हाईकोर्ट में मंगलवार को फर्जी नक्सली सरेंडर मामले को लेकर सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस मामले में सरकार की ओर से सीलबंद रिपोर्ट का अवलोकन किया, उसके बाद गृह सचिव को तलब करते हुए छह सितंबर की तिथि सुनवाई के लिए निर्धारित की। इस दौरान सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि यह मामला अति संवेदनशील है, इसलिए इसकी सुनवाई ओपन कोर्ट में न की जाए। इसके बाद कोर्ट ने इसकी सुनवाई चेंबर में कराने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के दौरान कैमरे की रिकॉर्डिंग की जाएगी उस दौरान सिर्फ जज और गृह सचिव ही मौजूद रहेंगे। इसके अलावा ना तो वकील रहेंगे और ना ही सरकारी कोई अधिकारी।
सरकार के अधिवक्ता ने आग्रह किया कि इस दौरान पुलिस के अधिकारी गृह सचिव के साथ मौजूद रहे, लेकिन वादी के अधिवक्ता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि जब अधिवक्ता ही इस मामले में उपस्थित नहीं रहेंगे तो कोई पुलिस के अधिकारी भी ना रहे जिसके बाद कोर्ट ने सिर्फ गृह सचिव से ही कुछ सवाल करने के लिए इस मामले की सुनवाई अपने चेंबर में निर्धारित की है। इस मामले में पूर्व में सरकार की सीलबंद रिपोर्ट पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से मंतव्य मांगा गया था। उस मंतव्य को राज्य सरकार भेजा गया, जिस पर आज उन्होंने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट में सौंपी है। झारखंड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने इस संबंध में झारखंड काउंसिल फॉर डेमोक्रेटिक राईट में याचिका दाखिल कर पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि 514 आदिवासी युवक-युवतियों को नक्सली बताकर सरेंडर कराया गया था और उन्हें नौकरी और पैसे का भी लालच दिया गया था।