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युवा मोदी को गढ़ने वाले पॉलिटिकल गुरु ‘वकील साहब’ की कहानी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली में गुरुवार को जब लक्ष्मण राव ईनामदार शताब्दी समारोह में पहुंचे, तो वे नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र के पहले दिन व्रत में थे। इन नौ दिनों में वे सिर्फ नींबू पानी पीते हैं। मोदी के लिए यह अपने पहले पॉलिटिकल मेंटर के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करने का अपना विधान था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्किल में ईनामदार को वकील साहब के निकनेम से जाना जाता है। हालांकि संघ के इस सर्किल के बाहर बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है। ईनामदार को गुजरात में को-ऑपरेटिव मूवमेंट को आगे बढ़ाने का श्रेय जाता है। वकील साहब के काम को याद करने के लिए संघ की सहयोगी संस्था सहकार भारती ने गुरुवार को शताब्दी समारोह का आयोजन किया। मोदी के लिए ईनामदार की भूमिका निजी और राजनीतिक रूप से कहीं ज्यादा है और यह एक आयाम तक सीमित नहीं है।

मोदी के गांव में हुई पहली मुलाकात

मोदी का ईनामदार से पहला परिचय मेहसाणा जिले के वडनगर में ही हुआ, जब वह बच्चे थे। महाराष्ट्र में जन्में वकील साहब आज के गुजरात के उस हिस्से में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पुर्नजीवित करने के काम में लगे थे। हालांकि तब महाराष्ट्र और गुजरात अलग-अलग नहीं थे।

महात्मा गांधी की हत्या के बाद लगे प्रतिबंध की वजह से 1950 के शुरुआती समय में संघ खुद को पुर्नजीवित करने की कोशिशों में लगा था। मोदी और ईनामदार के बीच पहली मुलाकात गांव में ही हुई। इकोनॉमिक टाइम्स में लिखे अपने लेख में निलंजन मुखोपाध्याय बताते हैं कि वकील साहब से मैं बहुत प्रभावित हुआ था, उन्होंने मेरे दिल के तार छू लिए थे।

ईनामदार ने पहचाना युवा नरेंद्र में ‘नेता’

मोदी यह भी खुलासा करते हैं कि शायद युवा नरेंद्र में उन्होंने एक नेता की पहचान कर ली थी. वे पूछते थे कि मुझे कौन सा खेल पसंद है। बाद में स्थानीय प्रचारक ईनामदार मोदी के गांव में अक्सर आने लगे। ईनामदार मोदी से लगातार बात करते और इन्हीं शुरुआती मुलाकातों ने दोनों के बीच एक लंबे और मजबूत संबंधों की नींव रखी। मोदी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनके जीवन पर वकील साहब का खासा प्रभाव है।

अपने पिता के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबंध बहुत अच्छा नहीं था। ऐसे में युवा नरेंद्र को ईनामदार में एक पिता तुल्य व्यक्ति मिला, जिसने न केवल उन्हें राजनीति में गाइड किया बल्कि जीवन के अन्य संघर्षों में भी मदद की। अपने जीवन के शुरुआती समय में ही मोदी को ईनामदार के सलाह की जरूरत महसूस हुई। चाहे वह अपने परिवार को त्यागने के बाद गुजरात लौटना हो या फिर बड़े लोगों के कहने पर अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू करना। मोदी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्राचार के माध्यम से अपनी आगे की पढ़ाई की।

जब तिहाड़ जेल पहुंचे नरेंद्र मोदी

ईनामदार ने कभी इस बात का इंतजार नहीं किया कि नरेंद्र मोदी उनके पास आएंगे। उन्होंने मोदी को मौके उपलब्ध कराए ताकि वे अपने क्षितिज का विस्तार कर सके। वकील साहब ने मोदी को संगठन ज्वॉइन करने को कहा, क्योंकि अकेला लड़ाका बहुत दूर नहीं जा पाता। मोदी ने कहा, ‘वह लगातार कहते थे कि मुझे कोई संगठन ज्वॉइन करना चाहिए।’ ईनामदार ने 1971 में नरेंद्र मोदी को दिल्ली भेजा, ताकि वे बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए चल रहे आंदोलन में हिस्सा ले सकें। यह मोदी का पहला राजनीतिक कदम था, जिसने उन्हें तिहाड़ जेल पहुंचा दिया।

आपातकाल के दौरान भूमिगत रहकर काम करते रहे मोदी

दिल्ली यूनिवर्सिटी में नामांकन कराने का मतलब था, नियमित अंतराल पर राजधानी आना-जाना और जब आपातकाल लगा, तो वकील साहब ने मोदी को भूमिगत रहकर काम करने के लिए प्रेरित किया। मोदी दिल्ली में कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री कॉन्फ्रेंस में पैम्फलेट बांटते। बाद में वकील साहब ने मोदी को जॉर्ज फर्नाडिंस को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने का काम दिया. दोनों नेता वेश बदलकर रह रहे थे। सिख और संन्यासी की वेशभूषा में मोदी की तस्वीर देखी जा सकती है।

रॉकेट की रफ्तार से उड़ान भरने लगा मोदी का करियर

इमरजेंसी हटने के बाद ईनामदार ने मोदी के करियर को एक बार फिर पुश किया। मोदी को एक बार फिर दिल्ली भेजा गया। इस बार उनके पास आपातकाल के दौरान संघ के प्रतिरोध के दस्तावेजीकरण में सहयोग का जिम्मा था। लक्ष्य हासिल कर लिया गया और इसके बाद मोदी का करियर रॉकेट की रफ्तार से उड़ान भरने लगा।

1987 में संघ ने मोदी को बीजेपी में भेजा

नरेंद्र मोदी को वड़ोदरा का विभाग प्रचारक बना दिया गया।  बाद में उन्हें संभाग प्रचारक बनाया गया। इस बीच ईनामदार के साथ मोदी का संपर्क कम होता गया, लेकिन उन्होंने अपने मेंटर के साथ समय बिताने का मौका जाया नहीं किया। मोदी जब भी अहमदाबाद जाते ईनामदार से मिलने के लिए समय निकाल लेते। 1987 में संघ ने मोदी को बीजेपी में भेजा, ईनामदार का निधन हो गया, लेकिन भूमिका को खारिज नहीं किया जा सकता।

जब पहली बार प्रधानमंत्री आवास पहुंचे PM मोदी

अगस्त, 2001 में नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री आवास में कदम रखा, मौका था अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों लक्ष्मण राव ईनामदार पर मोदी की लिखी किताब का विमोचन। किताब का नाम था ‘सेतुबंध’, जिसमें वकील साहब की तुलना भगवान राम द्वारा लंका जाने के लिए बनाई गई सेतु से की गई है। अगर देखा जाए तो मोदी के जीवन में वकील साहब की भूमिका एक सेतु की तरह ही है, जो नरेंद्र मोदी के निजी और राजनीतिक जीवन को जोड़ती है।

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