देश के कई राज्यों में किसानों का आंदोलन चल रहा है। किसानों का दावा है कि उन्हें उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। दूसरी तरफ राजनीतिक दल और मीडिया किसानों के आंदोलन की प्रकृति और कारणों के निर्धारण में जुटे हैं। देश में एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो ये मान रहा है कि उत्तर प्रदेश में किसानों की कर्ज माफी की घोषणा से दूसरे राज्यों में किसानों के आंदोलन को बल मिला है। ऐसे में कुछ लोग यह भी महसूस कर रहे होंगे कि कुछ दल किसान आंदोलन को उकसाने का भी काम कर रहे हैं। हालांकि, कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि आंदोलन रबी फसल की कटाई के ठीक बाद शुरू हुआ जो कि आंदोलन के गहरी जड़ों की ओर संकेत देता है।
साल 2017-18 के लिए द्विमासिक मौद्रिक नीति में भारतीय रिज़र्व बैंक ने कहा है कि देश के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में आश्चर्यजनक कमी खाद्य मुद्रास्फीति में तेज गिरावट के कारण हुई है। यह मुख्यतः दालों और सब्जियों की कीमतों में गिरावट से आई है। दालों और सब्जियों की गिरती कीमतों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसानों द्वारा फसलों के अपर्याप्त मूल्य मिलने के दावे खोखले नहीं हैं तथा इसका आर्थिक विश्लेषण अनिवार्य है। इसलिए 2015-16, 2016-17 में अरहर, चना, मसूर, आलू और प्याज की खेती से भारत के किसानों को होने वाले शुद्ध लाभ का आर्थिक विश्लेषण जरूरी है।
आंकड़ों पर गौर करें तो 2016-17 में औसत मंडी भाव पर (फसल कटाई के महीनों में ) अरहर के किसानों को प्रति हेक्टेयर 2672 रूपये का नुकसान हुआ। जबकि साल 2015-16 में किसानों को 23,132 रूपये का शुद्ध लाभ हुआ था। चना की खेती करने वाले किसानों को 2016-17 में प्रति हेक्टेयर 23,027 रूपये का शुद्ध लाभ हुआ जो 2015-16 में 16,600 रूपये था। इसी तरह मसूर की खेती करने वाले किसानों को साल 2016-17 में प्रति हेक्टेयर 4,067 रूपये का शुद्ध लाभ हुआ जो 2015-16 में 14, 699 रूपये था।
प्याज की खेती करने वाले किसानों की बात करें तो साल 2016-17 में प्याज के किसानों को प्रति हेक्टेयर 70,536 रूपये का नुकसान हुआ जबकि 2015-16 में किसानों को प्रति हेक्टेयर 51,266 रूपये का नुकसान हुआ था। वहीं आलू की खेती करने वाले किसानों को 2016-17 में प्रति हेक्टेयर 69,415 रूपये का नुकसान हुआ जबकि साल 2015-16 में आलू के किसानों को प्रति हेक्टेयर 3,299 रूपये का नुकसान हुआ था। इन आंकड़ों से साफ है कि 2016-17 में बम्पर फसल के बावजूद अरहर, प्याज और आलू किसानों को उत्पादन लागत भी नहीं मिल सका ये कहना अनुचित नहीं होगा कि अरहर, प्याज और आलू उत्पादन करने वाले किसान अपनी फसलों को उत्पादन लागत से कम पर बेचकर उपभोक्ताओं को सब्सिडी प्रदान कर रहे हैं जिसे हम “किसान सब्सिडी” कह सकते हैं। मूल्य गिरने के कारण मसूर के किसानों का शुद्ध लाभ भी घट गया था। फसलों के गिरते मूल्य के कारण किसानो की “बैलेंस शीट” बिगड़ गयी। लिहाजा एक बात तो साफ है कि साल दर साल किसानों का शुद्ध लाभ घटता जा रहा है और नुकसान बढ़ता जा रहा है । यही वजह है कि किसान कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है।
अगर समय रहते ठोस कदम नहीं लिए गए तो भारत में किसानी अभिशाप बन जायेगी। कृषि संकट का नतीजा होगा कि मानसून के अच्छे होने के बावजूद ग्रामीण उपभोग की मांग में कमी आएगी, क्रेडिट डिफॉल्ट बढ़ेगा, शहरों में प्रवास बढ़ेगा। अगर कीमतों में सुधार नहीं हुआ तो इस साल की तरह दलहन, प्याज और आलू की बम्पर फसल इतिहास बन जाएगी। दालों के सन्दर्भ में भारत की आत्मनिर्भरता एक दूर का सपना बन कर रह जायेगा। यह समझना महत्वपूर्ण है कि जब तक किसानों को बेहतर कीमत नहीं मिलेगी, उनके दुःख और संकट साल दर साल बढ़ते चले जायेंगे। यह आगे हड़तालों, विरोध-प्रदर्शन, आंदोलन का रूप लेते रहेंगी। ऋण राहत की मांग लगातार बनी रहेगी लेकिन यह जमीनी समस्या का समाधान नहीं कर पायेगी।
डॉ आशुतोष शर्मा। पटना, बिहार के निवासी। मुंबई यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी। समकालीन आर्थिक नीतियों के क्षेत्र में शोधरत आशुतोष का सपना गांवों के जमीनी हालात बदलने का है। आप इनसे 9540739759 पर संपर्क कर सकते हैं।