ख़बर

वट सावित्री व्रत: बरगद की पूजा से आती है सौभाग्य और समृद्धि , जानिए पूरी कथा

 

अखंड सुहाग की कामना से प्रतिवर्ष सुहागिन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। यह व्रत इस वर्ष 15 मई, मंगलवार को है। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा करके महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पति व्रत धर्म का स्मरण करती हैं। यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक, पापहारक, दुःख प्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है। इस व्रत में वट वृक्ष का बहुत महत्व होता है। इस पेड़ की बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं,  जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। 

 

ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शिव का निवास होता है। इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। अग्नि पुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है, अतः संतान प्राप्ति के लिए इच्छुक महिलाएं भी इस व्रत को करती हैं। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना गया है। वट वृक्ष की छांव में ही देवी सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था। इसी मान्यता के आधार पर स्त्रियां अचल सुहाग की प्राप्ति के लिए इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं। देखा जाए, तो इस पर्व के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी मिलता है। वृक्ष होंगे, तो पर्यावरण बचा रहेगा और तभी जीवन संभव है।

सत्यवान-सावित्री के संग यमराज की पूजा
इस दिन बांस की टोकरी में सप्तधान्य के ऊपर  ब्रह्मा-सावित्री और दूसरी टोकरी में सत्यवान एवं सावित्री की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित कर बरगद के नीचे बैठकर पूजा करने का विधान है। साथ ही इस दिन यमराज का भी पूजन किया जाता है। लाल वस्त्र, सिंदूर, पुष्प, अक्षत, रोली, मोली, भीगे चने, फल और मिठाई लेकर पूजन करें। कच्चे दूध और जल से वृक्ष की जड़ों को सींचकर वृक्ष के तने में सात बार कच्चा सूत या मोली लपेटकर यथाशक्ति परिक्रमा करें। पूजा के उपरान्त भक्तिपूर्वक सत्यवान-सावित्री की कथा का श्रवण और वाचन करना चाहिए। ऐसा करने से परिवार पर आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं, घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इस व्रत की पूजा में भीगे हुए चने अर्पण करने का बहुत महत्व है, क्योंकि यमराज ने चने के रूप में ही सत्यवान के प्राण सावित्री को दिए थे। सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आईं और सत्यवान के मुख में रख दिया, इससे सत्यवान पुनः जीवित हो गए।
 
व्रत का कथानक
भविष्य पुराण के अनुसार, सावित्री राजा अश्वपति की कन्या थीं। सावित्री ने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया। अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करने के उपरांत सावित्री भी सत्यभान के साथ लकड़ियां लेने जंगल जाती थीं। एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गए। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। सावित्री ने उन्हें पहचान लिया और कहा, ‘आप मेरे पति के प्राण न लें।’ यमराज नहीं माने और सत्यवान के प्राण को लेकर वह अपने लोक को चल पड़े। सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। बहुत दूर जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, ‘पतिव्रते! अब तुम लौट जाओ, इस मार्ग में इतनी दूर कोई नहीं आ सकता।’ सावित्री ने कहा, ‘महाराज पति के साथ आते हुए न तो मुझे कोई ग्लानि हो रही है और न कोई श्रम हो रहा है, मैं सुखपूर्वक चल रही हूं। स्त्रियों का एकमात्र आश्रय-स्थान उनका पति ही है, अन्य कोई नहीं।’ सावित्री के पति धर्म से प्रसन्न यमराज ने वरदान के रूप में अंधे सास-ससुर को आंखें दीं और सावित्री को पुत्र होने का आशीर्वाद देते हुए सत्यवान के प्राणों को लौटा दिया। इस प्रकार सावित्री ने अपने सतीत्व के बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *