नई दिल्ली : भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC या मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी) ने प्रमुख ब्याज दरों में इस बार भी कोई बदलाव नहीं किया है, जिससे रेपो रेट छह फीसदी पर, रिवर्स रेपो रेट 5.75 फीसदी पर और सीआरआर चार फीसदी पर बरकरार रहे। वैसे, विशेषज्ञों ने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा, और अब बदलाव नहीं होने से सभी तरह के कर्ज़ों की ब्याज दरें घटने की उम्मीदें अगली समीक्षा तक टल गई हैं।
RBI ने वृद्धि के अनुमान को भी 6.7 फीसदी पर बरकरार रखा है, तथा केंद्रीय बैंक के अनुसार, वित्तवर्ष 2017-18 की दूसरी छमाही के दौरान खुदरा महंगाई दर 4.2 से 4.6 फीसदी रहने का अनुमान है। अब अगली समीक्षा फरवरी, 2018 में होगी, और कर्ज़े सस्ते होने के लिए सभी होमलोन (कार लोन, पर्सनल लोन आदि भी) धारकों को कम से कम दो महीने इंतज़ार करना ही होगा।
इससे पहले, अगस्त के पहले सप्ताह में की गई समीक्षा के दौरान MPC ने रेपो रेट में 25 बेसिस अंक, यानी 0,25 फीसदी की कटौती की थी, और रेपो रेट उस समय छह फीसदी पर आया था। अक्टूबर में की गई समीक्षा के दौरान केंद्रीय बैंक ने महंगाई का हवाला देते हुए प्रमुख ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था।
इस फैसले के पीछे आरबीआइ ने महंगाई को असली वजह बताई है। आरबीआइ गवर्नर डॉ. उर्जित पटेल का कहना है कि आने वाले दिनों में महंगाई की दर के बढऩे के आसार है। अक्टूबर, 2017 में थोक और खुदरा महंगाई की दर के बढऩे के बाद से ही उम्मीद थी कि केंद्रीय बैैंक ब्याज दरों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा। सनद रहे कि महंगाई को थामने के लिए आरबीआइ ब्याज दरों का सहारा लेता है। ब्याज दरों को घटाने से लोग ज्यादा कर्ज लेते हैैं और इससे बाजार में मांग बढ़ती है जिसका असर महंगाई पर पड़ता है। दूसरे शब्दों में ब्याज सस्ता होने पर महंगाई बढ़ती है। यही वजह है कि जब महंगाई बढऩे के आसार होते हैैं तो आरबीआइ ब्याज दरों को या तो बढ़ाता है या फिर उन्हें उसी स्तर पर बनाये रखता है। आरबीआइ ने यह भी कहा है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में खुदरा महंगाई की दर उनके अनुमान से ज्यादा रहेगी। पहले महंगाई की दर के 4.3 फीसद रहने का अनुमान लगाया गया था जिसे बढ़ा कर 4.7 फीसद कर दिया गया है।
महंगाई के साथ ही आरबीआइ वैश्विक स्तर पर चल रही अस्थिरता और सरकार की राजकोषीय स्थिति को लेकर भी चिंता जताई है। जाहिर है कि आरबीआइ के इस फैसले से आम जनता के साथ ही उद्योग जगत और सरकार को भी निराशा हाथ लगेगी। आम जनता को निराशा इसलिए होगी कि होम लोन या आटो लोन के सस्ता होने की उम्मीद खत्म हो गई। सरकार यह सोच रही थी कि ब्याज दरों में कमी होने के बाद मांग बढ़ेगी जिससे देश की आर्थिक विकास दर बढ़ाने में मदद मिलेगी। उद्योग जगत भी ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद कर रहा था कि क्योंकि इससे मांग बढ़ाना संभव होता।