सांप्रदायिक घटनाओं में ‘तेजी’ आई है. 48 वर्षीय राजू रहमान बीते 2 दशक से टिहरी जिले के घनसाली कस्बे में सर्राफे की दुकान चलाते हैं. देहरादून से 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित घनसाली में वह सालों से हिन्दू समुदाय के साथ शांति से रह रहे हैं. इलाके की खुशमिजाजी को तब नजर लग गई जब एक मुस्लिम लड़का कथित तौर पर एक किशोरी के साथ होटल में पकड़ा गया. यह घटना जल्द ही एक बड़े विवाद में बदल गई. पेशे से नाई 18 वर्षीय आजाद रिजवी को मारा गया और फिर उसके फिर उसके खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ. लड़की को भी शेल्टर होम भेज दिया गया.
रहमान ने कहा, ‘मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि क्यों इसी तरह की घटनाओं में तेजी आ रही हैं जिसमें अल्पसंख्यक शामिल होते हैं. सालों से कोई दिक्कत नहीं हुआ लेकिन अब मैं चिंतित हूं.’ हालांकि बजरंग दल सरीखे दक्षिणपंथी संगठनों को लगता है कि ऐसा बाहरियों के ‘आपराधिक गतिविधि’ की वजह से हो रहा है.
बजरंग दल से जुड़े दिनेश बिष्ट ने कहा, ‘गढ़वाल की पहाड़ियों में बहुत से बाहरी आ रहा है. वे कौन है और कहां से आ रहा है, उन्हें कौन पैसे दे रहा है.’ बिष्ट ने कहा, ‘समस्या खड़े करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा.’ घनसाली का मामला इकलौता नहीं है. इस साल अप्रैल में रुद्रप्रयाग जिला स्थित अगस्त्य मुनि मार्केट में एक फेसबुक पोस्ट के बाद अल्पसंख्यकों की दुकानों में तोड़फोड़ की गई. फेसबुक पोस्ट में दावा किया गया था कि एक लड़के ने लड़की का रेप किया है.
इसके अलावा बीते साल देहरादून-हरिद्वार हाईवे पर स्थित रायवाला में दो संप्रदायों के बीच, एक जोड़े के बीच ‘अवैध’ रिश्ता होने की वजह से झगड़ा हो गया. पुलिस को स्थिति संभालने में काफी वक्त लगा. इतना ही नहीं इस मामले में उत्तराखंड विधानसभा के स्पीकर पीसी अग्रवाल को हस्तक्षेप करना पड़ा.
बीते एक साल में गढ़वाल क्षेत्र में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में 13.95 फीसदी मुस्लिम आबादी है जो देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले में रहते हैं.
इस मुद्दे पर एसएमए काजमी ने कहा कि सांप्रदायिक विवाद, बड़े राजनीतिक खेल का हिस्सा हैं. उनका दावा है कि मार्च 2017 में बीजेपी की जीत के बाद ऐसी स्थितियों में उछाल आई है. काजमी ने कहा, ‘यह सिर्फ एक संदेश भेजने के लिए है. उत्तराखंड के कई मुस्लिम उत्तर प्रदेश से आकर छोटे-छोटे व्यापार करते हैं और अगर ऐसी घटनाएं जारी रहीं तो संभवतः वे अपने प्रदेश वापस लौट जाएंगे.’
साल 2000 में उत्तराखंजड, उत्तर प्रदेश से अलग हुआ था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से कई लोग उत्तराखंड, व्यापार करने आए. अधिकतर मुस्लिम सब्जी बेचने, नाई सरीखे और काम करते हैं. देहरादून में कारपेंटर का काम कर रहे मोहम्मद जमील ने बताया कि, उत्तराखंड में नौकरी का मौका मिलता है. मेरठ से मेरे और 5 परिजन यहां आए और काम कर रहे हैं.