नई दिल्ली । पत्रकारिता या मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। यह इसलिए भी क्योंकि आजादी के बाद पिछले 70 सालों में मीडिया ने आम तौर पर निष्पक्ष और बिना किसी दबाव के काम किया है। इसके लिए मीडियाकर्मियों को सत्ता के शिखर पर बैठे लोगों से दुश्मनी तक मोल लेनी पड़ी। लेकिन पत्रकार न तो किसी तरह के लालच में आए न ही उन्होंने सत्तासीनों और ताकतवर लोगों के आगे घुटने टेके। शायद यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में मीडियाकर्मियों पर लगातार हमले भी होते रहे हैं और मीडियाकर्मियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। इसी कड़ी में बेंगलुरु की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या भी जुड़ गई है। राजनीतिक दल कलम के सिपाहियों की इस तरह हत्या पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने से बाज नहीं आते। राजनीतिक दल दूसरी पार्टी या उसकी सरकार को इस तरह की हत्याओं के लिए जिम्मेदार बताते हुए अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करते हैं। लेकिन ऐसा करते हुए वह भूल जाते हैं कि लोकतंत्र को सजीव बनाने में मीडियाकर्मियों की क्या भूमिका है। कोई भी राजनीतिक दल अपने गिरेबां में झांकने को तैयार नहीं है। मीडियाकर्मियों की प्रायोजित हत्याएं पिछले कई सालों से जारी है, लेकिन लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ को हो रहे नुकसान की शायद ही किसी राजनीतिक दल को परवाह हो। अगर मीडियाकर्मियों की परवाह होती, उनके काम के प्रति सम्मान का भाव होता तो फिर इस तरह की हत्याओं पर राजनीति तो कतई नहीं होती।
गौरी लंकेश की हत्या
गौरी लंकेश पत्रिका की संपादक की 5 सितंबर 2017 (सोमवार और मंगलवार) की दरम्यानी रात उनके ही घर में हत्या कर दी गई। बदमाशों ने उन पर 7 राउंड गोलियां बरसाई थीं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। बेंगलुरु की गौरी एक वरिष्ठ पत्रकार थीं और कई इस पत्रिका के अलावा भी कई अन्य प्रकाशनों की मालकिन थी। एक मानहानि के मामले में वह दोषी पाई गई थीं। गौरी की हत्या के बाद पक्ष-विपक्ष की ओर से इस हत्या की आलोचना तो की गई, लेकिन तुरंत राजनीति भी होने लगी। गौरी लंकेश की हत्या पर भाजपा को निशाने लेते हुए राहुल गांधी ने कहा कि खास विचारधारा को थोपने की कोशिश की जा रही है। लेकिन सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि कुछ लोगों को तथ्यविहीन मुद्दों पर राजनीति करने की आदत पड़ चुकी है। आप को बता दें कि गौरी लंकेश हत्या मामले में इस तरह की खबरें आने लगी कि दक्षिणपंथी संगठनों ने उन्हें धमकी थी। दरअसल इसके पीछे ये आधार बनाया गया कि भाजपा सांसद प्रहलाद जोशी ने गौरी लंकेश पर मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था, जिसमें उन्हें कोर्ट ने दोषी माना था। कर्नाटक सरकार ने पत्रकार हत्याकांड को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए पूरे मामले की जांच एसआइटी को सौंप दी है।
राजदेव रंजन की हत्या
बिहार के सीवान में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के लिए काम करने वाले पत्रकार राजदेव रंजन की भी 13 मई 2016 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। जिस समय राजदेव को गोली मारी गई उस वक्त वह अपने दफ्तर से लौट रहे थे। राजदेव को पूर्व राजद सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ लिखने के लिए जाना जाता था। इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है।
व्यापमं ने ली अक्षय की जान!
