बिहार डिजिटल हो रहा है। देश के दूसरे राज्यों की तरह यहां भी सूचना प्रावैधिकी के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा। हालांकि, बिहार को इस दौड़ में शामिल हुए महज 11 वर्ष ही बीते हैं। देश के दूसरे हिस्सों की तरह ही बिहार भी ई-शासन की अपनी परिकल्पना को साकार करने के लिए सूचना और डिजिटल क्रांति को मूर्त रूप देने में जुटा है।
बिहार में आज चारो ओर डिजिटाइजेशन की धमक सुनाई देने लगी है। डिजिटल दुनिया में आज बिहार किस प्रकार हर रोज नया कदम उठा रहा है, जानिए इस पूरी रिपोर्ट में .
सूचना प्रावैधिकी के क्षेत्र में बिहार ने लगभग काम उसी वक्त शुरू किया, जब केंद्र की सरकार में यह काम प्रारंभ हुआ। राज्य सरकार सूचना एवं प्रावैधिकी विभाग 2007 में अस्तित्व में आया। यह सफर की विधिवत शुरुआत थी।
विभाग ने अपने प्रारंभिक काल में केंद्र की जितनी भी योजनाएं थीं, उन्हें बिहार में प्रभावी बनाने का काम किया। इसके साथ ही विभागों को ई-शासन प्रणाली से जोडऩे की दिशा में भी काम होता रहा। सरकारी विभागों को सेक-लैन (सेक्रेटेरिएट वाइड एरिया नेटवर्क) से जोडऩे का काम भी इसी क्रम में चला।
सेक-लैन के माध्यम से सभी विभागों को इंटरनेट कनेक्टिविटी दी जाने लगी। 2007-08 के दौरान 14 महत्वपूर्ण भवनों को इस योजना के तहत कनेक्टिविटी दी गई। इनमें सभी सचिवालय भवन, मुख्यमंत्री आवास, तकनीकी भवन के साथ-साथ एकाउंटेंट और एडवोकेट जनरल के ऑफिसेज तक शामिल किए गए।
इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर विभाग ने सरकार की सेवा आम जनता के लिए योजना को प्रभावी बनाने की दिशा में कवायद शुरू की। इस योजना में व्यापारी वर्ग भी शामिल किए गए, ताकि उन्हें टैक्स जमा करने के लिए विभाग तक आने की जहमत न उठाना पड़े।
बिहार में डिजिटल युग का दूसरा फेज 2014 के अंत और 2015 की शुरुआत से प्रारंभ हुआ। बिहार के तमाम जिला और प्रखंड को बिस्वान -2.0 (बिहार स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क) से जोडऩे की कवायद शुरू हो गई। राज्य सरकार के सु-शासन से जुड़े सारे कार्य बिस्वान -2.0 के माध्यम से ही हो रहे हैं।
सरकार स्वयं मानती है कि यदि एक घंटे के लिए भी इसका परिचालन बंद हो जाए तो राज्य सरकार का पूरा प्रशासनिक तंत्र ठप पड़ जाएगा। इसी वजह से इस योजना को राज्य में ब्राड-बैंड हाइ-वे का दर्जा प्राप्त है। इस योजना का क्रियान्वयन पांच साल के लिए होना है।
वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार ने इस योजना की महत्ता को देखते हुए इसके सुचारु कार्यान्वयन के लिए साठ करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिए हैं। इसी क्रम में सरकार ने अभी हाल ही में सेक-लैन (सेक्रेटेरिएट वाइड एरिया नेटवर्क) फेज 2.0 को अपनी मंजूरी दी है।
इस योजना के तहत पुराना सचिवालय, विकास भवन, विश्वेश्वरैया भवन, टेक्नोलॉजी से लेकर मुख्यमंत्री सचिवालय तक के भवनों को वाई-फाई जोन बनाया जा रहा है। कुछ भवनों में इस तकनीकी ने काम करना भी शुरू कर दिया है।
सरकारी कामकाज को आइटी से जोडऩे की कड़ी को आगे बढ़ाते हुए अब सरकार ने पटना को आइटी हब के रूप में विकसित करने की कार्ययोजना भी तैयार कर ली है। पटना शहर में एक आइटी पार्क और आइटी टावर बनाया जाना है। इसके लिए बजट में बड़ी राशि के प्रावधान भी किए गए हैं। इन दोनों योजनाओं के लिए सरकार ने जमीन चयनित कर ली है। इन केंद्रों की स्थापना का मूल मकसद है मेक इन बिहार।
