नई दिल्ली- क्रूड ऑयल की कीमतों को लेकर जारी कयासों के बीच एक अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ ने ऐसी भविष्यवाणी कर दी है जिससे समूचे उद्योग जगत में हड़कंप मचा हुआ है। लांगव्यू इकोनॉमिक्स नाम की एक एजेंसी के प्रमुख स्ट्रेटजिस्ट क्रिस वाटलिंग ने कहा है कि अगले छह से आठ वर्षो में कच्चे तेल की कीमत 10 डॉलर प्रति बैरल (प्रति बैरल 158 लीटर) पर आ जाएगी। अभी यह 56-58 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है। वैसे कई जानकार यह मानते हैं कि वाटलिंग की भविष्यवाणी का कोई ठोस आधार नहीं है लेकिन अगर यह सच साबित हो जाती है तो यह भारत की अर्थव्यवस्था को बदल सकती है।
कहने की जरूरत नहीं है कि इससे पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमत में भारी कटौती हो सकती है। देश में व्यापार घाटे की समस्या को यह छू-मंतर कर सकता है। देश की सबसे बड़ी तेल कंपनी ओएनजीसी के पूर्व सीएमडी दिनेश के सर्राफ का कहना है ‘इस पर फिलहाल भरोसा करना मुश्किल है कि क्रूड की कीमत कभी 30 डॉलर प्रति बैरल से नीचे भी जा सकती है लेकिन अगर ऐसा होता है तो यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा। हम अपनी जरूरत का 75 फीसद क्रूड बाहर से मंगवाते हैं। इससे कई तरह का दबाव पूरी अर्थव्यवस्था पर रहता है। लेकिन क्रूड की मांग में मुझे अगले कुछ दशकों तक कोई बड़ी गिरावट की वजह नजर नहीं आती।’
देश के एक प्रमुख ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा का कहना है कि क्रूड की कीमत के 10 डॉलर पर आने की संभावना तकरीबन दस वर्ष पहले प्रमुख पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ ने जताई थी। लेकिन कुछ ही महीनों में इसकी कीमत 148 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी। कीमत में इतनी तेज गिरावट तभी होगी जब मांग तेजी से घटे। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वैकल्पिक ऊर्जा का प्रसार इतनी तेजी से होगा कि क्रूड की मांग में इतनी भारी कमी हो। भारत में अभी रोजाना 40 लाख बैरल क्रूड की खपत है जो वर्ष 2040 तक बढ़ कर एक करोड़ बैरल का हो जाएगा।
क्रिस वाटलिंग ने अपने भविष्यवाणी के पीछे सबसे बड़ी वजह इलेक्टिक वाहनों को बताया है। दुनिया की दो सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत और चीन ने वर्ष 2030 से सिर्फ बिजली से चलने वाली कारों को बेचने की इजाजत देने का एलान किया है। यूरोप के कई देश ऐसा कर चुके हैं। अभी क्रूड की कुल खपत का 70 फीसद वाहनों में इस्तेमाल होता है। इसी आधार पर वाटलिंग ने कहा है कि क्रूड की मांग तेजी से घट जाएगी जिससे इसकी कीमत भी कम होगी। उन्होंने यह भी कहा है कि तेल उत्पादक देशों का संगठन ओपेक भी इस बात को जानता है तभी पिछले तीन वर्षो के दौरान कच्चे तेल की कीमत में 70 फीसद की गिरावट के बावजूद उत्पादन में कोई कटौती नहीं की गई है।
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक क्रूड की कीमतों में गिरावट होती है तो वह ऐसे ही होती है। जब यह 100 डॉलर के ऊपर था तब भी कई विशेषज्ञ यह मान रहे थे कि इसकी कीमत अब हमेशा इसी स्तर पर बनी रहेगी। 19 वर्ष पहले हम देख चुके हैं कि किस तरह से इसकी कीमत 40 डॉलर से घटकर 11 डॉलर पर आ गई थी। उस वक्त भारत में पेट्रोल की कीमत 24 रुपये प्रति लीटर थी। भारत सरकार की नीति है कि लंबी अवधि में आयातित क्रूड पर निर्भरता 78 फीसद से घटकर 50 फीसद पर आ जाये।