नई दिल्ली जब दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून देश के बड़े हिस्से में नुकसान पहुंचा रहा है तो क्या आपको अटलांटिक महासागर में तूफान के चाल-चलन पर नजर रखनी चाहिए? पिछले साल जो हुआ उसके मद्देजनर तो जरूर, अगर आप ईंधन पर हो रहे खर्च की चिंता करते हैं। अटलांटिक महासागर, कैरीबियाई समुद्र और मेक्सिको की खाड़ी वाले इलाके अटलांटिक बेसिन में आधिकारिक तौर पर तूफानी मौसम जून से शुरू होकर नवंबर तक रहता है। वैसे तो घातक तूफान कभी भी दस्तक दे सकता है, लेकिन इसका पीक सीजन मध्य अगस्त से अक्टूबर के आखिर तक का है।
सरकार ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों एवं वेनेजुएला की ओर से तेल उत्पादन में कटौती से पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों पर लोगों के अंदर उठे तूफान को तो शांत करने में शायद सफल रही, लेकिन अमेरिका के खाड़ी तट से तूफान उठा तो उसे एक बार फिर इसका सामना करना पड़ सकता है। पिछले वर्ष सितंबर-अक्टूबर महीने में पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान पर पहुंच गए थे जब अगस्त के आखिर और सितंबर की शुरुआत में हरिकेन हार्वी और इरमा तेजी से अमेरिका के खाड़ी तट से टकराया।
लेकिन अमेरिका में उठनेवाले इन तूफानों और भारत में तेल की कीमतों के बीच क्या संबंध है? दरअसल, कच्चा तेल और रिफाइन्ड उत्पादों का वैश्विक व्यापार आपस में जुड़ा हुआ है। मसलन, जब दो तूफानों से खाड़ी तट स्थि अमेरिका की रिफाइनिंग कपैसिटी का एक चौथाई हिस्सा प्रभावित हो गया तो प्रॉडक्ट की ढुलाई का पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर चरमरा गया।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, अमेरिका के पास वाहनों में इस्तेमाल होनेवाला 20 करोड़ बैरल ईंधन के भंडार हैं। इससे अमेरिका में तीन हफ्ते तक वाहनों के पहिये घूमते रह सकते हैं, लेकिन ये भंडार पेट्रोल पंपों से बहुत दूर टैंक फार्म्स में हैं। इससे जमीनी स्तर पर ईंधन की कमी हो गई। रिफाइनरियों में कामकाज शुरू होने में देर होने से ईंधन का संकट और बढ़ गया। दरअसल, दोबारा संचालन में आने के बाद भी रिफाइनरियों में क्षमता से कम उत्पादन हुआ।
यही वजह है कि अमेरिका को पेट्रोल-डीजल का आयात करना पड़ गया। अब जब अमेरिका और ईंधन के लिए उस पर रहनेवाले पड़ोसी देश जरूरी मात्रा में ईंधन की आपूर्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर हो गए तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें दुनियाभर में बढ़ गईं। यहां तक कि अमेरिकी शेयर बाजार में भी ईंधन की कीमतें चढ़ गईं।
चूंकि भारत में ईंधन की कीमत निर्धारण पद्धति अंतरराष्ट्रीय कीमतों और रुपया-डॉलर के एक्सचेंज रेट पर निर्भर है, इसलिए पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ना अवश्यंभावी है। अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव का भारतीय बाजार पर असर और भी बढ़ चुका है क्योंकि दो महीने पहले सरकारी पेट्रोल पंपों ने पाक्षिक की जगह दैनिक बदलाव का नियम लागू कर दिया।