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भारत में हर 5 मिनट में एक सुसाइड अटैम्प्ट, दो तिहाई सुसाइड टाले जा सकते हैं समय पर बात की जाए तो- एक्सपर्ट

पुरुषों की तुलना में महिलाएं सुसाइड का अटैम्प्ट ज्यादा करती हैं।

 

हेल्थ डेस्क.दुनियाभर में सुसाइड करने का परसेंटेज बढ़ रहा है। वहीं, ग्लोबल लेवल पर सुसाइड को एक अपराध की कैटेगिरी से हटाते हुए इसे एक बीमारी मान लिया गया है, जिसके चलते कमिटेड सुसाइड शब्द को गलत ठहराया जा रहा है। इस शब्द का इस्तेमाल बंद करते हुए “डाइड बाइ सुसाइड’ यूज करने की सलाह दी जा रही है ताकि सुसाइड अटैम्प्ट को एक स्टिग्मा की तरह नहीं लिया जाए। मनोचिक्त्सिक डॉ. अनिल तांबी और डॉ. योगेश सतीजा से जानते हैं कब सुसाइट अटैम्प्ट की स्थिति बनती है…

 

मेडिकल साइंस ने सुसाइड को बीमारी करार दिया

अब कार्डियक अटैक, एक्सीडेंट या फिर अन्य बीमारियों से होने वाली डेथ की तरह ही सुसाइड डेथ है क्योंकि मेडिकल साइंस में सुसाइड को एक बीमारी माना जा चुका है। अन्य बीमारियों के जैसे ही इसके लक्षण भी शुरुआती स्टेज में आना शुरू हो जाते हैं। उन लक्षणों को पहचानते हुए इलाज शुरू कर दिया जाए, तो लोगों की जान बचाई जा सकती है। मनोचिकित्सकों के मुताबिक, सुसाइड करने से पहले ही लोग सिग्नल देना शुरू कर देते हैं लेकिन अक्सर उनको धमकी मानते हुए नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसके चलते मेंटल हैल्थ खराब होना शुरू हो जाती है। व्यक्ति परेशान होकर सुसाइड कर लेता है जबकि इसे शुरुआती स्टेज पर ही काफी हद तक रोका जा सकता है। डाइड बाइ सुसाइड का इस्तेमाल करके सोसायटी को यह मैसेज देना है कि इसमें बीमारी की तरह डेथ होती है। डिप्रेशन भी एक बीमारी है। इसका इलाज नहीं होने के कारण डेथ हुई है। यह जान-बूझकर की गई गलती नहीं है। बीमारी से ग्रसित होने वाले लोग ही ऐसा करते हैं।

 

 

कैसे पहचानें सुसाइड के सिग्नल्स

नींद न आना, मन उदास रहना, काम-काज की इच्छा नहीं रहना, भूख नहीं लगना, एकाग्रता की कमी, व्यवहार में बदलाव आना, अकेले रहना, गुमसुम रहना। कोचिंग जाना बंद कर देना। कमरे में अकेले बैठना। इन लक्षणाें के आधार पर दो-तिहाई लोग सुसाइड का सिग्नल देते हैं। ऐसे लक्षण दिखने ट्रीटमेंट जरूर कराएं।

 

 

कितने तरह का होता है सुसाइड

कंप्लीट और अटैम्प्ट सुसाइड। कंप्लीट सुसाइड में व्यक्ति की डेथ हो जाती है। यदि बीस लोग सुसाइड का प्रयास करते हैं, तो उनमें से एक व्यक्ति ही सुसाइड कर पाता है। अटैम्प्ट करने वाले लोगों को अवॉइड नहीं करना चाहिए। ना ही उनके अटैम्प्ट को धमकी की तरह लेना चाहिए। ऐसे लोग ज्यादातर दुबारा अटैम्प्ट करते हैं।

 

ये हैंरिस्क फैक्टर

मेंटली अनहैल्थी, डिप्रेशन, बॉडर्र लाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर, सीजोफ्रेनिया, नशे की लत, खुद को बेइज्जत महसूस करना, लव में रिजेक्शन, एग्जामिनेशन में फेलियर। सोशल फैक्टर में बिना डिप्रेशन के भी सुसाइड हो सकता है। 80-90% लोग मेंटल इलनेस से ग्रसित होने के कारण सुसाइड करते हैं।

 

स्ट्रेस और पैसों की कमी बड़ा कारण

मेंटल इलनेस को डायग्नोस करना अासान हो चुका है। रिलेशनशिप में आने वाला स्ट्रेस और पैसों की कमी भी इस ट्रेंड के लिए जिम्मेदार है। अमेरिका में वर्ष 1999 से सुसाइड रेट में 30% तक इजाफा हुआ है। मेंटल हैल्थ कंडीशन सुसाइड के जिम्मेदार फैक्टरों में से एक है। सुसाइड होने के बाद अक्सर लोगों का एक ही सामान्य सवाल होता है। वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? डिप्रेशन और दूसरी तरह की मानसिक बीमारियां भी सुसाइड के रिस्क फैक्टर में शामिल हैं। इसलिए मेंटल हैल्थ के समर्थक डाइड बाइ सुसाइड टर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं। वाइटल साइन रिपोर्ट और सीडीसी के रिसर्चर के मुताबिक, सुसाइड के 54% केसों में किसी तरह की मेंटल इलनेस डायग्नोस नहीं हो पाती है।

 

समय पर डिप्रेशन का इलाज जरूरी

यह गलत धारणा है कि डिप्रेशन का इलाज संभव नहीं है। समय पर इलाज शुरू करने से ठीक हो जाता है। सीजोफ्रेनिया में अकेले में ही आवाजें सुनाई देती है। पेशेंट उन आवाज को सुनते हुए रेस्पॉन्स देना शुरू कर देता है, जबकि इन बीमारियों का इलाज करवाकर जान बचाई जा सकती है।

 

 

महिलाएं ​अधिक करती हैं अटैम्प्ट

 

पुरुषों की तुलना में महिलाएं सुसाइड का अटैम्प्ट ज्यादा करती हैं। एक पुरुष पर चार महिलाएं यह अटैम्प्ट करती हैं, जबकि कंप्लीट सुसाइड पुरुष ज्यादा करते हैं। एक महिला पर चार पुरुष ऐसा करते हैं। इसके अलावा पुरुष सुसाइड के लिए लेथल मैथड अपनाते हैं जिनमें बचने के चांस कम रहते हैं। फीमेल्स लेथल मैथड यूज नहीं करती हैं, इसलिए वे बच जाती हैं।

 

 

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