बिहार कृषि प्रधान राज्य है, लेकिन राज्य सरकार इसके आधुनिकीकरण के साथ औद्योगिकीकरण पर भी ध्यान दे रही है। नतीजा यहां ऐसे केंद्र बनाए जा रहे हैं जहां आइटी कंपनियां अपना बिजनेस कर सकें। आइटी पार्क और आइटी टावर बनने से सिर्फ आइटी प्रोफेशनल्स या इंजीनियर ही इसमें नौकरी पा सकेंगे, बल्कि इसके आसपास के एरिया मं रोजगार के अन्य अवसर भी सृजित होंगे।
आइटी सचिव राहुल सिंह कहते हैं कि राज्य सरकार की आइटी पार्क और टावर बनाने की योजना ने युवा उद्यमियों को जैसे मनमांगी मुराद दे दी है। युवा उद्यमियों की गतिविधियां प्रदेश में बढ़ गई हैं। वह कहते हैंं कि आइटी पार्क और टावर ऐसी शुरुआत हैं, जो मेक इन बिहार के सपने को हकीकत में बदलेंगी।
आइटी कंपनियां बिहार में अपने प्रोजेक्ट लगाएंगी। ऐसा होने से दूसरे क्षेत्र के उद्यमियों को भी अवसर मिलेंगे। वह कहते हैं आइटी टावर बनाने का फैसला बिहार को इंडस्ट्री मार्केट में स्थापित करने में सहायक होगा।
बेंगलुरू, गुडग़ांव और हैदराबाद की तर्ज पर पटना में विकसित होने वाले आइटी टावर का निर्माण डाकबंगला चौराहे के नजदीक विद्यालय निरीक्षका के कार्यालय की जमीन पर होना है। यह आधुनिक सुविधाओं से युक्त वल्र्ड क्लास का होगा।
आइटी के क्षेत्र में बिहार को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से आइटी पार्क की स्थापना की जानी है। इसके लिए बंदर बगीचा में जमीन चिन्हित की जा चुकी है। इस पार्क का निर्माण इस साल प्रस्तावित है। योजना के पूरा होने में तीन साल का वक्त लगेगा।
डिजिटल होने के साथ ही बिहार अपने अपने कार्यक्षेत्र को अब और विस्तार देने में जुटा है। दाखिल-खारिज की प्रक्रिया को भी ऑनलाइन कर दिया है। दाखिल-खारिज वादों से जुड़े मामलों का निष्पादन ऑनलाइन शुरू होने से आम लोगों को अंचल कार्यालय जाकर दाखिल-खारिज याचिका जमा कराने के झंझट से मुक्ति मिल गई है। दाखिल-खारिज याचिका किसी भी स्थान से ऑनलाइन की जा सकेगी।
लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम की विधिवत शुरुआत के अब मोबाइल पर भी जनता की शिकायत सुनी जा सकती हैं और इनका समाधान किया जा सकता है। सरकार के साथ ही जनता को भी इस एप की वजह से काफी सहूलियतें हो गई है। अब सरकार के पास अधिकांश शिकायतें ऑनलाइन ही आ रही हैं।
अब जल्द ही बिहार की हर पंचायत हाई स्पीड इंटरनेट सेवा से जुड़ जाएगी। इस महीने के अंत से सभी पंचायतों को हाई स्पीड इंटरनेट सेवा से जोडऩे का काम शुरू होगा। केंद्र सरकार की भारत नेटसेवा से पंचायतों को इंटरनेट कनेक्टिविटी दी जानी है।
बिहार में भी इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग ने तेजी पकड़ी है। आंकड़ों के अनुसार बिहार में 37,61,814 बैंक ग्राहक मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल कर रहे। इंटरनेट बैंकिंग के साथ 36,17,066 ग्राहक जुड़े हैं। वैसे ग्रामीण व सहकारी बैंकों में यह यह सुविधा अभी शुरू नहीं हुई है।
राज्य सरकार के निर्देश पर सूचना एवं प्रावैधिकी विभाग राज्य के सामाजिक सेवा से जुड़े पेंशनरों के साथ ही राज्य सरकार से सेवानिवृत्त कर्मचारियों के आंकड़ों का भी संधारण कर रहा है। आंकड़े प्राप्त होने के बाद पेंशन व्यवस्था को पूरी तरह से डिजिटलाइज कर दिया जाएगा।
