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फुटबॉल की किक से छू लिया आसमां

रांची/ एजेंसी।
झारखंड की उपराजधानी दुमका से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर है गादी कोरैया पंचायत का लतापहाड़ी गांव। गांव के अंतिम छोर पर कदाम डुंगरी पहाड़ी की तलहटी में एक गरीब किसान प्रधान मरांडी और फूलमुनी सोरेन के खपरैल घर में जन्मी लाडली सुमित्रा मरांडी भारतीय महिला फुटबॉल टीम की खिलाड़ी बनकर जॉर्डन, फ्रांस और पाकिस्तान जैसे देशों में हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल टूनार्मेंट में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया है। वहीं, आज कड़ी मेहनत के दम पर 50 फुटबॉलर के रूप में सपना साकार करते हुए आसमां छू लिया है। आदिवासी बाहुल्य लतापहाड़ी अब भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तसर रही है। ऐसे में अपने एक पुत्र और पुत्री की जिंदगी संवारने की तमन्ना रखने वाले पिता प्रधान मरांडी और पांचवीं तक पढ़ी मां फूलमुनी ने तमाम संघर्ष कर अपने पुत्र व पुत्री को न सिर्फ बेहतर शिक्षा देने के लिए कड़ी मशक्कत की, बल्कि जरूरत पड़ी तो बेटी सुमित्रा के भारतीय टीम में चयन होने के बाद विदेश भेजने के लिए गाय-बैल तक बेच दिया। जमीन बंधक रख ऋण लिया और ग्रामीणों से भी सहयोग लेकर बेटी को अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर बनाने का जो सपना देखा था वह साकार हो गया। आज समूचे गांव को सुमित्र और उसके माता-पिता पर गर्व है। प्रतिभा की चमक बिखेरी सुमित्रा भारतीय टीम में स्टॉपर (डिफेंडर) के रूप में जलवा दिखा चुकी हैं।

वर्ष 2014 में पाकिस्तान में हुए सैफ कप में भारतीय महिला टीम ने गोल्ड मेडल हासिल किया था। इस टीम में सुमित्र भी शामिल थी। उम्दा खेल की वजह से स्पोर्ट्स कोटे में सुमित्रा को एसएसबी (सशस्त्र सीमा बल) में इसी साल नौकरी मिली है। फिलहाल वह सिलिगुड़ी में पदास्थापित हैं और एसएसबी सेंट्रल टीम की खिलाड़ी है।
खिलाड़ी बनने का सफर वर्ष 2008 में स्कूल में हजारीबाग में चल रहे फुटबॉल प्रशिक्षण केंद्र के लिए खिलाड़ियों के चयन की प्रक्रिया शुरू हुई तो उसमें सुमित्रा को जगह मिली और इसके बाद वह संत किरण स्कूल हजारीबाग की छात्र बन गई और फुटबॉल खिलाड़ी बनने के लिए प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। सुमित्रा ने बताया कि वर्ष 2009 में उसका राष्ट्रीय कैंप के लिए चयन हुआ। वर्ष 2010 में उत्तराखंड में अंडर-16 फुटबॉल फेडरेशन में शामिल हुई और इसी साल भारतीय टीम में चुन ली गई और जॉर्डन खेलने गई। 2012 में फ्रांस में स्कूली वर्ल्ड कप खेलने गई। पुरुष खिलाड़ियों के सानिध्य में सीखी खेल की बारीकी सुमित्रा जिस गांव में रहती है वहां के कई ग्रामीणों में फुटबॉल खेलने की नैसर्गिक है पर यहां कोई महिलाओं की टीम नहीं है। गांव के कई युवाओं की पहचान फुटबॉलर के रूप में जिला व राज्य स्तर पर है। गांव के मांझी हड़ाम दशमत हेंब्रम भी अपने जमाने के अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी रह चुके हैं। बुद्धिलाल किस्कू, सुफल हेंब्रम, राजेश हेंब्रम, किस्टू सोरेन समेत कई ऐसे नाम हैं जिनकी पहचान फुटबॉल खिलाड़ी के तौर पर है। इन्हीं खिलाड़ियों के सानिध्य में सुमित्रा के फुटबॉल खेलने का जुनून परवान चढ़ा।

गांव के बाहर नीम टुंडी (फुटबॉल मैदान) में अपने भाई के साथ सुरेश मरांडी के साथ सुबह चार बजे मैदान पहुंच कर खेलने का अभ्यास करती और दिन में संत जोसेफ स्कूल गुहियाजोरी में पढ़ाई करती। पुरुष टीम के साथ सुमित्र का फुटबॉल खेलना कुछ ग्रामीणों को पसंद नहीं था, लेकिन मां-पिता की सहमति और मांझी हड़ाम दशमत हेंब्रम का मार्गदर्शन से सुमित्र आगे बढ़ती चली गई। स्कूल में भी सुमित्र ने इमानुवेल सोरेन, पौलुस कुजूर और कमरुद्दीन के मार्गदर्शन में फुटबॉल की बारीकी सीखी।

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