नई दिल्ली : हम में से अधिकतर इतिहास पढ़ते हैं, कुछ ही होते हैं जो इतिहास बनाते हैं। हम आपको जिन 18 बच्चों की कहानी बताने जा रहे हैं, वे उनमें से ही हैं जिन्होंने अपनी बहादुरी से खुद को इतिहास में दर्ज करा लिया है। दरअसल इस बार राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित होने वाले बहादुर बच्चों के नाम की घोषणा हो चुकी है। इस बार ये पुरस्कार 18 बच्चों को दिया जा रहा है जिनमें 11 लड़के और 7 लड़कियां शामिल हैं। तीन बच्चों को उनके अप्रतिम साहस के लिए मरणोपरांत राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाजा जाएगा।
पीएम मोदी इन बहादुर बच्चों को पुरस्कृत करेंगे। इसके अलावा गणतंत्र दिवस की संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बच्चों के सम्मान में एक रिसेप्शन देंगे। बच्चों को गणतंत्र दिवस की परेड में भी शामिल किया जाएगा। तो आइए जानते हैं राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित होने जा रहे इन बच्चों की बहादुरी के किस्से जिन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की और 3 ने तो खुद को कुर्बान कर अनजानों की जिंदगी बचाई…
नेत्रवती चव्हाण (मरणोपरांत): कर्नाटक की 14 साल की इस बहादुर बिटिया ने अपनी जान गंवा दो लड़कों को डूबने से बचा लिया। पिछले साल मई में नेत्रवती एक तालाब के पास कपड़े धो रही थी। उसके सामने दो लड़के तालाब में गए और करीब 30 फीट की गहराई में डूबने लगे। बिना एक पल गंवाए नेत्रवती ने तालाब में छलांग लगा दी। पहले उसने खुद से बड़े लड़के मुथू (16 साल) को बचाया। नेत्रवती इसके बाद गणेश (10 साल) को बचाने फिर तालाब में उतरी। रेस्क्यू के क्रम में गणेश ने जोर से उसका गला पकड़ लिया। नेत्रवती खुद को नहीं बचा पाई। देश को अपनी इस बहादुर बेटी पर हमेशा नाज रहेगा। नेत्रवती को मरणोपरांत गीता चोपड़ा अवॉर्ड दिया जाएगा।
लोकरकपाम राजेश्वरी चनु (मरणोपरांत): मणिपुर की इस 14 साल की बहादुर बेटी भी इतिहास में दर्ज हो चुकी है। राजेश्वरी ने एक जीर्ण पुल से इंफाल नदी में गिर रही मां और उसके बच्चे को बचाया था। इस बचाव प्रयास में राजेश्वरी खुद नदी की तेज धारा में समा गई। राजेश्वरी की जगह वीरता पुरस्कार लेने जाने वाले उसके पिता का कहना है कि क्रोधित गांववालों ने ‘अरुंग पुल’ को जला डाला पर सरकार ने अबतक नया पुल नहीं बनाया है।
ललछंदमा (मरणोपरांत): 12वीं में पढ़ने वाले मिजोरम के इस लड़के ने नदी में डूब रहे अपनी दोस्त को बचाने की खातिर खुद की जान गंवा दी। ललछंदमा के पिता का कहना है कि उन्हें बेटे को खोने का दुख नहीं। उनके बेटे ने वही किया जो परिवार ने उसे सिखाया था। अपने बच्चे को खोने के बावजूद उस पिता का सारे बच्चों के नाम यही संदेश है कि परिणामों की चिंता किए बिना अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करें।
नाजिया: आगरा की इस 16 साल की बिटिया ने अकेले दम पर जुआ और ड्रग माफिया को उखाड़ फेंका। नाजिया बताती हैं कि इस दौरान बदमाशों ने उनका पीछा किया, गाली-गलौच की गई, यहां तक कि किडनैप करने की धमकी भी दी गई। बदमाश उनके घर में भी घुसे लेकिन नाजिया ने हार नहीं मानी। लगातार माफिया के खिलाफ सबूत जुटाती रहीं। एक दिन नाजिया ने यूपी के सीएम को ट्वीट किया। उसके बाद दशकों से चल रहा जुए और ड्रग्स का नेटवर्क ध्वस्त हुआ। नाजिया को भारत अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा।
ममता दलाई: इस बार के बहादुर बच्चों में ममता दलाई (6 साल) उम्र में भले ही सबसे छोटी हो लेकिन उसके साहस और हौसले को आज देश सलाम कर रहा है। अपनी बड़ी बहन को बचाने के लिए 6 साल की यह मासूम अकेले 5 फीट के मगरमच्छ से भिड़ गई। ममता को बापू गयाधनी अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। ममता के अलावा मेघालय के बेटश्वाजॉन (14 साल) को आग में घिरे छोटे भाई को बचाने और केरल के सेबस्टियन विन्सेट (13 साल) को ट्रेन की चपेट में आने वाले दोस्त को बचाने के लिए इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा।
करनबीर सिंह: अमृतसर के इस 16 साल के लड़के ने खुद घायल होने के बावजूद दुर्घटना की शिकार अपनी स्कूल बस से 15 बच्चों की जान बचाई। 20 सितंबर 2016 को करनबीर स्कूल से घर लौट रहे थे। अटारी के पास उनकी स्कूल बस संतुलन खोकर एक नाले में गिर गई। करनबीर के मुताबिक वह खिड़की के पास बैठे थे और उन्हें सिर पर चोट पहुंची। बस में तेजी से पानी भरता जा रहा था। करनबीर ने हौसला नहीं खोया और बहादुरी दिखाते हुए एक-एक कर 15 बच्चों को बचाकर बाहर निकाल लाए। हालांकि इस दुखद हादसे में अन्य 7 बच्चों की मौत हो गई। करनबीर को उनकी बहादुरी के लिए संजय चोपड़ा अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा।
समृद्धि शर्मा: गुजरात की इस 16 साल की बेटी ने घर में घुस आए बदमाश का बहादुरी से मुकाबला किया। इस दौरान बदमाश ने छूरा मार समृद्धि को घायल भी कर गिया। इसके बावजूद बहादुर बिटिया बदमाश को भगाने में कामयाब हो गई।
लक्ष्मी यादव: छत्तीसगढ़ के रायपुर की रहने वाली 16 साल की इस बहादुर बेटी ने खुद के यौन शोषण के प्रयास को विफल किया।
पंकज सेमवाल: उत्तराखंड के टिहरी-गढ़वाल इलाके के 16 साल के इस लड़के ने तेंदुए से अपनी मां की जान बचाई।
इसके अलावा राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार पाने वाले अन्य बच्चों में मनशा (13 साल), चिंगई वांग्सा, शेंगपॉन, योकनेई (सभी नगालैंड), जोनुन्तुलंगा (16 साल, मिजोरम), एजाज अब्दुल रउफ (17 साल, महाराष्ट्र) और पंकज कुमार महंत (ओडिशा) शामिल हैं। इन बहादुर बच्चों की शिक्षा-दीक्षा का खर्च इंडियन काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर वहन करेगी।