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राजस्थान: राजपरिवारों की राजनीतिक आस्था माहौल के मुताबिक बदलती रही

राजस्थान: राजपरिवारों की राजनीतिक आस्था माहौल के मुताबिक बदलती रही

विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव, राजस्थान की राजनीति में पूर्व राजघरानों का दबदबा हमेशा रहा है। राजनीतिक पार्टियों ने हमेशा से ही राजघरानों को उतना ही महत्व दिया, जितना राजनीतिक परिवारों को। प्रदेश की राजनीति का एक सच यह भी है कि पूर्व राजपरिवारों की राजनीतिक आस्था माहौल के मुताबिक बदलती रही है। आजादी के बाद पूर्व राजघराने कभी स्वतंत्र पार्टी के साथ रहे तो कभी जनसंघ और भाजपा के साथ रहे। पूर्व राजपरिवारों ने कांग्रेस को भी समर्थन दिया और पूर्व राजपरिवारों से जुड़े कई सदस्य संसद और विधानसभा में हाथ के निशान पर चुनाव जीतकर पहुंचे ।

जोधपुर के पूर्व नरेश गजसिंह ने कभी चुनाव नहीं लड़ा । लेकिन उनके संबंध भाजपा नेताओं से अच्छे रहे। स्व.भैरोंसिंह शेखावत की सरकार के दौरान वे राजस्थान पर्यटन विकास निगम के चेयरमैन रहे। लोकसभा व विधानसभा में भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार भी करते रहे, लेकिन साल,2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी बहन चन्द्रेश कुमारी कांग्रेस से टिकट ले आई। राजपरिवार ने चन्द्रेश कुमारी के पक्ष में प्रचार किया। अपनी बहन के लिए गजसिंह ने लोगों के बीच जाकर वोट मांगे और चन्द्रेश कुमारी चुनाव जीतकर केन्द्र में मंत्री बनी।

चन्द्रेश कुमारी का ससुराल हिमाचल प्रदेश में है,वे वहां भी विधायक रह चुकी है। जोधपुर संभाग में जोधपुर के पूर्व राजपरिवार का काफी प्रभाव माना जाता है। जोधपुर के वर्तमान सांसद और केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को भी गजसिंह का आर्शीवाद प्राप्त है। खींवसर ठीकाने के गजेन्द्र सिंह को तीन बार विधानसभा का चुनाव जीतवाने में गजेन्द्र सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। गजेन्द्र सिंह वर्तमान में वसुंधरा राजे सरकार में केबिनेट मंत्री है।

अलवर राजघराने के भंवर जितेन्द्र सिंह कांग्रेस में राष्ट्रीय सचिव होने के साथ ही पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के खास माने जाते है। पिछली मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रहे जितेन्द्र सिंह का अलवर जिले में खासा प्रभाव है। जिले के पांच से छह विधानसभा क्षेत्रों में जितेन्द्र सिंह के इशारे पर ही हार और जीत होती है। हालांकि पहली बार उनकी मां महेन्द्र कुमारी राजनीति में भाजपा के सहारे उतरी। वे 1991 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती। लेकिन 1998 में वे निर्दलीय और फिर 1999 में कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरी। दोनों ही बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

धौलपुर राज परिवार की बहू वसुंधरा राजे दूसरी बार प्रदेश की सीएम बनी। वे झालावाड़ से पांच बार सांसद रही। पिछली दो लोकसभा चुनाव से उनके पुत्र दुष्यंतसिंह चुनाव मैदान में है। इस परिवार की आस्था हमेशा भाजपा के साथ रही है। वसुंधरा राजे धौलपुर से विधायक भी रही है। पिछले डेढ़ दशक से राजस्थान में भाजपा की कमान वसुंधरा राजे के हाथ में ही है। भाजपा चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में रहे वसुंधरा राजे के इशारे पर ही पार्टी के निर्णय होते रहे है ।

भाजपा की टिकट पर दो बार सांसद रहने वाले राजघराने के विश्वेंद्रसिंह अब कांग्रेस में है। वे जनता दल के टिकट पर 1989 और वर्ष 1999 व 2004 में भाजपा के टिकट पर भरतपुर से सांसद रहे। वे डीग-कुम्हेर विधानसभा सीट से वर्तमान में कांग्रेस पार्टी से विधायक है। उनके चाचा स्व.मानसिंह भी विधायक रहे और अब उनकी बेटी कृष्णेन्द्र कौर दीपा वर्तमान में वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री है ।

जयपुर राजघराने की पूर्व राजमाता गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी से सांसद रही। उनके पुत्र एवं जयपुर राजघराने के पूर्व महाराजा कर्नल भवानीसिंह ने 1989 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव हार गए। उनकी बेटी दिया कुमारी सवाई माधोपुर सीट से भाजपा विधायक है।

कोटा राजघराने के इज्येराज सिंह एक बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीत चुके है। बीकानेर राजघराने की सदस्य सिद्धी कुमारी वर्तमान में भाजपा विधायक है। बीकानेर राजपरिवार पहले स्वतंत्र पार्टी और फिर भाजपा के साथ रहा है। उदयपुर राजपरिवार के सदस्य महेन्द्र सिंह मेवाड़ एक बार कांग्रेस के टिकट पर सांसद रह चुके है।

भींडर ठीकाने के रणधीर सिंह वर्तमान में निर्दलिय विधायक है। शाहपुरा ठीकाने के राव राजेन्द्र सिंह भाजपा के टिकट पर तीन बार चुनाव जीत चुके और वर्तमान में विधानसभा में उपाध्यक्ष है। चौमू ठीकाने की रूक्समणी कुमारी आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर तैयारी में जुट गई है।

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