से ये पूंजी पर्याप्ता अनुपात को बनाये रखने में असफल हो रहे हैं। ऐसे में पिछले हफ्ते सरकार की तरफ से 2.11 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज से बैंकों की हालत सुधर पाएगी या नहीं, यह बहुत कुछ उक्त बैंकों के भावी प्रदर्शन पर निर्भर करेगा।
वित्तीय क्षेत्र के जानकार मान रहे हैं कि हालात निराशाजनक है। अब यूको बैंक का ही उदाहरण लें। इसे अगले दो वर्षो में अपनी सीएआर के स्तर को बनाये रखने के लिए 7200 करोड़ रुपये की दरकार होगी। इस वर्ष सरकार कुछ राशि इसे देगी लेकिन वित्तीय स्थिति में भारी सुधार के बगैर अगले वर्ष बड़ी राशि उपलब्ध कराना मुश्किल होगा। कमोबेश यही स्थिति इस सूची में शामिल दूसरे बैंकों की भी है।
सरकार की तरफ से पिछले हफ्ते सरकारी बैंकों के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया गया है। इसमें से 1.35 लाख करोड़ रुपये के बांड्स इन बैंकों के लिए जारी किये जाएंगे। तकरीबन 18 हजार रुपये आम बजट से मुहैया कराया जाएगा। शेष 58 हजार करोड़ रुपये की राशि सरकारी बैंकों में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी बेच कर जुटाने की योजना है।