राज्य के सभी विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों में निश्शुल्क वाई-फाई के माध्यम से इन्टरनेट की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। कार्यकारी एजेंसी अगले पांच वर्ष तक योजना का रखरखाव करेगी। सात निश्चय के तहत शुरू इस योजना पर 2.45 अरब रुपये खर्च किए गए हैं। योजना के तहत 300 कॉलेजों और दर्जन भर विवि को फ्री वाई-फाई सेवा से जोड़ा जा चुका है।
स्टेट डाटा सेंटर का निर्माण सूचना एवं प्रावैधिकी विभाग के द्वारा आधुनिकतम तकनीक पर किया गया है। इसे आइएसओ270001 सर्टिफिकेट प्राप्त है। योजना के लिए सरकार ने 7.30 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं।
राज्य सरकार सर्विस प्लस फ्रेमवर्क लागू करने जा रही है। वत्र्तमान समय में श्रम संसाधन विभाग के 32 सेवाओं को इस फ्रेमवर्क पर माइग्रेट किया जा चुका है। इस योजना के लिए 3.0 करोड़ रुपये स्वीकृत हैं।
सूचना एवं प्रावैधिकी विभाग ने पहल करते हुए अपना निबंधन आधार सर्विस एजेंसी के रूप में यूआइडीएआइ से कर लिया है। जिसके बाद यह सुविधा निश्शुल्क सभी सरकारी विभागों को उपलब्ध हो गई है।
सरकारी कार्यालयों में कार्यसंस्कृति में पारदर्शिता एवं सुधार लाने के उद्देश्य से ई-ऑफिस परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। फिलहाल 18 विभागों, नौ निगमों और दो जिलों में इसका क्रियान्वयन हो रहा है।
नालंदा विश्वविद्यालय के निकट राजगीर में 111.17 एकड़ जमीन पर आइटी सिटी के निर्माण की योजना के लिए जमीन चिन्हित की जा चुकी है। योजना के लिए अब तक 43.54 करोड़ जमीन भुगतान के लिए दिए गए हैं।
आइटी प्रक्षेत्र में कार्यरत 31 स्टार्ट-अप कंपनियों को बिस्कोमान टावर की 9वीं और 13वीं मंजिल पर जगह दी गई है। यह प्लग और प्ले की सुविधा है। सिर्फ लैपटॉप का प्लगइन करिए और काम शुरू कर दीजिए।
बिहार कौशल विकास मिशन के तहत राज्य के युवाओं को आइटी प्रक्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु 60 कौशल विकास केन्द्रों के साथ एकरारनामा किया गया है। जिसका उद्घाटन इस वर्ष फरवरी महीने में हो चुका है।
आइटी सेक्टर के विकास के लिए वर्ष 2018-19 में राज्य सरकार ने 2.35 अरब रुपये का बजट निर्धारित किया है। यह राशि जो खर्च की जाएगी उसकी कार्य योजना पूरी तरह से तैयार है।
– फ्री वाई-फाई योजना – 52 करोड़
– नॉलेज सिटी – 15 करोड़
– कैपिसिटी बिल्डिंग – 12 करोड़
– स्टेट डाटा सेंटर – 20 करोड़
– ई-गवर्नेंस – 28.29 करोड़
– सकलैन – 2 – 10 करोड़
– नेक्स्ट जेन, बिस्वान – 2 – 60 करोड़
– स्किल डेवलपमेंट मिशन – 3 करोड़ रुपये
आइटी सेक्टर का विकास राज्य सरकार की प्राथमिकता में है। राज्य सरकार के निर्देश पर कई विशेष योजनाओं पर काम चल रहा है। पंचायतों को नेट कनेक्टिविटी, मेगा आइटी इंफ्रास्ट्रक्चर को उचित स्थान पर विकसित किए जाने का प्रस्ताव है। योजना के लिए राजगीर में जमीन चिन्हित की गई है।
जापान ने भी बोधगया में में आइटी में निवेश की इच्छा जाहिर की है। हमने आइटी में काफी विकास किया है और आने वाले कुछ समय में हम दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण भी बन जाएंगे। हमारी ऐसी कवायद चल रही है।