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इन वजहों से IMA है नाराज, ये हैं मेडिकल कमीशन बिल के प्रावधान

नई दिल्ली : इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2017 को जन विरोधी और मरीज विरोधी करार देते हुए मंगलवार को देशभर के निजी अस्पतालों को 12 घंटे बंद रखने का आह्वान किया। लोकसभा में इस बिल के पेश होने के साथ ही इसका विरोध शुरू हो गया है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा द्वारा पेश इस विधेयक में नेशनल मेडिकल कमीशन के तहत चार स्वायत्त बोर्ड बनाने का प्रावधान है। इनका काम अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षा को देखने के अलावा चिकित्सा संस्थानों की मान्यता और डॉक्टरों के पंजीकरण की व्यवस्था को देखना होगा। नेशनल मेडिकल कमीशन में सरकार द्वारा नामित चेयरमैन व सदस्य होंगे जबकि बोर्डों में सदस्य सर्च कमेटी के जरिये तलाश किए जाएंगे। यह कैबिनेट सचिव की निगरानी में बनाई जाएगी। पैनल में 12 पूर्व और पांच चयनित सदस्य होंगे।

साथ ही इस बिल में साझी प्रवेश परीक्षा के साथ लाइसेंस परीक्षा आयोजित कराने का प्रस्ताव है। सभी स्नातकों को प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस परीक्षा को पास करना होगा। बिल के जरिये सुनिश्चित किया जा रहा है कि सीटें बढ़ाने और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स शुरू करने के लिए संस्थानों को अनुमति की जरूरत नहीं होगी।

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक इस विधेयक का मकसद देश की चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में बदलाव लाने के अलावा इसे भ्रष्टाचार और अनैतिक गतिविधियों से मुक्त कराना है। विधेयक पेश होने के बाद कांग्रेस सदस्यों ने इसे संसद की स्थायी समिति को सौंपने की मांग की, लेकिन लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया।

इस बिल में आयुर्वेद सहित भारतीय चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों को ब्रिज कोर्स करने के बाद एलोपैथी की प्रैक्टिस की इजाजत दी गई है। आईएमए का कहना है कि इससे बड़े पैमाने पर चिकित्सा का स्तर गिरेगा और यह मरीज की देखभाल और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ होगा। आईएमए का कहना है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति के तहत प्रैक्टिस के लिए एमबीबीएस का मानक बना रहना चाहिए।

मुख्य रूप से बिल को लेकर आईएमए की आपत्ति है कि इस आयोग में राज्यों की भागीदारी नहीं है। ब्रिज कोर्स को एमबीबीएस के बराबर का दर्जा दिया जा रहा है। साथ ही नीट परीक्षा का स्तर काफी उच्च रखा गया है, जिससे सिर्फ 40 फीसदी स्टूडेंट ही परीक्षा पास कर पाएंगे। इसको एम्स के बराबर दर्जा दिया गया है, जिससे आम स्टूडेंट परेशानी में पड़ सकते हैं।

नेशनल मेडिकल कमीशन को बिल के उस प्रवाधान पर भी ऐतराज है जिसमें मैनेजमेंट सीटों की फीस तय करने का अधिकार दिया गया है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में 15% सीटों का फीस मैनेजमेंट तय करती थी लेकिन अब नए बिल के मुताबिक मैनेजमेंट को 60% सीटों की फीस तय करने का अधिकार होगा।

आईएमए ने इस विधेयक को जन विरोधी और मरीज विरोधी बताते हुए कहा कि एक तरफ यह विधेयक भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लाया जा रहा है, जबकि इससे भ्रष्टाचार की बाढ़ आ जाएगी। आईएमए ने कहा है कि उन्हें ये बिल उन्हें मंजूर नहीं है और ये बिल चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों के साथ-साथ मरीजों के लिए काला दिन है।

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