राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित निर्देशक हंसल मेहता और ढेर सारे अवॉर्ड्स और सम्मानों से सुशोभित कंगना की फ़िल्म ‘सिमरन’ को लेकर मुझे ही नहीं तमाम दर्शकों में भी काफी उत्साह था। इंतज़ार था कि आखिर क्या है ‘सिमरन’? इस बार स्क्रीन पर ऐसी क्या कहानी कंगना लेकर आई हैं जिसके प्रमोशन के लिए उन्होंने अपनी निजी ज़िंदगी के बेबाक अनुभव भी बांटने में झिझक नहीं की? ऐसी क्या कहानी है जिसके लिए कंगना इतनी बोल्ड हो गई? निश्चित ही अपने बिंदास अंदाज़ से कंगना ने दर्शकों का ध्यान ‘सिमरन’ की ओर आकर्षित तो किया लेकिन, अब बड़ा सवाल यह है कि क्या ‘सिमरन’ दूसरी ‘क्वीन’ साबित होगी?
यह कहानी है प्रफुल्ल पटेल की जो अमेरिका में रहती है। सीधी-सादी दिखने वाली यह लड़की संयोग से लास वेगास के एक जुएखाने में पहुंचती है और बहुत सारा पैसा जीत जाती है। मगर इसके बाद प्रफुल्ल को जुए खेलने की लत पड़ जाती है और वह लगातार हारती चली जाती है। ऐसे में एक प्राइवेट लैंडर उसे पैसे देता है और प्रफुल्ल वह पैसा भी नशे में हार जाती है। अब चक्कर शुरू होता है पैसे वसूली का। जब पैसे देने वाला गुंडा प्रफुल्ल की जान लेने पर उतारू हो जाता है।
निम्न मध्यम वर्ग की प्रफुल्ल पच्चास हज़ार डॉलर की बड़ी रकम कहां से चुकाएगी? उसके पिता किसी कारणवश पैसे देने से मना कर देते हैं। अब सिमरन के पास कोई चारा नहीं है। ऐसे में वो एफबीआई और सीआईए के जाल से घिरे अमेरिका में लूटपाट शुरु कर देती है और अंततः पकड़ी जाती है। यही कहानी है ‘सिमरन’ की।
राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित कंगना रनौत और हंसल मेहता की यह फ़िल्म अत्यंत साधारण फ़िल्म है! फ़िल्म शुरू होने के कुछ समय तक तो आपको समझ ही नहीं आता कि आखिर हो क्या रहा है? लेकिन, आप उसके साथ आनंद ले पाते हैं। मगर एक जैसे ही दृश्य इंटरवल तक लगातार चलते रहते हैं तो आप बेसब्री से इंटरवल का इंतजार करते हैं। जैसे-तैसे इंटरवल होता है और आपको लगता है कि शायद अब कहानी आगे बढ़ेगी। मगर इंटरवल के बाद फिर आप को निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि वैसे ही कहानी आगे भी चलती हुई नज़र आती है।
आखिर ये फ़िल्म बनाने के पीछे मकसद क्या था? ऐसा क्या था जिसे सुनकर कंगना और हंसल ने यह तय किया कि यह फ़िल्म बनाई जाए, यह समझ से परे है ! अभिनय के नाम पर बात करें तो कंगना को छोड़कर फ़िल्म में एक भी एक्टर ऐसा नहीं था जिसने कोई ख़ास कमाल किया। हालांकि, कंगना ने ज़बरदस्त परफॉर्मेंस किया है, इस बात के लिए उनकी तारीफ़ करनी होगी। बहरहाल, किशोरी शहाणे को छोड़कर फ़िल्म में एक भी चेहरा ऐसा नहीं था जिसे आप जानते हों। तकनीकि पहलू की बात करें तो फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी तो शानदार है लेकिन, एडिटिंग बहुत ही कमजोर है। स्टोरी और स्क्रीनप्ले पर बिल्कुल भी मेहनत नहीं की गई है। फ़िल्म का संगीत साधारण है। यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित हंसल मेहता का निर्देशन इस बार कमजोर पड़ गया। कुल मिलाकर कंगना रनौत की ‘सिमरन’ एक कमजोर फ़िल्म है। अगर आप हार्डकोर कंगना रनौत के फैन हैं तो ही आप यह फ़िल्म देखने जा सकते हैं, अन्यथा आप दूसरा ऑप्शन तलाश कर सकते हैं।