पटना : बिहार में शिक्षकों के समान काम के बदले समान वेतन की मांग पर बीजेपी का बड़ा बयान सामने आया है। बीजेपी के प्रवक्ता व विधान पार्षद नवल किशोर यादव ने नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों की भांति ही समान काम के बदले समान वेतन दिए जाने की सरकार से मांग की है। उन्होंने इस आशय का एक प्रस्ताव भी परिषद के चालू सत्र में डाला था जिसे सभापति और अपने समकक्ष पार्षदों के कहने पर वापिस ले लिया। उन्होंने इस मौके पर कहा कि चुनावी कार्यों से लेकर गांवों में लोटा लेकर शौच के लिए जानेवालों की गिनती यही शिक्षक करते हैं जबकि वेतन दिए जाने के मामलों में सरकार इन शिक्षकों के साथ भेदभाव करती है। भेदभाव की यह नीति अब और नहीं चलेगी।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्याय आदर्शों का ख्याल कर ही उच्च न्यायालय ने शिक्षकों के हित में अपना फैसला दिया है। वैसी स्थिति में उच्च न्यायालय के निर्णय खिलाफ उच्चतम न्यायालय में जाना इस मामले को उलझाने के आलावा और कुछ भी नहीं है। सरकार शिक्षा मामले में अबतक सौ में से निन्यानवे केस हार चुकी है और यह बात मैं नहीं बल्कि पिछला रिकार्ड बताता है कि सरकार केस हारने का रिकार्ड बना चुकी है। बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट में जाने का क्या मतलब हो सकता है ? मसला बुनियादी शिक्षा का हो या फिर संस्कृत शिक्षकों का या फिर अनौपचारिक शिक्षा का सरकार केस हारी है और इस मामले में भी उसकी हार पक्की है।
यादव ने मांग करते हुए कहा कि मुकदमा लड़ने के क्रम में राज्य सरकार कितना खर्च कर चुकी है इसका ब्यौरा उपलब्ध करवाया जाना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि वकीलों को फी के मद में, नौकरशाहों के टीए मद में, उनके हवाई यात्रा मद में, उनके आवासीय व्यवस्था में और खाने – पीने के मद कितना खर्च हुआ और उससे सरकार को फायदा क्या हुआ ? यादव ने कहा कि अबतक सरकार जितना केस लड़ने में खर्च कर चुकी है यदि उसे इन नियोजित शिक्षकों पर खर्च की हुई होती तो उनका कल्याण हो गया रहता और आज इस मसले को लेकर इस सदन में कोई वाद-विवाद नहीं होता।
इसके पूर्व सदन में इस मसले को लेकर हंगामा होता रहा। शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा के जवाब से असंतुष्ट पार्षदों ने हंगामा करना शुरू कर दिया, वैसी स्थिति में आसन से सभापति ने नियमन देते हुए उन्हें बैठाया और तय हुआ कि इस मसले पर विधानपार्षद नवल किशोर यादव, रामबचन राय समेत नीरज कुमार सभापति के साथ अलग से बैठकर कोई नीतिगत निर्णय ले लें। इस बीच यादव ने एक नया प्रस्ताव रखकर सदन को सकते में डाल दिया। उनका कहना था कि सदन तय करे कि सत्ता से जुड़े तमाम विधायक / विधानपार्षद / मंत्री के बच्चे उसी सरकारी विद्यालय में पढ़ेंगे जहां राज्य के आम नागरिकों के बच्चे पढ़ते हैं।