स्वायत्त संस्थाओं में वित्तीय प्रबंधन बेहतर बनाने के लिए समग्र उपाय करने की जरूरत है। इन संस्थाओं को वित्त व्यवस्था सुधारने के लिए ई-गवर्नेस और पारदर्शिता अपनानी होगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह बात वरिष्ठ आइएएस अधिकारी डा. रजत भार्गव की पुस्तक ए टू जेड आॅफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट इन आॅटोनॉमस इंस्टीट्यूशंस के विमोचन के अवसर पर कही। डा. भार्गव ने यह पुस्तक दीनानाथ पाठक के साथ मिलकर लिखी है।
इस मौके पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और नागर विमानन मंत्री अशोक गजपति राजू भी उपस्थित रहे। जेटली ने कहा कि सार्वजनिक वित्त प्रबंधन यानी बजट बनाने और खर्च का हिसाब किताब रखने की व्यवस्था में हाल के वर्षो में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं। स्वायत्त संस्थानों को करदाताओं के धन का प्रभावी और सक्षम तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए।
जेटली ने कहा कि विगत में स्थानीय और नगर निकायों जैसे स्वायत्त संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में वित्तीय प्रबंधन में सुधार लाने के लिए कई उपाय हुए हैं लेकिन ये प्रयास सिर्फ कुछ ही पहलुओं पर केंद्रित थे। मसलन, इनमें से कई सुधार बजट या धनराशि के आवंटन से संबंधित थे। इस तरह अब तक स्वायत्त संस्थाओं में वित्तीय प्रबंधन के लिए समग्र सुधार नहीं हुआ है। यही वजह है कि इन संस्थाओं में राजकोषीय प्रबंधन के मामले में सफलता का स्तर भिन्न भिन्न है। उल्लेखनीय है कि स्वायत्त संस्थाओं में सुधार के लिए नीति आयोग ने भी एक समूह का गठन किया था। इस समूह ने अप्रासंगिक हो चुकी स्वायत्त संस्थाओं को बंद करने की सिफारिश की थी। केंद्र सरकार में स्वायत्त संस्थाओं की संख्या बढ़ते हुए 2012 में 533 हो गयी है जबकि 1955 में यह 35 थी। इन पर भारी भरकम 60,000 करोड़ रुपये सालाना खर्च होता है।