सिमडेगा के कैरबेड़ा गांव के 100 आदिवासी परिवार मानसून आते ही घरों में हो जाते है कैद
झारखंड के समडेगा कैरबेड़ा गांव के लोग मानसून आते ही घरों में कैद हो जाते हैं। इस गांव में करीब 30 घरों में आदिवासी समुदाय के 100 लोग रहते हैं।
उन्हें गांव से निकलते ही भाकड़ बेड़ा नदी पार करनी होता है, जो मानसून में उफान पर रहती है। इस नदी पर लकड़ी का वर्षों पुराना एक जर्जर पुल बना है। जो कभी भी गिर सकता है। लेकिन मजबूरी में लोगों को इसी पुल से नदी पार करना पड़ता है। यही नहीं, गांव के अधिकांश बच्चे भी इसी पुल से जाते है । ग्रामीणों बताते है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के समय कई नेताओं ने यहां पुल बनाने का आश्वासन दिया था। लेकिन चुनाव के बाद कोई झांकने तक नहीं आया।
सिमडेगा जिला के कोलेबिरा प्रखंड अंतर्गत डोमटोली पंचायत का केराबेड़ा गांव आज भी विकास से कोसों दूर है। यह गांव बरसात के दिनों में टापू बन जाता है, जहां पहुंचने का एकमात्र साधन एक अस्थायी लकड़ी का पुल है। तेज बहाव के दौरान यही पुल खतरा बन जाता है। ग्रामीण उसी पर जान जोखिम में डालकर पार करते हैं। स्कूली बच्चे पढ़ाई से वंचित हो जाते हैं और बुजुर्गों को चलना तक मुश्किल हो जाता है। किसी आपातकालीन स्थिति में मरीजों को खटिया पर ढोना पड़ता है क्योंकि गांव तक चारपहिया वाहन नहीं पहुंच पाते।
दशकों से पुल निर्माण की मांग की जा रही है। आवेदन भी दिए गए, लेकिन हर बार आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।
