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लालू ने जज से कहा- सर, रिहा कर देते तो चूड़ा-दही खाते, जज ने दिया ये जवाब 

रांची : सीबीआइ विशेष कोर्ट में बुधवार को लालू प्रसाद और जज के बीच संवाद से तीन दिन पहले शनिवार को मिली सजा का गम काफूर होता दिखा। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव अपने ही अंदाज में चुटीली बातें करते दिखे तो जज भी नहले पर दहला दे रहे थे। जहां लालू का अपना अंदाज दिखा वहीं जज साहब की अपनी मर्यादा थी।

मौका चारा घोटाले के दुमका कोषागार से अवैध निकासी के मामले में लालू प्रसाद की पेशी का था। लालू प्रसाद ने न्यायालय के समक्ष अपनी बातें रखीं। सजायाफ्ता लालू प्रसाद बुधवार को निर्भीकता के साथ अपनी बातें बोल गए। लालू के सवालों पर जज ने मौखिक टिप्पणी की। कई बार ठहाके भी लगे।

लालू : चूड़ा-दही हमलोग संक्रांत में खाते थे, अब क्या करेंगे सर?

जज : हम यहीं व्यवस्था कर देंगे। कितना दही चाहिए।

लालू : ई विभाग तो हम यादव लोगों का ही है सर, रिहा होकर जाते तो आपको भी बुलवाकर चूड़ा-दही खिलाते। आप हमलोग को रिहा करेंगे न सर तो तीन-चार दिन इधर जंगल में ही रह जाएंगे।

लालू : हमलोग को एक ही दिक्कत है महोदय कि जेल अधीक्षक सप्ताह में एक ही दिन किसी से मिलने देते हैं वह भी तीन व्यक्ति से ही मिल सकते हैं। जेल में मिलने वाला इंतजाम कीजिए न सर। जेल में आपका हुकूम जाना चाहिए। जैसे.. आपका हुकूम हुआ तो हमलोग चले आए। खाना भी नहीं खाया सर। यहां तो हार्डकोर टाइप का रखा जाता है। जेल प्रशासन का रवैया हमलोगों के प्रति ठीक नहीं है। टॉर्चर किया जाता है। हुजूर, आपके पास तो बहुत पावर है। जिसको चाहिए नाक इधर घुमा दीजिएगा। जजमेंटवा में तो यही न हुआ है।

जज : सिविल कोर्ट में कर दें क्या। मिलने के लिए ही तो कोर्ट बुलाते हैं। जेल मैनुअल बदलने का पावर तो विधायिका का है। वही कानून बनाता है। रात नहीं होगा तो दिन का महत्व नहीं। प्रशासन के लोगों ने फोन कर कहा था कि वीडियो कांफ्रेसिंग से पेश कीजिए, लेकिन हम ही आपलोगों को यहां बुलाते हैं।

लालू : नहीं सर कोर्ट में व्यवस्था नहीं। जेल में ही सभी से मिलने दिया जाता। फिर लालू ने थोड़ी धीमी आवाज में कहा, यहां बुला-बुलाकर खबर देते रहिए।

लालू : सजा के दिन हम एक शब्द नहीं बोले थे सर। हमने कहा कि वकील भी हैं। आप बुलाकर तीन की जगह साढ़े तीन वर्ष सजा दे दिए।

जज : हमारे ऊपर भी तो कोई है। हमारी लिमिट है। कानून के अनुरूप सजा दी गई। हम न तीन वर्ष किए न पांच, बीच का काम किया है।

लालू : अच्छा तो एक और भी ममलवा है न सर, देख लीजिएगा, उसमें तीन वर्ष ही सजा कीजिएगा। बेल मिल जाएगा। बाकी वाला का फैसला भी जल्दी कर दीजिए सर।

जज : हमने सजा के लिए लिमिट बनाया था। हम जजमेंट में सजा लिखकर नहीं रखे थे। माइंड में तीन कैटेगरी बनाकर रखे थे और सजा सुना दी।

लालू : कोर्ट में आने में धक्का-धुक्की होती है।

जज : बोलिए न कहां खाली कराना है। आपको इतनी सुरक्षा दी गई है। कोर्ट परिसर में तो आपके कार्यकर्ता ही रहते हैं।

जज : आपलोग को ओपन जेल में रखने के लिए अनुशंसा किया हूं। वहां सभी सुविधा है। शौचालय से लेकर कमरा व टीवी तक है। अक्टूबर में हम वहां गए थे। स्थिति खराब हो रही है। आपलोग वहां रहेंगे तो उसकी भी व्यवस्था सुधर जाएगी। फालतू में यहां अपराधियों के साथ रहेंगे। उन्होंने कहा कि एक अधिवक्ता ने पूछा कि कठोर सजा सुनाई गई है कि साधारण। हमने कहा कि कठोर में पैसा मिलता है, साधारण में नहीं। इनको पैसे की क्या जरूरत है। इनको भी रहना चाहिए। परिवार के साथ रहेंगे। खाना परिवार बनाएगी और आपलोग खाएंगे। वह चरवाहा विद्यालय की तरह और हाथी का दांत साबित हो रहा है। सरकारी खर्च पर सभी व्यवस्था होगी।

लालू : ओपन जेल का नियम अलग है। हुजूर, जेल मैनुअल पढ़ लीजिए। उसके नियम भी पढि़ए। सात वर्ष से कम सजा वालों के लिए नहीं है। वह तो नक्सलियों के लिए बना है या जो आधा सजा काट चुके हैं उनके लिए। हमलोग जन नेता हैं। रांची जेल में मिलने की सुविधा दिला दीजिए। ओपन जेल में रखेंगे तो पूरे झारखंड के फोर्स को लगाना पड़ेगा। कम से कम 20 हजार फोर्स लगाना पड़ेगा। हमलोग भाग जाएंगे तो नरसंहार हो जाएगा। सुरक्षा की जिम्मेदारी आपकी है। जेल से कोर्ट लाया गया तो हाजत के भीतर रख दिया गया। सर, निकल कर देखें कि बाहर कितनी फोर्स लगी है।

जज : ओपन जेल पर सरकार को कानून बदलना चाहिए। नक्सली अपराध कर ओपन जेल में रहेंगे और आप लोग जेल में! नेता हो जननेता या कोई। हमलोग कानून के बाहर बात नहीं करते। सभी को नियम का पालन करना चाहिए। नरसंहार की बात करते हैं। बीच में एक अधिवक्ता बोल पड़े शहाबुद्दीन को देख रहे हैं?

वकील : हमलोगों के लिए भी ओपन जेल में घूमने-देखने की व्यवस्था कराएं सर।

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