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क्यों जल रहा है मणिपुर? जानिए पूरी खबर।।

मणिपुर में हिंसा का कारण क्या है? क्या यह मुद्दा ट्राइबल्स वर्सेज नॉन ट्राइबल्स का है? क्यों यहां पर 9000 लोगों को रेस्क्यू किया जा रहा है? आर्मी की क्या जरुरत है? इतनी बड़ी हिंसा का कारण क्या है?

28 अप्रैल को मुख्यमंत्री स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन करने जा रहे थे, पर उनके पहुंचने से पहले ही वहां के लोगों ने उस कॉम्प्लेक्स को आग के हवाले कर दिया। कैसे शुरू हुआ मामला? दरअसल ये पूरा मामला हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुआ. इसके बाद से ही माहौल बिगड़ना शुरू हो गया. 14 अप्रैल को मणिपुर हाईकोर्ट ने मेइती समुदाय के आरक्षण की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वो केंद्र सरकार से इसकी सिफारिश करे. मेइती समुदाय ने हाईकोर्ट में कहा था कि उनकी परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाने के लिए मेइती समुदाय को एसटी दर्जा दिया जाना चाहिए. हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद से ही तमाम आदिवासी समूह विरोध में उतर आए. उनका कहना था कि मेइती समुदाय को एसटी का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए. कुकी और नागा जनजाति के लोगों ने इस विरोध की शुरुआत की और इसमें उनका साथ तमाम अन्य जनजातियों ने दिया. अब विवाद पर आने से पहले उस समुदाय को भी जानना जरूरी है, जिसके विरोध में तमाम जनजाति के लोग उतर आए हैं.

क्या है मेइती समुदाय?इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक मणिपुर में सबसे ज्यादा आबादी मेइती समुदाय की है. राज्य की आबादी का लगभग 64.6 मेइती समुदाय से है. हालांकि ये समुदाय सिर्फ 10 फीसदी भूभाग पर ही बसा हुआ है. बाकी 90 फीसदी हिस्सा पहाड़ी है, जिसमें राज्य की बाकी बची आबादी रहती है. इसी भूभाग में नागा, कूकी समेत वो सभी जनजातियां रहती हैं, जो मेइती समुदाय के विरोध में उतर आई हैं.

मेइती समुदाय का विरोध क्यो?
वहीं मेतई समुदाय का विरोध करने वाली जनजातियों का पक्ष है कि मेइती एक काफी मजबूत समुदाय है. इसकी जनसंख्या भी सबसे ज्यादा है और ये शहरी इलाकों में रहते हैं. उनका कहना है कि मेइती समुदाय को तमाम वो सुविधाएं मिलती हैं, जो पहाड़ी इलाके में रहने वाले लोगों को नहीं मिल पातीं. मेइती समुदाय पर पहाड़ी इलाकों में घुसपैठ के भी आरोप लगाए जाते हैं.

लैंड सर्वे को लेकर बवाल
मेतई समुदाय के विरोध के बीच मणिपुर सरकार की तरफ से कराए गए सर्वे ने पहाड़ी जनजातियों को भड़काने का काम किया. मणिपुर सरकार ने पिछले साल एक लैंड सर्वे कराने का फैसला लिया था, जिसके तहत चूराचांदपुर और इसके आसपास के इलाके के लिए हुआ था. इस सर्वे के बाद कुकी समुदाय के कुछ लोगों को कहा गया कि वो रिजर्व फॉरेस्ट में आते हैं और उन्हें वो जगह खाली करनी होगी. इसके बाद ग्रामीण जनजातियों ने इसका विरोध किया और कहा कि उन्हें इसे लेकर कोई भी जानकारी नहीं दी गई.

