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म्यांमार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली । भारत और म्यांमार के बीच संबंधों को नई दिशा देने के लिए पीएम मोदी म्यांमार में है। बुधवार को जब वो म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की से मिले तो देश और दुनिया की निगाहें इस बात पर टिकी हुई थीं कि पीएम मोदी रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर क्या कुछ कहते हैं। दोनों देशों की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीएम ने कहा कि म्यांमार की आंतिरक हालात से भारत चिंतित है। इस संबंध में सभी पक्षों को शांतिपूर्वक कोई रास्ता निकालने की कोशिश करनी चाहिए। इससे पहले मंगलवार को पीएम मोदी ने म्यांंमार के राष्ट्रपति को बोधि वृक्ष और सालविन नदी का नक्शा देकर भारत और म्यांमार के ऐतिहासिक रिश्तों पर रोशनी डाली। म्यांमार को गेट-वे ऑफ साउथ-ईस्ट एशिया कहा जाता है। साउथ-ईस्ट एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता है। ऐसे में पीएम मोदी का म्यांमार दौरा न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिहाज से अहम माना जा रहा है, बल्कि चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है।

साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीएम मोदी ने कहा

मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि हमने भारत आने के इच्छुक म्यांमार के सभी नागरिकों को gratis visa देने का निर्णय लिया है।

हमारी डेवलपमेंट पार्टनरशिप के तहत म्यांमार में उच्च कोटि की स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अनुसंधान की सुविधाओं का विकास प्रसन्नता का विषय है।

उत्तरी म्यांमार की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत से हाई स्पीड डीजल ट्रकों द्वारा आना शुरू हो चुका है।

सड़कों और पुलों का निर्माण, उर्जा के लिंक और कनेक्टिविटी बढ़ाने के हमारे प्रयास, एक अच्छे भविष्य की ओर संकेत करते हैं

यह जरूरी है कि हम अपनी लंबी ज़मीनी और समुद्री सीमा पर सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के लिए मिलकर काम करें।

पड़ोसी होने के नाते, सुरक्षा के क्षेत्र में हमारे हित एक जैसे ही हैं।

जेल में बंद 40 कैदियों को भारत छोड़ेगा।

2014 में आसियान समिट के अवसर पर मेरा यहां आना हुआ था, परन्तु स्वर्णिम भूमि म्यांमार की यह मेरी पहली द्विपक्षीय यात्रा है।

आंग सान सू की ने कहा कि म्यांमार ये सुनिश्चित करेगा कि उसकी जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए न हो।

आंग सान सू की से हिंसा रोकने की अपील
रोहिंग्या मुस्लिमों पर हो रहे हमले के देखते हुए इंडोनेशिया, बांग्लादेश और पाकिस्तान ने म्यांमार की नेता आंग सान सू की से हिंसा को रोकने की मांग की है। गौरतलब है कि इस पूरे मामले में चुप्पी के कारण आंग सान की विदेशों में भी आलोचना की जा रही है। दुनिया के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया ने भी म्यांमार के हालात पर चिंता का जाहिर की है। इंडोनेशिया के विदेश मंत्री ने नोबेल पुरस्कार विजेता सू की और म्यांमार के सेना प्रमुख से मुलाकात कर रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे हमलों को रोककर उन्हें जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग की है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के राजनीतिक सलाहकार ने कहा कि इस मामले में भारत समेत सभी आसियान देशों को म्यांमार पर दबाव बनाना होगा। म्यांमार में हो रहे हमलों के बाद लगभग एक लाख पच्चीस हजार रोहिंग्या मुसलमान देश छोड़कर बांग्लादेश भाग गए हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन समेत कुछ अन्य संगठनों का दावा है कि रोहिंग्या मुसलमानों पर हिंसा को सरकार, बौद्ध भिक्षुओं और अति राष्ट्रवादी समूहों का समर्थन है। म्यांमार सरकार ने इन रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया न देते हुए कहा कि सेना राखिन में केवल आतंकवादियों से लड़ रही है। म्यांमार में अब तक 21 गांवों ने अपने को मुसलमानों के लिए प्रतिबंधित घोषित कर दिया है।

