नई दिल्ली- किसी लोन के साथ दी जाने वाली बीमा पॉलिसी को बंद करने से पहले बैंकों की ओर से संबंधित ग्राहक को इसकी व्यक्तिगत सूचना देना जरूरी है। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) ने अपने ताजा आदेश में यह बात कही है। एनसीडीआरसी ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) के खिलाफ एक उपभोक्ता की शिकायत पर सुनवाई करते हुए निचली फोरम के आदेश को बरकरार रखा।
मामला आंध्र प्रदेश निवासी सुरीसेट्टी लक्ष्मी साइ से जुड़ा है। उनके पति वेंकट राव ने 2009 में एसबीआइ से आठ लाख और 5.80 लाख रुपये के दो होम लोन लिए थे। उस समय बैंक ने लोन के साथ उन्हें निशुल्क व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा पॉलिसी भी दी थी। इसके अंतर्गत कर्ज लेने वाले की मौत होने की स्थिति में बैंक ने बीमा की राशि को कर्ज की राशि में समाहित करने की बात कही थी। 26 अक्टूबर, 2013 को एक दुर्घटना में वेंकट राव की मृत्यु हो गई। उनकी मौत के बाद बैंक ने यह कहते हुए बीमा राशि को लोन में समाहित करने से इन्कार कर दिया कि बीमा पॉलिसी एक जुलाई, 2013 को बंद कर दी गई थी। इस संबंध में अखबार में सूचना दी गई थी और इसे बैंक की वेबसाइट पर भी डाल दिया गया था।
उपभोक्ता फोरम ने बैंक की दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि ऐसे मामले में व्यक्तिगत रूप से बीमाधारक को सूचित किया जाना चाहिए। एसबीआइ को बीमा की राशि कर्ज में समाहित करने और कानूनी खर्च के तौर पर 15,000 रुपये अतिरिक्त देने का फैसला सुनाया गया है।
एटीएम फ्रॉड की राशि देनी होगी आइसीआइसीआइ बैंक को: एनसीडीआरसी ने आइसीआइसीआइ बैंक को 2006-07 में एटीएम धोखाधड़ी का शिकार हुए ग्राहक के नुकसान की भरपाई का आदेश दिया है। हरियाणा निवासी करम सिंह को 21 नवंबर, 2006 से दो फरवरी, 2007 के दौरान एटीएम धोखाधड़ी से 207,368 रुपये की चपत लगी थी। इस अवधि के दौरान उसके पास बैंक की ओर से निकासी का कोई एसएमएस नहीं आया। उपभोक्ता आयोग ने कहा कि यह समझ से परे है कि बैंक ने लेनदेन से जुड़ी एसएमएस सेवा बंद क्यों कर दी।