भारतीय उप-महाद्वीप में पहली बार उत्तर प्रदेश के सोनौली में एक कब्रगाह से पूर्व लौह युग या कांस्य युग का एक रथ का प्रमाण मिला है. वैसे तो राखीगढ़ी, कालीबंगन और लोथल से पहले भी कई कब्रगाह खुदाई के दौरान मिलें हैं लेकिन ये पहली बार है जब कब्रगाह के साथ रथ भी मिला है. रथ मिलने के बाद एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे महाभारत काल और हड़प्पा काल में घोड़े की उत्पत्ति को लेकर भी कई नए तथ्य सामने आ सकते हैं.
पुरातत्वविदों द्वारा सोमवार को बताया गया कि पहली बार किसी कब्र से रथ भी मिला है. खुदाई मार्च 2018 में एसके मंजुल व सह-निदेशक अरविन मंजुल सहित 10 सदस्यों की एक टीम द्वारा शुरू की गई थी.
मंजुल ने बताया कि उस समय मेसोपोटामिया, जॉर्जिया और ग्रीक सभ्यता में रथ पाए जाने के प्रमाण मिलते हैं लेकिन अब भारतीय उप महाद्वीप में इसके साक्ष्य मिलने के बाद हम कह सकते हैं इन सभ्यताओं की तरह ही भारतीय उप महाद्वीप में भी लोग रथों का प्रयोग करते थे. इससे एक दूसरा तथ्य भी निकल के आता है कि पूर्व लौह युग में हम लोग लड़ाकू प्रजाति के थे.
कहां मिला पहली बार रथ का प्रमाण?
एक बड़ा सवाल ये है कि अगर उस वक्त रथ था तो इसे खींचने के लिए किस जानवर का उपयोग किया जाता था – बैल या घोड़ा? पुरातत्वविदों का मानना है कि ज़्यादा संभावना है कि इसे खींचने के लिए घोड़े का प्रयोग किया जाता रहा होगा.
खास बात है कि इस रथ की बनावट बिल्कुल वैसी ही है जैसे इसके समकालीन मेसोपोटामिया आदि दूसरी सभ्यताओं में था. इस रथ के पहिए की बनावट ठोस हैं इसमें तीलियां नहीं हैं. रथ के साथ पुरातत्वविदों को मुकुट भी मिला है जिसे रथ की सवारी करने वालों द्वारा पहना जाता रहा होगा.
रथों के बारे में वर्णन ऋग्वेद में मिलता है जिससे सिद्ध होता है कि दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भारतीय उप महाद्वीप में रथ थे. ऋग्वेद में देवताओं जैसे उषा और अग्नि द्वारा रथ की सवारी का वर्णन है. मंजुल ने कहा कि ताम्र पाषाण युग में घोड़ों का प्रमाण मिलता है.
अगर इतिहास में जाएं तो हम पाते हैं कि मेसोपोटामिया, उत्तरी कॉकेशस व सेंट्रल यूरोप में 400 ईसा पूर्व में पहिए वाले वाहनों का प्रमाण मिलता है. लेकिन अभी भी यह तय नहीं हो पाया है कि पहली बार किस सभ्यता ने पहिए वाले वाहनों का निर्माण किया.
क्यों किया गया रिसर्च?
2005 में खुदाई के दौरान सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित 116 कब्रगाहें मिली थीं. पुरातत्वविद इस पर आगे और रिसर्च करना चाहते थे. इसलिए इस जगह से सिर्फ 120 मीटर की दूरी पर फिर से खुदाई की गई. इस खुदाई में रथ मिला. इस जगह पर 8 कब्रगाहों की खुदाई की गई. हर कब्रगाह लौह युग के बारे में अलग ही कहानी कहती है. इन कब्रगाहों से उस काल के लोगों के रहन-सहन, संस्कृति, कला का पता चलता है.
क्या मानना है दूसरे इतिहासकारों का?
इतिहासकार डीएन झा का कहना है कि वैदिक काल में घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथों का वर्णन मिलता है. हालांकि लोहे का प्रमाण उत्तर वैदिक काल में मिलता है. कई विद्वानों ने महाभारत के समयकाल के बारे में लिखा है. लेकिन डीन झा का कहना कि उन्हें नहीं पता कि किसने रथ का प्रमाण महाभारत का समयकाल निर्धारित करने के लिए किया है.
वी एस सूक्तांकर के अनुसार, महाभारत की रचना कई शताब्दियों में हुई है. एक सामान्य मान्यता है कि इसकी रचना 400 ईसा पूर्व से लेकर 400 ईस्वी के बीच हुआ. हालांकि कुछ लोग महाभारत काल को और छोटा बताते हैं. लेकिन डीएन झा का कहना है कि किसी भी हालत में महाभारत की रचना किसी एक रचनाकार द्वारा नहीं की गई और यही कारण है कि महाभारत काल के सही समय को निर्धारित करना काफी मुश्किल है.