रांची, 25 दिसम्बर 2023: जारी रह रहे रांची-2024 के महाजंग में सियासी दलों के बीच उत्पन्न हुए विवादों की चर्चा में, जनजातीय सुरक्षा मंच ने लिस्टिंग और डिलिस्टिंग पर उठे सवालों को लेकर एक मीडिया समारोह आयोजित।
रांची-2024 के पहले सियासी दलों ने अपने-अपने महाजाल फेंकने की शुरुआत कर दी है, जिससे कि वोट की खेती में कौन सी चाल लगेगी, इस विवाद से जुड़े हुए हैं। जनजातीय सुरक्षा मंच का दावा है कि वे विभाजन और आदिवासी समाज की भलाइयों को ध्यान में रखते हैं, और उन्हें विरोधी खेमों से बचाने के लिए अपनी मुद्दें उठा रहे हैं।
इसके साथ ही, सीएनटी एक्ट में संशोधन और आदिवासी समाज की हकमारी पर भी उठाए जा रहे सवालों का मुद्दा उठाया गया है। सवाल किया जा रहा है कि जब सीएनटी एक्ट में संशोधन के समय आदिवासियों की मांगों को लेकर उनकी आंधोलन नहीं की गई थी, तो जनजातीय सुरक्षा मंच कहां था? उनके आरक्षण के खिलाफ उठे गए सवालों पर मंच की चुप्पी को लेकर भी सवालों की उच्च क्रम में बात की जा रही है।
विवादों का एक और मुद्दा है ‘डिलिस्टिंग,’ जिसमें सरना धर्म कोड की प्रक्रिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस बारहमासा मुद्दे के बारे में जानकार सुनील मिंज ने बताया कि यह विवाद भाजपा की राजनीतिक चाल का हिस्सा है, जिसमें वे हर राज्य में एक सामाजिक समूह को बतौर खलनायक पेश करती है, और वोट की फसल काटने की चाल का हिस्सा बनती है।
यह सवाल सुरुजेव खेड़ा की बातचीत में उठा गया है, जहां से क्रिसमस के ठीक पहले 24 दिसम्बर को जनजातीय सुरक्षा मंच ने डिलिस्टिंग के खिलाफ रैली का आयोजन किया गया। इस रैली में सरना धर्मलंबियों को विभाजित करने की मांग की गई और उन्हें समझाने का प्रयास किया गया कि उनके आरक्षण का पूरा केक धर्मांतरित आदिवासियों के द्वारा खाया जा रहा है।
राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सरकार ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसपर जनजातीय सुरक्षा मंच का स्टैंड अभी तक स्पष्ट नहीं है