कोलकाता : कहते हैं इंसान के अंदर अगर कुछ करने का जज्बा हो, तो मुसीबतें भी उसके इरादे को डगमगा नहीं सकती। कभी चार दशक पहले यह शख्स अपने कंधे पर साड़ियों का बंडल लादकर गली-गली घूम हरेक घर का दरवाजा खटखटाकर साड़ी बेचा करता था। इस शख्स की मेहनत रंग लाई और आज यह शख्स 50 करोड़ रुपए की कंपनी का मालिक बन गया है। आइए जानते हैं इस शख्स की सफलता की कहानी।
हम बात कर रहे हैं कोलकाता के सफल साड़ी कारोबारी बिरेन कुमार बसाक की। बसाक ने अपनी सफलता की कहानी बताते हुए कहा कि, उनकी मेहनत बेकार नहीं गई। शुरुआत से अपना खुद का बिजनेस शुरू की सोच थी। मेरी कड़ी मेहनत रंग लाई और मैंने 1987 में साड़ी की अपनी पहली दुकान खोली। उन्होंने बताया, उस वक्त उनके पास सिर्फ 8 लोग काम करते थे। धीरे-धीरे बिजनेस बढ़ता गया। आज वो हर महीने हाथ से बनी 16 हजार साड़ियां देश भर में बेचते हैं। यहीं नहीं अब उनके यहां कर्मचारियों की संख्या बढ़कर 24 हो गई और करीब 5 हजार बुनकरों के साथ काम कर रहे हैं।
गरीबी में गुजरा बचपन
बसाक का बचपन काफी गरीबी में गुजारा। बुनकर के परिवार में जन्मे बसाक के पिता के पास उतने पैसे नहीं थे कि परिवार का भरन-पोषणा हो सके। उनके परिवार के पास एक एकड़ जमीन थी जिस पर अनाज उपजाकर कुछ खाने को मिल जाता था। पैसे की वजह से वो ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाए।
2.50 रुपए दिहाड़ी पर साड़ी बुनने का काम किया
कोलकाता के नादिया जिले के फुलिया में उन्हें एक बुनकर के यहां ढाई रुपए दिहाड़ी पर साड़ी बुनने का काम मिला। इस कंपनी में वो करीब 8 साल काम किए। इसके बाद उन्होंने अपना खुद बिजनेस शुरू करने की सोची और इसके लिए उन्होंने अपना घर गिरवी रखकर 10 हजार रुपए का लोन उठाया। अपने बड़े भाई के साथ मिलकर वो बुनकर के यहां से साड़ी खरीद बेचने के लिए कोलकाता जाते थे। कुछ सालों तक यही सिलसिला चलता रहा। इस बिजनेस में कमाई होने लगी और दोनों भाई मिलकर करीब 50 हजार रुपए हरेक महीने कमा लेते थे।
बिरेन बसाक एंड कंपनी की रखी नींव
कमाई बढ़ने के साथ बसाक और उनके भाई ने कोलकाता में एक दुकान खरीदी और साड़ियां बेचने का काम शुरू किया। अगले एक साल में उनकी दुकान का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। लेकिन जल्दी ही वो अपने भाई से अलग होकर गांव लौट गए और यहीं पर साड़ी बेचने का बिजनेस शुरू किया। फिर उन्होंने बिरेन बसाक एंड कंपनी की नींव रखी। बुनकरों से साड़ियां खरीद होलसेल रेट में साड़ी डीलर को बेचना शुरू किया। धीरे-धीरे बिजनेस बढ़ता गया और अब उनकी कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ रुपए हो गया है।
ब्रिटिश यूनिवर्सिटी ने किया सम्मानित
बसाक ने छह गज की एक साड़ी बुनी थी, जिस पर उन्होंने रामायण के सात खंड उकेरे थे। ब्रिटेन की एक यूनिवर्सिटी ने उनके इस कार्य के लिए उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। इससे पहले उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार, नेशनल मेरिट सर्टिफिकेट अवार्ड, संत कबीर अवार्ड मिल चुकी है। इसके अलावा लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड, इंडियन बुक ऑफ रिकार्ड्स और वर्ल्ड यूनीक रिकार्ड्स में भी उनका नाम दर्ज है। धागों में रामायण की कथा उकेरने की तैयारी में उन्हें एक वर्ष का समय लगा जबकि दो वर्ष उसे बुनने में लगे। उन्होंने 1996 में इसे तैयार किया था।