कोलकाता । “रोहिंग्या शरणार्थियों का प्रतिभूतिकरण गलत औऱ दुर्भाग्यपूर्ण है।” बांग्लादेशी राजनीति विज्ञान के जानकार तस्नीम सिद्दीकी ने कहा है कि इसके बदले अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उन्हें गले लगाना चाहिए। ढाका विश्वविद्यालय की शरणार्थी और प्रवासिक आंदोलन अनुसंधान संस्थान की संस्थापक सिद्दीकी का मानना है कि बर्मा रोहिंग्याओं के खिलाफ एक जनसंहार नीति अपना रहा है इसलिए रोहंग्याओं के शरण की मांग जायज है। यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सभ्य सदस्य भारत और बांग्लादेश की जिम्मेदारी है वे उन्हें आश्रय उपलब्ध करायें।
बर्मा पर दबाव बनाना आवश्यक है, ताकि वे जनसंहार को समाप्त कर सम्मानपूर्वक उनके आश्रयों को लौटा दें। 25 अगस्त से म्यांमार से बांग्लादेश की तरफ आने वाले अपरिचित शरणार्थियों की संख्या 5 लाख से अधिक हो चुकी है। बांग्लादेश और म्यांमार की सरकार ने इनके प्रत्यावर्तन पर चर्चा करने के लिए एक कार्यदल की स्थापना की घोषणा की है। इसके साथ ही, भारत ने रोहिंग्याअों को अवैध आप्रवासी घोषित कर उन्हें अपने यहां इलाज करने से इंकाकर दिया है। सरकार ने कहा है पिछले कुछ सालों से म्यांमार से आए देश में रह रहे 40,000 रोहिंग्याओं को देश से निकालने का निर्णय लिया गया है।
सिद्दीकी ने कहा कि यदि शरण देने वाला देश उचित नीतियों के जरिए उनके कौशल का सही इस्तेमाल करें तो वे उनके लिए एक संपत्ति हो सकते हैं। “अगर उन्हें आयजनित गतिविधियों जैसी बुनियादी जरूरतों के साथ जोड़ा नहीं जाए तो वे पर्यावरण सहित मेजबान समाज पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने रोहिंग्या मुस्लिम समुदायों पर म्यांमार के विचारों की निंदा की है। सिद्दीकी ने रोहिंग्याओं के कारण दक्षिण एशियाई क्षेत्र पर हो रहे प्रतिकूल प्रभावों पर भी चिंता व्यक्त की। यदि यह संकट जल्दी हल नहीं किया गया तो उनमें से कुछ को कट्टरपंथी बनाए जाने की आशंका है जो घातक साबित हो सकते हैं। उनका मानना है कि भारत इस दिशा में प्रमुख भूमिका निभा सकता है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि भारत, म्यांमार को शरणार्थियों के सम्मानपूर्वक वापसी के लिए मना सकता है।