श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनार्इ जाती है। इस बार ये पर्व 2 सितंबर को पड़ रहा है। जन्माष्टमी का व्रत करने वालों को इस दिन केवल एक ही समय भोजन करना चाहिए। व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद, पूरे दिन उपवास रखकर रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि पर व्रत का पारण किया जाता है। व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण के जन्म के बाद किया जाता है।
आम जनमानस, को व्रतादि का निर्णय करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पडता है, यहां तक कि पंडित गण एवं ज्योतिषी जन भी कभी कभी असमंजस की स्थिति में पड़ जाते हैं। अतः यहां दी गयी विधि का अनुसरण करके आप स्वयं व्रतादि का निर्णय कर सकते हैं। यह बहुत आसान है। सबसे पहले तो स्मार्त और वैष्णव का अंतर समझ लें, स्मार्त का मतलब है (गृहस्थ), अर्थात स्मृति के आदेशानुसार अपने समस्त कर्मकांड करने वालों को स्मार्त या गृहस्थ कहा जाता है। वहीं वैष्णव का मतलब है वैष्णव सम्प्रदाय के मतावलम्बी, अधिकतर लोग वैष्णव का मतलब सीधे सीधे शाकाहारी (सनातनी ) हिन्दू से लगा लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं है यह एक सम्प्रदाय है जिसमें रामानुज संत आदि हुए थे।
इस वर्ष जन्माष्टमी का पर्व 02 सितम्बर रविवार को पड़ रहा है। सौभाग्यवश, इस वर्ष जन्माष्टमी के व्रतपर्व पर, मास ( भाद्रपद ) तिथि (अष्टमी ) दिन ( रविवार ) नक्षत्र ( रोहिणी ) का अद्भुत संयोग है। सोने में सुहागा यह है कि भारतीय स्टैण्डर्ड समयानुसार रविवार रात्रि को 08 बजकर 48 मिनट से लेकर अगले दिन सोमवार को सायं 07 बजकर 20 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी। रविवार को ही रोहिणी नक्षत्र रात्रि 08/49 से लेकर सोमवार को रात्रि 08/05 तक रहेगा। इसमे रविवार को रात्रि 10/00 बजे से लेकर रात्रि 11/57 तक वृष लग्न का समावेश रहेगा, उल्लेखनीय है कि योगेश्वर कृष्ण जी का जन्म रात्री 12 बजे वृष लग्न में ही हुआ था, तिथि (अष्टमी ) नक्षत्र ( रोहिणी ) का अद्भुत संयोग होने से यह (श्रीकृष्ण जयन्ती) योग बन गया है। अतः यह पावन त्यौहार रविवार को अति शुभ व महत्वपूर्ण हो गया है। गृहस्थों को रविवार ही व्रत ग्रहण करना चाहिए। मंदिर मठों आदि में उदयकालीन तिथि मानते हैं, वह निर्णय धर्मशास्त्रीय नहीं है, और सोमवार को तो भगवान के जन्म के समय न तो अष्टमी तिथि है और न ही रोहिणी नक्षत्र है।