नई दिल्ली। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग बिल के खिलाफ डॉक्टरों के संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) व दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) खुलकर सामने आ गए हैं। दोनों संगठनों ने भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) को भंग कर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के गठन के प्रस्ताव को मेडिकल शिक्षा व मरीजों के हित के खिलाफ बताया है। आइएमए ने विरोध स्वरूप मंगलवार को देश भर के अस्पतालों में हड़ताल कर रही है। वहीं राज्यसभा में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि हमने इंडियन मेडिकल असोसिएशन से कल बात की। हमने उनकी बात सुनी और अपना पक्ष भी बताया।
इसके मद्देनजर डीएमए ने दिल्ली के सभी निजी अस्पतालों व नर्सिग होम में ओपीडी सेवा बंद रखने की घोषणा की है। साथ ही सरकारी अस्पतालों से भी हड़ताल में शामिल होने की अपील की है। निजी अस्पतालों व नर्सिग होम में सुबह छह से शाम छह बजे तक ओपीडी सेवा बंद रहेगी। इस दौरान अस्पतालों में आपात सेवाएं सामान्य रहेंगी। आइएमए के महासचिव डॉ. आरएन टंडन ने कहा कि एनएमसी के गठन का प्रस्ताव आम लोगों व गरीबों के हित के खिलाफ है।
यदि मौजूदा प्रावधानों के अनुसार एनएमसी का गठन हुआ तो मेडिकल शिक्षा में निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा। इससे मध्यमवर्गीय व गरीब परिवारों के बच्चे मेडिकल शिक्षा से महरूम हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि आयोग के प्रावधानों के अनुसार सरकार निजी मेडिकल कॉलेजों में सिर्फ 40 फीसद सीटों पर शिक्षा शुल्क लागू कर पाएगी। 60 फीसद सीटों पर सरकार का नियंत्रण नहीं रहेगा। उन सीटों पर निजी अस्पताल अपनी मर्जी से शुल्क तय कर सकेंगे।
एनएमसी के गठन के बाद मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए किसी के निरीक्षण की जरूरत नहीं पड़ेगी। सुविधाओं के निरीक्षण के बगैर मेडिकल कॉलेज खोले जा सकेंगे। स्नातकोत्तर की सीटें बढ़ाने व नया विभाग शुरू करने के लिए भी स्वीकृति की जरूरत नहीं होगी। डॉक्टरों का कहना है कि कॉलेज खोलने के पांच साल बाद उनमें सुविधाओं का निरीक्षण होगा। तब कमियां पाए जाने पर उन कॉलेजों पर पांच करोड़ से 100 करोड़ रुपये जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है। इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
डीएमए के सचिव सतीश त्यागी ने कहा कि एमबीबीएस पास करने के बाद डॉक्टरों को संयुक्त एग्जिट परीक्षा देने के लिए बाध्य करना भी उचित नहीं है। मेडिकल संगठनों का कहना है कि 25 सदस्यीय एनएमसी में सिर्फ पांच निर्वाचित सदस्य होंगे जबकि 20 सदस्य सरकार से मनोनीत होंगे। इससे आयोग में डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा। इसलिए आइएमए ने मांग की है कि आयोग में हर राज्य से एक डॉक्टर को निर्वाचित किया जाना चाहिए।