पटना: मुजफ्फरपुर बालिका घर यों का यौन शोषण किए जाने की पुष्टि होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लिया है। अदालत ने केंद्र, राज्य सरकार, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से इस पर मंगलवार तक जवाब मांगा है। कोर्ट ने मीडिया को निर्देश दिया है कि वह न तो बच्चियों के फोटो धुंधले करके दिखाए, न ही उनके इंटरव्यू ले।
जस्टिस एमबी लोकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह भी कहा कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह का कोई भी वीडियो फुटेज मीडिया में नहीं चलाया जाए। वकील अपर्णा भट्ट को इस मामले की मॉनिटरिंग के आदेश दिए गए हैं। अदालत ने कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है और इसकी पारदर्शिता से जांच होनी चाहिए। किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।
मुंबई की टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की ‘कोशिश’ टीम की सोशल ऑडिट रिपोर्ट में इस मामले का खुलासा हुआ था। 100 पेज की रिपोर्ट 26 मई को बिहार सरकार और जिला प्रशासन को भेजी गई थी। इसके बाद बालिका गृह से 44 किशोरियों को 31 मई को मुक्त कराया गया। इन्हें पटना, मोकामा और मधुबनी के बालिका गृह में भेजा गया। जांच में 34 बच्चियों का यौन शोषण किए जाने की पुष्टि हुई। बालिका गृह का संचालन कर रहे एनजीओ के संचालकों पर बच्चियों से दुष्कर्म करने का आरोप है। मामले में ब्रजेश ठाकुर, बालिका गृह की अधीक्षिका इंदु कुमारी समेत नौ लोगों को जेल भेजा जा चुका है।
बिहार में विपक्षी दलों ने इस मामले में नेताओं की भागीदारी का आरोप लगाया था।
बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 26 जुलाई को केस की सीबीआई जांच कि सिफारिश की थी। विपक्ष की मांग है कि सीबीआई जांच हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में हो