शहर विकास की तरफ बढ़ तो रहे हैं, लेकिन अब भी सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। इसमें कोई दोराय नहीं कि सुरक्षा को शहर के जिम्मेदार लोगों के सहयोग के बिना नहीं सुधारा जा सकता। प्रशासन और पुलिस के साथ निवासियों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे शहर की सुरक्षा के लिए आगे आएं, ताकि अपराध पर अंकुश लग सके। शहरों को बेहतर बनाने के लिए दैनिक जागरण ने जुलाई में ‘माय सिटी माय प्राइड’ अभियान शुरू किया। जिसमें शहर के ऐसे खास लोग सामने आए हैं, जिन्होंने सुरक्षा के लिए मुहिम छेड़ी है।
ऐसी ही मिसाल मेरठ की पल्लवपुरम फेज-वन कॉलोनी में देखने को मिली है, जहां रेजीडेंस वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार सिंह की पहल के बाद अपराध का ग्राफ काफी गिरा है। उन्होंने न सिर्फ कॉलोनी में सुरक्षा के खास इंतजाम करवाए, बल्कि वेंडरों के लिए भी पास सिस्टम बनाया। वहीं शहर के एक और निवासी नरेंद्र चौधरी ने 15 लोगों की टीम की बदैलत अपनी कॉलोनी में ब्लॉक वाइज सुरक्षा का जिम्मा उठाया है। उनकी कोशिशों से कॉलोनी में 50 से अधिक कैमरे लगे हैं। साथ ही चार सुरक्षा गार्ड 24 घंटे कॉलोनी के मुख्य गेट पर मौजूद रहते हैं। यहीं की एक और निवासी भावना शर्मा शहर के स्कूल औक कॉलेजों में जाकर बेटियों को आत्मरक्षा के गुर सिखा रही हैं।
निवासियों के साथ पुलिस भी पीछे नहीं है। इंदौर के डीआईजी हरिनारायणचारी मिश्र ने शहर के 20 हजार से ज्यादा वरिष्ठ नागरिकों के कार्ड तैयार करावाएं हैं और विभाग उन्हें कई तरह की रियायतें भी उपलब्ध कराता है। शहर में आत्महत्या जैसी वारदातों के रोकने के लिए पुलिस ने हेल्पलाइन की शुरुआत की है। नगर निगम और पुलिस की संयुक्त कोशिश से कई अपराधी शहर छोड़ने को मजबूर हुए हैं। समाज, शहर की सुरक्षा के साथ खुद की हिफाजत भी बेहद जरूरी है और इसी मकसद से किरन नेगी देवली देहरादून में छात्राओं और महिलाओं को मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग दे रही हैं। उनके प्रयासों से अब तक 400 से अधिक लोगों को ट्रेन किया जा चुका है। ताकि विपत्ति के समय वे अपनी आत्मरक्षा करने में सक्षम हो सकें।
इसी तर्ज पर पटना के डीआईजी शालिन ने भी शहर में बड़ी मिसाल पेश की है। ट्रैफिक नियमों को सख्ती से लागू करते हुए उन्होंरने शहर में बिना हेल्मेट बाइक-स्कूटी, लहरिया कट और ट्रिपलिंग करने वालों के खिलाफ अभियान चलाया। इतना ही नहीं, उन्होंने अभियान की मॉनीटरिंग भी खुद की। इस दौरान जमकर चालान काटे, 80 लापरवाह पुलिसकर्मियों पर गाज गिरी, तो 50 से अधिक को पुरस्कार भी मिला।
सुरक्षा के साथ ही खनन माफियाओं पर भी पुलिस ने लगाम लगाए। पटना के आइजी नैय्यर हसनैन खान के नेतृत्व में एसआइटी गठित कर एक दर्जन से अधिक बालू माफियाओं को जेल भेजा गया। अपराधी ही नहीं, बल्कि दोषी पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई की गई। इससे लोगों के बीच पुलिस की छवि में सुधार हुआ है। लखनऊ की ऊषा विश्वकर्मा महिलाओं को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग दे रही हैं। इसके लिए एक ओर जहां उन्होंने रेड ब्रिगेड का गठन किया है, दूसरी तरफ ‘सुरक्षित महिलाएं, सुरक्षित लखनऊ’ विशेष अभियान भी चलाया है। इसके तहत फिलहाल 10,000 छात्राओं और महिलाओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
कठोर कानून बनाए जाने के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं। लखनऊ की रेनू मिश्रा ऐसी ही शोषित और पीड़ित महिलाओं के लिए मुफ्त में कानूनी सलाह देती हैं और उनके अधिकारों की लड़ाई न्यायालय में लड़ती हैं। उनका मकसद है कि आधी आबादी को सम्मान के साथ पूरी सुरक्षा भी मिलना चाहिए। पटना की तरह ही लुधियाना के कुमार गौरव ने भी 2009 में अपने शहर में दोपहिया वाहन चलाने वालों के लिए एक अभियान चलाया, जो कि सभी को हेल्मेट पहनने के लिए जागरूक करता है। इसके लिए उन्होंने ‘युवा द स्ट्रेंथ’ नाम का एक एनजीओ भी बनाया। हेलमेट पहनने के साथ ही वह महिलाओं को सुरक्षित रहने के लिए भी जागरूक करते हैं।
दिल्ली के निर्भया कांड से लुधियाना की मोना लाल इतनी आहत हुईं कि उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा के लिए अपने शहर में सीटी देने की पहल शुरू की। इसके अंतर्गत महिलाओं को सीटी दी गई, ताकि जैसे ही उन्हें कोई मानसिक या शारीरिक तौर पर परेशान करे तो वे फौरन सीटी बजाएं। जिससे आसपास के लोगों को इसका पता चल सके और इस तरह से उनकी मदद हो सके। इस तरह के प्रयास दूसरे शहरों में भी किए जा सकते हैं। तकनीक से महिलाओं को कैसे सुरक्षित किया जा सकता है , ये तो प्रितपाल सिंह से सीखा जा सकता है। उन्होंने महिला सुरक्षा के लिए शक्ति एप बनाया। संकट के समय इसे इस्तेमाल करने से अलर्ट कंट्रोल रूम में पहुंच जाता है और पुलिस मौके पर पहुंचकर महिलाओं की मदद करती है।