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अफवाहें फैलाने के लिए होने लगा था बदनाम, केरल बाढ़ में Whatsapp यूं बना ‘भगवान’

पिछले कुछ महीने से सोशल मीडिया और खासकर व्हाट्सएप अफवाह फैलाने और अप्रिय घटनाओं के लिए बदनाम हुआ है। लेकिन केरल के बाढ़ पीडितों के लिए यह वरदान बनकर सामने आया। बाढ़ की विभिषिका शुरू होने के चंद घंटों के अंदर ही केरल में व्हाट्सएप के हजारों ग्रुप बन गए।

व्हाट्सएप की मदद से जरूरतमंद लोगों की पहचान और राहत व बचाव कार्य में लगी एजेंसियों के लिए उनतक पहुंचना आसान हो गया है। यही नहीं, त्रिवेंद्रम के टेकपार्क की आईटी कंपनियों में काम करने वाले युवाओं ने बाढ़ में फंसे लोगों की सटीक जानकारी हासिल करने के लिए विशेष एप भी बना दिया।

केरल विभिषिका में व्हाट्सएप के इस्तेमाल का सबसे बेहतर उदारण हैं जोहान बिन्नी कुरूविला। पेशे से ट्रैवलर ब्लागर जोहान, त्रासदी शुरू होने के तत्काल बाद एक साथ पांच व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ गए। ग्रुप में उन्होंने सबको बता दिया वे सेना और पुलिस के नेटवर्क जुड़े हैं और किसी भी सहायता के लिए उनसे संपर्क किया जा सकता है। इसके बाद उनके पास राहत और बचाव के लिए प्रतिदिन 300 कॉल आने लगे। जिसे उन्होंने जमीनी स्तर पर काम कर रहे एजेंसियों तक पहुंचाया और हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया।

त्रिवेंद्रम में रहने वाले रेलवे के डिविजनल मैनेजर विज्जु, जो खुद ऐसे ही व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़े हैं, कहते हैं कि आम जनता और सामाजिक संगठनों ने इन्हीं व्हाट्सएप ग्रुप की मदद से न सिर्फ जरूरतमंद लोगों की पहचान की, बल्कि समय रहते उन्हें सुरक्षित स्थानों तक भी पहुंचाया। उनके अनुसार राहत और बचाव कार्य की पूरी जिम्मेदारी एक तरह से आम लोगों ने अपने हाथों में ले ली थी, सोशल मीडिया के माध्यम से सेना, वायुसेना, नौसेना, एनडीआरएफ के साथ लगातार समन्वय बनाए हुए थे। त्रिवेंद्रम के मछुआरे, जिन्होंने बचाव कार्य में बड़ी भूमिका निभाई, भी इन्हीं व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से जरूरतमंदों तक पहुंच रहे थे।

त्रिवेंद्रम के आईटी पार्क में इंफोसिस समेत कई बड़ी आईटी कंपनियों के दफ्तर हैं। यहां काम करने वाले हजारों युवा भी राहत और बचाव कार्य में पूरी तरह से जु़टे रहे। इन युवाओं ने लाइफहंटरजेड डॉट कॉम के नाम से नया एप विकसित कर लिया। इस एप की खासियत है कि जीपीएस के माध्यम से यह मोबाइल फोन की सटीक लोकेशन बता देता है। इसके लिए मोबाइल कंपनियों के पास जाने की जरूरत नहीं है।

जीपीएस की मदद से बाढ़ ग्रसित इलाकों को जूम करके यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति कहां और किस परिस्थिति में फंसा है। इसके बाद यह जानकारी राहत व बचाव कार्य में लगी टीम तक पहुंचा दी जाती थी। जाहिर है इससे सुदूर जंगल के बीच फंसे लोगों को ढूंढने और बचाने में काफी मदद मिली। 

कुछ लोगों ने सोशल मीडिया अफवाह फैला दी कि केरल में पेट्रोल और डीजल की कमी हो गई है। चंद घंटे के अंदर सभी पेट्रोल पंपों पर गाडि़यों की लंबी कतार लग गई। लेकिन सोशल मीडिया पर सक्रिय राहत और बचाव में लगे कार्यकर्ताओं ने तत्काल इसका खंडन किया और सही तस्वीर जनता के सामने रखी। जिस तरह से पेट्रोल पंपों पर लंबी कतार लगी थी, कुछ देर में वैसे ही वह गायब भी हो गई।

बाढ़ का पानी उतरने के बाद अब इसी सोशल मीडिया और व्हाट्सएप का इस्तेमाल साफ-सफाई, खाने-पीने और दवाई की जरूरतों के लिए किया जा रहा है। कई व्हाट्सएप ग्रुप में साफ सफाई के लिए निशुल्क कार्यकर्ता आधे घंटे के भीतर पहुंचाने का दावा किया जा रहा है, जो सही भी साबित हो रहा है। इसी तरह विभिन्न स्थानों पर खाने-पीने व दवाई और रोजमर्रा की जरूरतों के बारे में जानकारी जुटाने और उन्हें तत्काल पूरा करने का काम भी उसी सिद्दत के साथ किया जा रहा है।

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