नई दिल्ली : पिछले वर्ष विश्व में कारोबार और पर्यावरण के बाद जिस विषय पर सबसे ज्यादा बात हुई वह है मिसाइलों की क्षमता। अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच मिसाइल के स्विच को लेकर बातें हुईं, तो यूरोप में अमेरिका के मिसाइल डिफेंस सिस्टम स्थापित करने से नाटो और रूस के बीच तनाव का वातावरण रहा।
इस बीच, अमेरिकी विशेषज्ञों ने बताया कि उत्तर कोरिया अभी उस स्तर पर नहीं पहुंचा है कि दुनिया में कहीं भी मिसाइल हमला कर सके। वर्तमान में केवल पांच देश ही ऐसे हैं जिनके पास दुनिया के किसी भी हिस्से में मिसाइल हमला करने की क्षमता है। इनमें रूस, अमेरिका, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस हैं।
उत्तर कोरिया ने वर्ष 2017 में ऐसे मिसाइल परीक्षण किए, जो चौंकाने वाले थे। फिर वहां के तानाशाह शासक ने कहा कि उनका देश अमेरिका पर पर भी मिसाइल हमला कर सकता है। उत्तर कोरिया उन देशों में शामिल है, जो मिसाइल हमले की सटीकता और क्षमता बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। इनमें इजरायल, भारत, सऊदी अरब, ईरान, पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया और ताइवान भी शामिल हैं।
मिसाइल कार्यक्रमों पर अध्ययन करने वाले सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ के एसोसिएट डाइरेक्टर इयान विलियम्स कहते हैं- हमारा मानना है कि हम मिसाइलों के नए युग में प्रवेश कर रहे हैं। कई देशों ने जो मिसाइलें तैयार की हैं, वे अप्रचलित प्रौद्योगिकी वाली हैं। उनमें सटीकता कम होती है, जिसके कारण आम नागरिकों की जान खतरे में पड़ती है।
विलियम्स ने कहा, कई देश ऐसे हैं जिन्होंने पिछले दो दशक में सबसे ज्यादा पैसा मिसालों पर खर्च किया है। एशिया और मध्य-पूर्व तो इसके हॉट-स्पॉट हैं। जो देश मिसाइलों पर ज्यादा खर्च करते हैं, उनमें ज्यादातर का उद्देश्य क्षेत्रीय विरोधियों को डराना होता है, लेकिन आज इन हथियारों की होड़ दुनियाभर में फैल चुकी है।
एक बड़ी चिंता मिसाइल टेक्नोलॉजी सुरक्षित करने की है, क्योंकि कई आतंकी समूह इसे हासिल करने की कोशिशों में लगे हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण जानने के लिए पिछले नवंबर की उस घटना को देखना चाहिए जब यमन से चली मिसाइल सऊदी अरब पहुंच गई थी। वह हौथी विद्रोहियों ने चलाई थी। उन्हें शिया उग्रवादी भी कहा जाता है। उन्होंने पिछले तीन वर्ष से यमन के बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है। उन्हें ईरान और लेबनान के उग्रवादी समूह हिजबुल्ला का समर्थन है।
अरब लीग ने हौथी विद्रोहियों पर आरोप लगाया है कि वर्ष 2015 में सऊदी सरकार ने उन्हें खदेड़ने के प्रयास शुरू किए थे, तब से वह दर्जनों मिसाइल हमले कर चुका है। हौथी समूह जो हथियार इस्तेमाल करते हैं, वह स्कड मिसाइलों का वेरिएशन है। स्कड और उसके वेरिएशन दुनिया में इस्तेमाल की जाने वाली मिसाइलों का बहुत साधारण वर्जन है।
ओरिजनल स्कड मिसाइल रूस ने वर्ष 1950 के दशक में व्यापक नुकसान पहुंचाने के इरादे से तैयार की थी। उत्तर कोरिया और ईरान के लिए मिसाइल कार्यक्रम कई मायनों में फायदेमंद साबित हुआ है। उत्तर कोरिया ने जो हथियार तैयार किए, उसके बाद दुनिया को अंदाजा हुआ कि मिसाइलों का विस्तार रोकना कितना मुश्किल काम है।
ऐसे देशों की संख्या बढ़ रही है, जो क्षेत्रीय तनाव के समाधान के लिए मिसाइल टेक्नोलॉजी उन्नत कर रहे हैं। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि वे युद्ध जैसा वातावरण निर्मित कर रहे हैं।
उत्तर कोरिया की मिसाइलों की क्षमता वर्ष 1990 में 1200 किलोमीटर तक थी, वह आज 12,875 किलोमीटर तक पहुंच गई है। यानी आधी दुनिया में हमला करने लायक।
ईरान, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान ने अपने मिसाइल कार्यक्रम को पहले से ज्यादा मजबूत किया है। उनकी प्रौद्योगिकी को देखकर लगता है कि उन्होंने टेक्नोलॉजी एक-दूसरे को शेयर की हैं।
पाकिस्तान ने 1990 के दशक में मिसाइलों पर अधिक पैसा खर्च करना शुरू किया था और माना जाता है कि इसमें उसे चीन का सहयोग प्राप्त है।
भारत आज पाकिस्तान के किसी भी हिस्से और चीन के बड़े क्षेत्र तक कहीं भी मिसाइल हमला कर सकता है। चीन भी भारत के क्षेत्रीय विरोधी कहा जाता है। भारत ने रूस के सहयोग से क्रूज़ मिसाइलों का निर्माण किया है।
सऊदी अरब और इजरायल 1990 के पहले भी ईरान पर मिसाइल हमला करने की क्षमता रखते थे। लेकिन, यहां ईरान ने उसी हमले का जवाब देने की क्षमता हासिल कर ली है।