रोहिंग्या आर्मी ने म्यांमार में जलाए सैकड़ों घर

अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी ने पिछले दो दिनों में उत्तरी म्यांमार में तीस से ज्यादा पुलिस चौकियों पर हमला किया। इसके साथ ही आक्रोशित भीड़ ने क्षेत्र में सैकड़ों घरों को आग के हवाले कर दिया। म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी को आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है। ध्यान रहे म्यांमार में पुलिस और रोहिंग्या विद्रोहियों की मुठभेड़ में अब तक 13 सुरक्षा बल और 14 आम नागरिक मारे जा चुके हैं। जवाबी कार्रवाई में 400 से ज्यादा बागियों की मौत हुई है।

रोहिंग्या मुसलमानों का इतिहास
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के इतिहास को लेकर विवाद है। रोहिंग्या मुसलमान मुख्य रूप से म्यांमार के अराकान प्रान्त में बसने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिम हैं। इसी इलाके को राखिन के नाम से भी जाना जाता है। यहां इनकी आबादी आठ लाख के आसपास है। रोहिंग्या मुसलमानों दावा करते हैं कि वे यहां सदियों से रह रहे हैं जबकि सरकार और दूसरे जातीय समूह उन्हें विदेशी प्रवासी मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायोग के अनुसार 1982 के नागरिकता कानून ने रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की नागरिकता से वंचित रखा है। यह कानून अंतरराष्ट्रीय कानून के कई मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। रोहिंग्या मुसलमानों के लिए म्यांमार सरकार ने पहचान पत्र जारी कर रखे हैं। इस पहचान पत्र को उन्हें हर समय अपने साथ रखना होता है। यह पहचान पत्र नौकरी के लिए आवेदन करने, किसी दूसरे स्थान पर ठहरने, बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने, टिकट खरीदने, जमीन खरीदने और बेचने जैसे सभी कामों के लिए जरूरी है।

म्यांमार पर अत्याचार का आरोप
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों से जबरदस्ती काम लिया जाता है। आरोप यह भी है कि उन्हें सरकार के लिए कार्य करना आवश्यक है और कार्य करने के बदले में कुछ मिलता भी नहीं है। इन लोगों को अन्य शहरों में काम तलाशने की भी अनुमति नहीं है। इनमें से अधिकांश लोग अकुशल श्रमिक हैं। 1978 में बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश चले गए थे। इसके बाद दिसंबर 1991 से मार्च 1992 तक की अवधि में तकरीबन दो लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश भाग गए थे। रोहिंग्या मुसलमानों के जब तब थाईलैंड और मलेशिया भागने की खबरें आती रहती हैं।

रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर बांग्लादेश और म्यांमार में तनातनी
संयुक्त राष्ट्र ने तीन हजार से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थियों के बांग्लादेश में पहुंचने की पुष्टि की है। इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन संस्था के मुताबिक अब तक 18445 रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में अपना पंजीकरण करा चुके हैं। म्यांमार में सेना की जवाबी कार्रवाई शुरू होने से हालात बेहद खराब हो गए हैं। हजारों की तादात में बांग्लादेश पहुंच रहे रोहिंग्या शरणार्थियों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं। इनमें कई गोली से घायल हैं तो कई बीमार हैं। म्यांमार की सीमा से लगते बांग्लादेश के कॉक्स बाजार के अस्पतालों में इन शरणार्थियों का इलाज चल रहा है। रोहिंग्या शरणार्थियों के आने से बांग्लादेश की समस्याएं बढ़ने लगी हैं।

भारत में 14 हजार रोहिंग्या मुस्लिम
बांग्लादेश की तरह भारत में भी रोहिंग्या शरणार्थी पहले से मौजूद हैं। अब नए शरणार्थियों के आने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। भारत में रोहिंग्या शरणार्थी जम्मू, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, हैदराबाद और राजस्थान में रह रहे हैं। भारत सरकार इनको बांग्लादेश भेजने की तैयारी में है। गृह मंत्रालय ने पिछले महीने जानकारी दी थी कि भारत में रह रहे 14 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों को संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने पंजीकृत किया है। इससे भारत में दशकों से रह रहे बाकी रोहिंग्या शरणार्थी अवैध माने जाएंगे। इसलिए उन सभी अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों को अब बाहर भेजा जाएगा। दरअसल भारत ने संयुक्त राष्ट्र कंवेंशन में शरणार्थियों को लेकर कोई दस्तखत नहीं किए हैं। इसलिए देश में शरणार्थियों पर कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है। फिलहाल इसमें कूटनीतिक स्तर पर बांग्लादेश व म्यांमार से बातचीत जारी है।

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