ख़बर राजनीति

क्षत्रपों के राजनीतिक सर्कस और जूतमपैजार से खफा राहुल

रितेश सिन्हा। कांग्रेस के अंदरूनी हालात कुछ ठीक नहीं। पार्टी के राजनीतिक धुरंधरों का हवाई कलाबाजी दिखाने पर अधिक जोर है। राहुल गांधी का कांग्रेसी नेताओं के साथ बैठकों का दौर जारी है, मगर पार्टी उपाध्यक्ष के समक्ष हर साक्ष्य की गलत तस्वीर पेश करने की कवायद जारी है। लिहाजा हालात जस के तस। न तो कांग्रेस खुद को संभालने में कामयाब हो रही है और न ही एक सशक्त विपक्ष के रूप में खुद को पेश करने में। पार्टी की गिरती साख के बीच इसके खेवनहार ही कांग्रेसी जहाज को डुबोने में लग गए हैं। अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि कांग्रेस उपाध्यक्ष के समक्ष की नेताओं की जुतमपैजार की बातें आम हैं। हाल ही में एक ऐसा वाक्या सामने आया जब राहुल के दरबार में महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चौहान पर जबर्दस्त हमला बोला। दरअसल यह बैठक ओबीसी नेताओं के साथ आयोजित की गई थी जिसमें राहुल गांधी के समक्ष सभी प्रदेशों से चुने हुए प्रतिनिधियों को बुलाया गया था। ओबीसी वर्ग के इन नेताओं में पूर्व सांसद, विधायक और संगठन से जुड़े पदाधिकारी और अन्य लोग शामिल थे।
महाराष्ट्र से पूर्व जलसंसाधन राज्य मंत्री और वर्तमान में सदन के उपनेता विजय नामदेवराव वडेतीवार ने बैठक में प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौहान की कार्यशैली पर खुलकर वार किया। उनका आरोप था कि अशोक चौहान अपनी मनमर्जी से पार्टी चला रहे हैं और प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश द्वारा भेजी गई सिफारिशों को भी नजरंदाज करते रहे हैं। उनको जहां कहीं भी मौका मिलता है, वे ओबीसी के लिए बेकुन भी मराठा समाज के ही पार्टी संगठन और उनकी राय को प्रमुखता देते आए हैं। आपको बता दें कि पुराने शिवसैनिक रहे विजय बडेतीवार कांग्रेसी कोटे के तहत सदन में उपनेता के तौर पर काबिज हैं, जबकि प्रदेश के विधायक दलों के कई नेताओं से उनका कद छोटा है। प्रदेश के प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश के वीटो पावर ने उनके पावर को कई गुणा कर दिया है तो बोली भी उन्हीं की बोलेंगे। मोहन कृपा तो चंद्रपुर जिले और शहर अध्यक्ष में कई चहेते को मिली हुई है। उनके साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राजीव साटव ने भी सूबे के पूर्व सीएम अशोक चौहान के लिए खूब जहर उगला।
विजय वडेतीवार और राजीव साटव के बीच जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा दिखी, वो थी कौन कितना अधिक अशोक चौहान को निशाने पर ले सकता है। दरअसल वडेतीवार और साटव दोनों की निगाहें महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर है, वहीं मोहन प्रकाश अपने प्यादों के जरिए अशोक चौहान पर सारा दोष मढ़कर खुद को बचाने की जुगत में भिड़े हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अहमद अपने कारिंदों को बचाने में कितने कामयाब होते हैं। फिलहाल राजीव साटव सांसद अशोक चौहान का शिकार कर खुद को बचाने के फिराक में हैं।
बैठक में दोनों नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष को भ्रष्टाचारी बताते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष से उनको हटाने की मांग तक कर डाली। इन नेताओं ने बैठक के बाद अनौपचारिक बातचीत में बताया कि भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे अशोक चौहान भाजपा के प्रदेश नेतृत्व से सांठगांठ किए हैं, जिसका खामियाजा पार्टी भुगत रही है। पिछले ढाई वर्षों के उनके अध्यक्षीय कार्यकाल में आज तक पदाधिकारियों की कोई बैठक तक आयोजित नहीं हो पाई। इन नेताओं का यहां तक कहना था कि अशोक चौहान तो प्रदेश कार्यालय से जिला मुख्यालय तक जाने में कतराते हैं। अपनी मराठा मानसिकता से वे उबर नहीं पाए हैं और ओबीसी और दलित नेताओं के साथ उनका रवैया निराशाजनक है।
विदित हो कि प्रदेश के प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश इन दिनों हाशिए पर हैं, मगर अपने पर्दे के पीछे से अपने चहेतों के जरिए अशोक चौहान की खिलाफत करवाकर अपनी कुर्सी बचाने की फिराक में हैं। जिस तरह से कांग्रेस उपाध्यक्ष एआईसीसी में वर्षों से बैठे मूरदार से सरदार बने कांग्रेसी क्षत्रपों को किश्तों में काटना शुरू किया है, उसमें अगला नंबर मोहन प्रकाश का हो सकता है। जनता पार्टी से मात्र एक बार विधायक बने मोहन प्रकाश ने कांग्रेस में पार्टी अध्यक्ष के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के सिपाही से क्षत्रप तक का सफर तय किया है, मगर अब उनकी राह आसान नहीं रहने वाली। इस मृदुभाषी नेता ने कांग्रेस संगठन में अपनी जगह बनाए रखने के लिए हर प्रकार के राजनीतिक हठकंडे अपनाते आए हैं। जहां तक ओबीसी मीटिंग की बात है तो इस बैठक में महाराष्ट्र के पूर्व अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे भी मौजूद थे, मगर बैठक के बाद कुछ नेताओं ने बताया कि सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ खुला हमला करवाने में मोहन प्रकाश की महती भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
इससे एक बात तो तय है कि पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अशोक चौहान को अभयदान मिले या न मिले, मगर प्रदेश के प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश का प्रभार जरूर छिन सकता है। खांटी कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि प्रभारी के रहते पार्टी में बाहर के बॉरो प्लेयर्स को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। मोहन प्रकाश ने जनता दल, जनता पार्टी और भाजपा से आए नेताआंे को ही तरजीह दी है, पार्टी के जमीनी वर्कर्स की हमेशा अनदेखी की है। यहां तक जब भाजपा अलग विदर्भ राज्य को लेकर अत्यंत गंभीर है, सूबे के प्रभारी ने पार्टी आलाकमान को हमेशा इस मामले में गुमराह किया है। यही वजह है कि विदर्भ के नेताओं ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वर्चस्व की लड़ाई में अशोक चौहान जाएंगे या बचेंगे यह तो बाद में तय होगा, मगर मोहन प्रकाश का जाना तय है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *