राजनीतिक दल कंपनियों से कितना चंदा लेते हैं? आम लोगों के पास शायद ही इस सवाल का जवाब हो.
लेकिन राजनीतिक दलों के चंदे पर नज़र रखने वाले ग़ैरसरकारी संगठन एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक राइट्स यानी एडीआर की ताज़ा रिपोर्ट ने पुराने सवालों को फिर से सामने ला कर रख दिया है.
बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी, सीपीआई, सीपीएम, बसपा और तृणमूल कांग्रेस के बही-खातों की पड़ताल करके ये रिपोर्ट तैयार की गई है.
चंदा लेने से जुड़े नियमों के तहत राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से ज़्यादा चंदा देने वाले दानकर्ताओं के नाम सार्वजनिक करना होता है.
एडीआर की ये रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2016-17 में सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट नाम की एक कंपनी ने बीजेपी को अकेले 251.22 करोड़ रुपये चंदे के तौर पर दिए. ये बीजेपी को मिलने वाले कुल चंदे का 47.19 फीसदी है. इसी कंपनी ने 13.90 करोड़ रुपये कांग्रेस को भी दिए हैं.
‘सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट’, आपने ये नाम शायद पहले नहीं सुना होगा. ये एक कंपनी है जो कॉरपोरेट दुनिया से पैसा लेकर राजनीतिक दलों को चंदा देती है.
रिपोर्ट की कुछ ख़ास बातें
- राष्ट्रीय दलों को वित्तीय वर्ष 2016-17 में 20,000 रुपये से ज़्यादा मिले चंदे की कुल रकम 589.38 करोड़ रुपये है. ये पैसा 2123 चंदों से मिला है.
- बीजेपी को 1194 लोगों या कंपनियों से 532.27 करोड़ रुपये का चंदा मिला है. वहीं कांग्रेस को इस साल 599 लोगों या कंपनियों से 41.90 करोड़ रुपये मिले हैं. बाक़ी छह राजनीतिक दलों को जितना चंदा मिला है, बीजेपी को उनसे 9 गुणा से भी ज़्यादा चंदा मिला है.
- बसपा ने पिछले 11 सालों की तरह, 2016-17 के लिए भी यही कहा है कि किसी ने भी उनकी पार्टी 20,000 रुपये से ज़्यादा चंदा नहीं दिया है.
- राजनीतिक दलों को साल 2016-17 में मिले कुल चंदे में 487.36 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी देखी गई है जो 478 फ़ीसदी अधिक है. इससे पहले के वित्त वर्ष 2015-16 में पार्टियो को कुल 102.02 करोड़ रुपये का चंदा मिला था.
- बीजेपी को मिले चंदे में 593 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. साल 2015-16 के दौरान बीजेपी ने 76.85 करोड़ रुपये चंदा मिलने की बात कही थी. साल 2016-17 में ये चंदा बढ़कर 532.27 करोड़ रुपये हो गया.
- पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले तृणमूल कांग्रेस के चंदे में 231 फीसदी बढ़ोतरी हुई है जबकि सीपीएम और कांग्रेस के चंदे में क्रमशः 190 फीसदी और 105 फीसदी का इजाफा हुआ है.
ये सवाल पूछा जा सकता है कि क्या सभी चंदे ऐसे लोगों ने दिए हैं जिनके नाम राजनीतिक दलों ने सार्वजनिक कर दिए हैं. इसका जवाब है, नहीं.
अज्ञात स्रोत भी तो कुछ होते हैं और इसी के तहत एक तरह के चंदे को ‘स्वैच्छिक योगदान’ कहा जा रहा है.
अज्ञात स्रोतों से बीजेपी को 2016-17 में 464.94 करोड़ रुपया बतौर चंदा मिला है. इस आमदनी का 99.98 फीसदी या 464.84 करोड़ रुपया ‘स्वैच्छिक योगदान’ के तहत मिला है.
कॉर्पोरेट चंदे के बाद अज्ञात स्रोतों के मामले में भी कांग्रेस बीजेपी से बहुत पीछे है. अज्ञात स्रोतों ने कांग्रेस को भी 126.12 करोड़ रुपये चंदे के तौर पर दिए.
अब एक नज़र उन सवालों पर जो राजनीतिक दलों के चंदे को लेकर उठते रहे हैं.
राजनीतिक दल किन से चंदा ले सकते हैं?
जनप्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 29बी के मुताबिक़ भारत में कोई भी राजनीतिक दल सभी से चंदा ले सकते हैं, मतलब व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट से भी.
विदेशी नागरिकों से भी पार्टियां चंदा ले सकती हैं. वो केवल सरकारी कंपनी या फिर विदेशी कंपनी से चंदा नहीं ले सकतीं हैं. अगर विदेशी कंपनी भारत में मौजूद हो तभी उससे पार्टियां चंदा नहीं ले सकतीं.
विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम, 1976 की धारा 3 और 4 के मुताबिक़ भारतीय राजनीतिक दल विदेशी कंपनियों और भारत में मौजूद ऐसी कंपनियों से चंदा नहीं ले सकती हैं जिनका संचालन विदेशी कंपनियां कर रही हैं.
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कंपनियां राजनीतिक दलों को कितना चंदा दे सकती है, इसको लेकर अलग अलग तरह के प्रावधान हैं.
मसलन तीन साल से कम समय वाली कंपनी राजनीतिक चंदा नहीं दे सकती है और कंपनीज़ एक्ट की धारा 293ए के मुताबिक़ कोई भी कंपनी अपने सालाना मुनाफ़े के पांच फ़ीसदी तक की राशि को ही चंदे के तौर पर दे सकती है.
वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दलों के लिए चंदा लेने के लिए कोई सीमा नहीं है. आयकर क़ानून की धारा 13ए के मुताबिक़ राजनीतिक दलों को आयकर से छूट मिली हुई है.
लेकिन ध्यान देने की बात ये है कि उन्हें भी अपना इनकम टैक्स रिटर्न दाख़िल करना होता है. यानी पैसों का हिसाब क़िताब राजनीतिक दलों को भी रखना होता है.
चंदे के स्रोत का पता कैसे लगाया जा सकता है?
प्रावधानों के मुताबिक चंदे से स्रोत का पता लगाना संभव होता है. लेकिन इसमें एक ख़ामी की वजह से ये व्यावहारिक तौर पर मुश्किल है.
20 हज़ार रुपये से कम के चंदे के बारे में चुनाव आयोग को बताना ज़रूरी नहीं है.
हालांकि राजनीतिक पार्टी को इसके बारे में इनकम रिटर्न में बताना होता है, लेकिन 20 हज़ार रुपये से कम के चंदे के स्रोत के बारे में इसमें भी जानकारी देना जरूरी नहीं होता है.
मोटे तौर पर ये देखा गया है कि राजनीतिक पार्टियां अपने चंदे का अधिकतम हिस्सा अज्ञात स्रोतों से आया हुआ बताती हैं.
ये भी संभव है कि पार्टी 20 हज़ार रुपये की सीमा के भीतर कई लोगों से बैकडेट में चंदा लिया हुआ बता सकती है. फिर कुछ हिस्सा रखकर काले पैसे को सफ़ेद बता सकती है.
हालांकि चुनाव आयोग सख़्ती दिखाए तो राजनीतिक दलों की ऐसी गड़बड़ी सामने आ सकती है और इससे दल विशेष की सार्वजनिक छवि को भी नुकसान हो सकता है.