पटना (अमलेश आनंद ) : एक ही व्यक्ति तीन-तीन पद का संभाल रहा दायित्व, सूबे में बॉक्सिंग की बर्बादी की पटकथा लिख रहे हैं बॉक्सिंग एसोसिएशन के सचिव।
बिहार बॉक्सिंग एसोसिएशन के सचिव राजीव कुमार सिंह खेल के प्रति न केवल उदासीन हैं बल्कि वे बिहारी प्रतिभाओं के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं। उनकी उदासीनता के कारण ही नवंबर 2017 में मगध विश्यविद्यालय से चयनित बॉक्सिंग की टीम माकूल परिस्थिति का लाभ नहीं उठा पाई और अफरा-तफरी के माहौल में चंडीगढ़ गई, वो तो अखबार में बात आ गई जिसकी वजह से कुछ लड़कियों को भेजा गया वरना साजिश तो यह थी कि लड़कियों को चंडीगढ़ भेजा ही नहीं जाय।
भारतीय रेल में सीटीआई के पद पर पटना में पदस्थापित राजीव कुमार शायद बिहार के सबसे प्रतिभावान व्यक्ति हैं जिन्होंने सरकारी नौकरी में होते हुए बॉक्सिंग एसोसिएशन के सचिव, बिहार रस्सीकूद एसोसिएशन के अध्यक्ष और बिहार कबड्डी एसोसिएशन टीम के सेलेक्टर हैं। आमतौर पर कोई किसी एक विषय में ही दक्ष होता है, लेकिन राजीव तो एक साथ चार-चार विषय के मास्टर हैं। विश्व में अपने हॉकी के खेल से परचम लहरानेवाले मेजर ध्यानचंद अगर आज जिंदा होते तो उन्हें इस बात का अफसोस जरूर होता कि काश, वे भी राजीव कुमार की तरह प्रतिभा संपन्न होते।
अफसोस यह भी कि न्याय के साथ विकास की यात्रा के घोड़े पर सवार सरकार को भी इस जाल-फरेब से कोई मतलब नहीं। इस बाबत जब राजीव कुमार से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने उल्टे इस प्रतिनिधि से पूछ बैठा कि आप कौन होते हैं पूछने वाले? अब उन्हें यह कौन बताए कि सवाल मीडिया के लोग नहीं पूछेंगे तो फिर कौन पूछेगा? अगर उनसे नहीं पूछे तो कल उन्हीं की आपत्ति होगी कि उनसे उनका मंतव्य भी लेना उचित नहीं समझा गया। रही तहजीब की बात तो इससे उनके बुद्धिजीवी होने का प्रमाण मिलता है।
बातें अपनी जगह है लेकिन एक बात जो महत्व की है वो यह कि राजीव कुमार के रहते बिहार में बॉक्सिंग का भला नहीं हो सकता और न तो जंपरोप का ही। लिहाजा खेल एवं संस्कृति मंत्रालय को इसपर गंभीरता से विचार करना चाहिए। खास बात यह भी क़ि जब प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहते हुए पार्टी के अध्यक्ष नहीं रह सकते तो फिर राजीव कुमार रेलवे में काम करते हुए खेल एसोसिएशन बल्कि कई एसोसिएशनों में पद धारण कैसे कर सकते हैं?