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जानिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों में अचानक इतनी तेजी क्यों आई

petrol-diesel price

नई दिल्ली : अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में तेजी से डीजल की कीमत 61.74 रुपये तथा पेट्रोल 71 रुपये प्रति लीटर से ऊपर पहुंच गया है। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के दैनिक ईंधन मूल्य सूचना के अनुसार, दिल्ली में सोमवार को पेट्रोल के दाम 71.18 रुपये प्रति लीटर रहा, जो अगस्त 2014 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है। वहीं, डीजल की कीमत दिल्ली में 61.74 रुपये लीटर के उच्च स्तर पर पहुंच गयी।

मुंबई में यह 65.74 रुपये प्रति लीटर के भाव पर बेचा जा रहा है जिसका कारण स्थानीय बिक्री कर या वैट का अधिक होना है। तेल कंपनियों के अनुसार, 12 दिसंबर 2017 के बाद तेल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। उस दिन डीजल की कीमत 58.34 रुपये प्रति लीटर थी। पिछले एक महीने में इसमें 3.40 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि हुई है। इस दौरान पेट्रोल के दाम 2.09 रुपये लीटर बढ़े।

वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के व्यापार के दो प्रमुख मानकों ब्रेंट तथा वेस्ट टेक्सास इंटीमीडिएट में दिसंबर 2014 के बाद काफी तेजी आयी है। ब्रेंट क्रूड 70.05 डाॅलर प्रति बैरल जबकि डब्ल्यूटीआई 64.77 डालर पर पहुंच गया। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से रसोई गैस के दाम भी बढ़ने की संभावना बन गयी है।

क्यों बढ़े दाम ?

गौरतलब है कि पेट्रोल और डीजल पर कुछ साल पहले सब्सिडी खत्म कर दी गई थी। लोकल टैक्स की वजह से राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में अंतर रहता है। ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) और रूस के प्रॉडक्शन में कटौती के लिए अग्रीमेंट का बढ़ना पिछले 6 महीने में फ्यूल की कीमतों में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण रहा है। तेल उत्पादक देशों ने कीमतों में हालिया बढ़ोतरी के बावजूद प्रॉडक्शन में कटौती जारी रखने का फैसला किया है। मजबूत इकनॉमिक ग्रोथ के बीच ऑइल की डिमांड में इजाफा हो रहा है और इसके चलते कीमतों में तेजी आ रही है।

देश में कैसे तय होती है कीमत ?

सरकारी तेल कंपनियों का देश के फ्यूल रिटेल मार्केट के 90 पर्सेंट से ज्यादा पर कब्जा है। कंपनियां मार्केटिंग मार्जिन, डीलर कमीशन और सरकारी शुल्कों को जोड़कर पेट्रोल और डीजल की रिटेल कीमत तय करती हैं। फ्यूल के रिफाइनरी गेट प्राइसेज पेट्रोल और डीजल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों से जुड़े हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय मार्केट में पेट्रोल और डीजल की कीमतें मोटे तौर पर क्रूड प्राइसेज की तर्ज पर चलती हैं, हालांकि किसी खास फ्यूल की डिमांड-सप्लाई समीकरण, रिफाइनिंग या ट्रांसपोर्टेशन कपैसिटी की दिक्कतों और अन्य कारोबार या भूराजनैतिक घटनाओं का भी इन पर असर दिखाई देता है।

विकास योजनाओं पर बढ़ती कीमतों का असर

क्रूड की ऊंची कीमतें भारत जैसे तेल की भारी खपतवाले देशों के लिए अच्छी नहीं हैं। भारत अपनी जरूरत का करीब 82 पर्सेंट हिस्सा आयात करता है। तेल की ऊंची कीमतें महंगाई को बढ़ाती हैं और इससे आरबीआई के लिए रेट कट करना मुश्किल होता है। इससे विदेशी मुद्रा की डिमांड बढ़ती है और सरकार के पास विकास के लिए कम पैसा बचता है।

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