ऐसे शुरू हुई हिंसा इस मुद्दे को लेकर 27 अप्रैल को द इंडीजिनियस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) की तरफ से एक सरकार के खिलाफ 8 घंटे का बंद बुलाया गया था. 28 अप्रैल को सीएम बीरेन सिंह के दौरे से पहले चूराचांदपुर में ये बंद शुरू हुआ. सीएम यहां ओपन जिम का उद्घाटन करने वाले थे. इससे पहले बीरेन सिंह के लिए तैयार मंच को आग के हवाले कर दिया गया. बाद में इलाके में पुलिसबल तैनात हुआ. हालांकि इसके बाद हिंसा रुकने की बजाय और जिलों तक फैलती गई. 28 अप्रैल को पुलिस की तैनाती के साथ-साथ हिंसक प्रदर्शन बढ़ने लगे, लोगों ने सड़कों पर उतरकर टायर जलाए और जमकर तोड़फोड़ की. इसी रात पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प भी हुई. पुलिस ने बल का इस्तेमाल भी किया. इसके बाद 29 अप्रैल को भी जमकर आगजनी हुई. रातभर कई भवनों को आग के हवाले कर दिया गया. छात्र संगठन के मार्च से भड़की हिंसा करीब तीन दिन तक हुए इस पूरे बवाल को 30 अप्रैल तक कंट्रोल कर लिया गया और पुलिस ने राहत की सांस ली, लेकिन अभी बहुत कुछ होना बाकी था. लोगों के बीच अपने मुद्दों को लेकर आग भड़क रही थी, जिसकी चिंगारी पुलिस और प्रशासन को नहीं दिखी. अबकी बार इस आग की वजह मेतई समुदाय था. 3 मई को छात्र संगठन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने एक मार्च बुलाया. ये मार्च मेतई समुदाय की मांग और उसे मिलते समर्थन के खिलाफ बुलाया गया. इस मार्च में हजारों लोग पहुंच गए, जिनमें कई जनजातियों के लोग शामिल थे. मणिपुर के अलग-अलग जिलों में मेतई समुदाय के खिलाफ ऐसे ही बड़े मार्च निकाले गए. इस दौरान कई जगह से हिंसा की खबरें सामने आईं, लोगों ने जमकर बवाल किया और कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया. इसी बीच मेइती समुदाय के लोग भी सड़कों पर उतर आए और दोनों पक्षों के बीच जमकर हिंसक झड़पें हुईं. हिंसा को देखते हुए 8 जिलों में कर्फ्यू लगाने का ऐलान हुआ और सरकार ने उपद्रवियों को गोली मारने के आदेश भी जारी कर दिए. इसके अलावा पूरे मणिपुर में इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी गई. फिलहाल हिंसा प्रभावित क्षेत्रों से हजारों लोगों को निकाला गया है और सेना की तैनाती की गई है.

मणिपुर में इस हफ्ते भड़की हिंसा अब धीरे-धीरे शांत हो रही है। राज्य में सेना-असम राइफल्स और रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) की तैनाती के बाद से हालात सुधरे हैं। इस बीच मणिपुर सरकार ने हिंसा में जान गंवाने वालों का आधिकारिक आंकड़ा जारी किया है। बताया गया है कि अलग-अलग हिंसा की घटनाओं में 54 लोगों की मौत हुई है। हालांकि, अनाधिकारिक आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा बताया गया है।इस बीच इंफाल घाटी में शनिवार को मार्केट और दुकानें खुल रही हैं। साथ ही सड़कों पर भी कुछ वाहन दिखाई दिए। इस बीच राज्य में सुरक्षा व्यवस्था भी चाक-चौबंद दिखाई दी। अब तक राज्य में सुरक्षाबलों के 10 हजार से ज्यादा जवान तैनात हैं। इस कड़ी सुरक्षा के चलते इंफाल में लोग सड़कों पर दिखने लगे हैं।