देश के प्रमुख हिंदी न्यूज चैनलों में से एक आजतक के विशेष संवाददाता अक्षय सिंह की भी मध्य प्रदेश में झाबुआ के पास मेघनगर में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। 4 जुलाई 2015 को जब उनकी मौत हुई उस समय वह व्यापमं भर्ती घोटाले की कवरेज कर रहे थे। अक्षय की मौत के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है।
संदीप को जिंदा जला दिया गया
मध्य प्रदेश के ही बालाघाट में 19 जून 2015 में एक खोजी पत्रकार संदीप कोठारी का अपहरण कर लिया गया था। संदीप ने गैर कानूनी खनन और जमीन हथियाने के मामलों का खुलासा किया था। संदीप को बदमाशों ने जिंदा जला दिया। बाद में उनका शव महाराष्ट्र के वर्धा के करीब एक खेत में मिला।
जगेंद्र को भी किया गया आग के हवाले
1 जून 2015 में ही उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया। गंभीर रूप से झुलसे जगेंद्र की 8 जून 2015 को मौत हो गई। आरोप है कि कुछ स्थानीय पुलिसकर्मियों और अपराधियों ने उन्हें आग के हवाले कर दिया था। जगेंद्र की हत्या के पीछे भी शक की सुई राजनीतिक शख्सियतों की तरफ ही घूमी। कहा जाता है कि जगेंद्र सिंह ने फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ खबरें लिखी थीं।
तेल माफिया ने ली शंकर की जान
आंध्र प्रदेश के एक वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की 26 नवंबर 2014 को अज्ञात लोगों ने लोहे की रॉड से जमकर पिटायी की। इसके एक दिन बाद शंकर की मौत हो गई। एमवीएन राज्य में तेल माफिया के खिलाफ लगातार खबरें लिख रहे थे। माना जाता है कि तेल माफिया ने ही उनकी हत्या करवाई थी।
तरुण की बेरहमी से हत्या
ओडिशा के एक स्थानीय टीवी चैनल के लिए स्ट्रिंगर के रूप में काम करने वाले पत्रकार तरुण कुमार की 27 मई 2014 को बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी गई। हत्या के वक्त तरुण गंजम जिले में स्थित खल्लीकोटे नगर में अपने घर जा रहे थे। कुछ बदमाशों ने उनकी मोटरसाइकिल को रोका और उनका गला रेत दिया।
राजेश वर्मा की भो गोली लगने से मौत
मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान हिंसा की घटनाओं को कवर करते हुए नेटवर्क 18 के पत्रकार राजेश वर्मा की 7 सितंबर 2013 को गोली लगने से मौत हो गई।
साई रेड्डी की दर्दनाक मौत
6 दिसंबर 2013 को हिंदी दैनिक देशबंधु के पत्रकार साई रेड्डी की छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में 4 या उससे ज्यादा संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या कर दी थी। पुलिस को शक था कि रेड्डी माओवादियों के लिए काम करते हैं, जबकि माओवादी समझते थे कि वह पुलिस के लिए मुखबिरी करते हैं।
नरेंद्र दाभोलकर को गोलियों से भूना
महाराष्ट्र के लेखक नरेंद्र दाभोलकर को 20 अगस्त 2013 को एक मंदिर के सामने बदमाशों ने गोलियों से भून डाला। अंधविश्वास और काले जादू के खिलाफ उन्होंने मुहिम चलायी हुई थी। समाज के प्रति उनके कामों को देखते हुए साल 2014 में उन्हें मरणोप्रांत पद्मश्री से नवाजा गया।
राजेश मिश्रा ने भी गंवाई पत्रकारिता की खातिर जान
मध्य प्रदेश के रीवा में मीडिया राज के रिपोर्टर राजेश मिश्रा की 1 मार्च 2012 को कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी। दरअसल राजेश एक स्थानीय स्कूल में हो रही धांधली की कवरेज कर रहे थे। जिससे नाराज होकर बदमाशों ने उनकी जान ले ली।
अंडरवर्ल्ड ने ली जेडे की जान
मिड डे के मशहूर क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे (जेडे) की 11 जून 2011 को मुंबई में हत्या कर दी गई। पत्रकार जेडे अंडरवर्ल्ड से जुड़ी कई जानकारी जानते थे। बताया जाता है कि जे डे छोटा राजन से जुड़ी कई सनसनीखेज जानकारियों को सार्वजनिक करने वाले थे। छोटा राजन गिरोह का मानना था कि जे डे दाऊद इब्राहिम के राइट हैंड माने जाने वाले छोटा शकील को जानकारी मुहैया करा रहे थे।
राम रहीम के खिलाफ आवाज उठाना रामचंद्र छत्रपति को पड़ा भारी
साध्वियों से दुष्कर्म के मामले में फिलहाल जेल में बंद डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की सिरसा में हत्या कर दी गई। 21 नवंबर 2002 को कुछ लोगों ने छत्रपति के दफ्तर में घुसकर उन्हें गोलियों से भून दिया।