ऋतू कृष्णा चटर्जी | आंसू तो दुःख के भी बहते हैं और खुशी के भी, आंखें ही बता सकती हैं कि दिल का हाल क्या है। बहरहाल महामहीम राम कोविंद जी को हार्दिक बधाईयों के साथ तीरों की शैय्या पर लेटे श्री लालकृष्ण आडवाणी को प्रणाम जो अपने सीने पर भारी होती भाजपा को उठाए…करवट न बदल पाने की स्थिति में भी मुस्कुराहट कम होने का नाम नही लेती। मंदिर वहीं बनेगा, की रट लेकर योगी आदित्यनाथ जैसे कच्चे खिलाड़ी को उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के ज्वलनशील सिंहासन पर बिठाना उतना ही अनुचित निर्णय था जितना कि आडवाणी से उनके जीवन भर के प्रयास और त्याग का फल छीन लेना। उत्तर प्रदेश में अपनी कब्र खोद चुकी भाजपा की वापसी 2022 में नही हो सकेगी यह तो निश्चित हो गया है, मौका मिल रहा है उन्हें जो इस प्रदेश की रग-रग से वाकिफ हैं, सपा-बसपा में नए कोंपल फूट रहे हैं और लोगों में निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती जा रही है। लाल कृष्ण आडवाणी पर सीबीआई जांच वो भी एक ऐसे मसले की जिसे न तो न्यायालय के भीतर न बाहर, कभी सुलझाया ही नही जा सका, कश्मीर मसला और राम मंदिर विवाद आज की तारीख तक ऐसे दरवाज़े बन चुके हैं जिन्हें खोलने की चाभी तो है पर ताले दिखाई ही नही पड़ते। एक लम्बे अर्से के बाद ऐन समय पर सीबीआई की जांच बैठ जाना, एक भयंकर साजिश अथवा बदले की कार्यवाही का प्रदर्शन कर रही है जिसे अपने घर के ही लोग अंजाम दे रहे हैं। ऐसा कष्ट कि मारेंगे और रोने भी न देंगे, कैसे कह दें आडवाणी कि उनके साथ बुरा हुआ नही बल्कि बुरा किया गया।
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