बताया गया है कि हिंसा में जिन 54 लोगों की मौत हुई है, उनमें से 16 के शव चुराचांदपुर के जिला अस्पताल के मुर्दाघर में रखे गए हैं। वहीं 15 शव जवाहरलाल नेहरु इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में रखे गए। इसके अलावा इंफाल के पश्विम में स्थित लाम्फेल में रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की ओर से 23 की मौत की पुष्टि की गई है। सरकार ने कहा है कि हिंसा के बीच पहाड़ों पर आधारिक पांच उग्रवादियों को मार गिराया गया है। वहीं, चुराचांदपुर में रिजर्व बटालियन के दो जवान अलग-अलग एनकाउंटर में घायल हुए हैं। पुलिस ने बताया है कि इनमें से एक एनकाउंटर चुराचांदपुर के सैतोन में हुआ था, जहां सुरक्षाबलों ने चार उग्रवादी मार गिराए। पुलिस का दावा है कि तोरबुंग इलाके में उग्रवादियों ने सुरक्षाबलों पर फायरिंग कर दी थी। जवाबी कार्रवाई में एक उग्रवादी मारा गया और दो रिजर्व बटालियन के जवान घायल हो गए।

मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय द्वारा उसे अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर’ (एटीएसयूएम) की ओर से बुधवार को आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान चुराचांदपुर जिले के तोरबंग क्षेत्र में हिंसा भड़क गई थी।

सीएम एन बीरेन सिंह ने शांति के लिए की बैठक
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने ट्वीट कर कहा कि राज्य में मौजूदा स्थिति को देखते हुए इस समय राज्य में शांति बनाए रखने में नागरिक समाज संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए मणिपुर अखंडता समन्वय समिति (COCOMI) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की।

बीरेन सिंह ने एक अन्य ट्वीट में कहा, इस महत्वपूर्ण स्थिति में मुझ तक पहुंचने और मणिपुर में शांति लाने में अपना पूरा समर्थन देने का आश्वासन देने के लिए अखिल मणिपुर ईसाई संगठन (AMCO) का धन्यवाद। मैं मणिपुर के सभी लोगों से किसी भी प्रकार की हिंसा से बचने की अपील करता हूं। राज्य की कानून व्यवस्था में गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राज्य पुलिस और अर्धसैनिक बल को सख्त हिदायत दी गई है।

मणिपुर की राज्यपाल ने लोगों से की यह अपील
मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में हुई हिंसा की घटनाओं ने शांति और सद्भाव को प्रभावित किया है। इन घटनाओं में राज्य में कुछ लोगों की मौत हुई है, जिससे मैं बहुत दुखी हूं। मैं आप सभी से अपील करती हूं कि आपस में सौहार्द बनाए रखें और अपने आसपास के लोगों का सहयोग करें।
मणिपुर में व्यवस्था बहाल करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है सरकार: किरेन रिजिजू
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार हिंसा प्रभावित मणिपुर में व्यवस्था बहाल करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है। रिजिजू ने एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री खुद स्थिति की निगरानी कर रहे हैं और सभी आवश्यक कदम उठा रहे हैं। उन्होंने बातचीत का आह्वान करते हुए कहा, दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक हिंसा एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। कई लोगों की जान चली गई है और संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। चाहे मैतेई हों या कुकी, दोनों एक ही राज्य से हैं और उन्हें एक साथ रहने की जरूरत है।

अरुणाचल प्रदेश के रहने वाले मंत्री रिजिजू ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरे पूर्वोत्तर में तेजी से विकास हो रहा है। हिंसा को इसमें सेंध लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इस तरह की घटनाएं लोगों के भविष्य को प्रभावित करती हैं और युवाओं एवं महिलाओं को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। उन्होंने कहा, सुंदर पूर्वोत्तर के विकास को आगे ले जाने के लिए शांति की आवश्यकता है। समाज तभी प्रगति कर सकता है जब शांति हो। उन्होंने लोगों से गृह मंत्रालय द्वारा आदेशित बलों की तैनाती का समर्थन करने का आग्रह किया।

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