पटना : ऐसा कहा जाता है कि भगवान का द्वार हमेशा सभी के लिए खुला रहता है और वहां सभी को एक ही दृष्टि से देखा जाता है चाहे राजा हो या रंक अमीर गरीब या फकीर। लेकिन बिहार के नालंदा में एक ऐसा माता का मंदिर है जहां नवरात्र की पूजा में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता है। यहां माता की पूजा पुरुष करते हैं और मनवांछित फल प्राप्त करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि नवरात्र के 9 दिनों तक इस मंदिर में तंत्र मंत्र की पूजा की जाती है और आखरी दिन यहां विशेष हवन होता है जिसके बाद महिला माता के दर्शन करती है। विशेष तंत्र-मंत्र की पूजा होने के कारण 9 दिनों तक महिलाएं और बालिकाओं को इस मंदिर से दूर इसलिए रखा जाता है कि आसपास उपस्थित दुष्ट आत्मा उनके शरीर में आसानी से प्रवेश कर जाते है जिससे पूजा विफल हो जाती है ऐसा आज की नहीं बल्कि प्राचीन काल से ही लोगों का मानना है और तब से लेकर आज तक हर साल नवरात्रि में यहां इस तरह का ही विशेष पूजा होती है।इस मंदिर में मां दुर्गा की आशा देवी का मंदिर है।
आशा देवी का मंदिर नालंदा जिले के बिहार शरीफ से 20 किलोमीटर दूरी पर है जहां तंत्र-मंत्र के साथ पूजा होती है जिस पूजा को बाम पूजा कहा जाता है। यहां पूजा करने वाले सभी लोगों को तंत्र की सिद्धियां प्राप्त होती है। तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त होने के कारण यहां कलश स्थापन से लेकर 9 दिनों तक महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है।
महिलाओं के प्रवेश निषेध होने के कारण ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में तंत्र सिद्धि की प्राप्ति होती है और इसके प्राप्ति में महिलाएं बाधक मानी जाती है। नवमी की पूजा होने के बाद यहां निशा पूजा होता है और पशु की बलि दी जाती है। जिसके बाद दशमी की आरती के बाद महिलाओं को माता का दर्शन करने की इजाजत किया जाता है। दूसरी तरफ ऐसा कहा जाता है कि तंत्र सिद्धि के दौरान आस-पास बुरी आत्माओं का प्रवेश रहता है जो महिलाओं को देखते ही उन में समाहित हो जाती है जिससे ना तो तंत्र की सिद्धि प्राप्त होती है और ना ही पूजा की सफलता।
इस मंदिर में आशा देवी की दो मूर्तियों के साथ-साथ शिव पार्वती और भगवान बुद्ध की मूर्तियां है यहां सभी मूर्तियां काले पत्थर की है जो बौद्ध शुक्र और पाल कालीन बताई जाती है। इस मंदिर के जानकारों का कहना है कि 9 वी शताब्दी में व्रज तंत्र ज्ञान और सहज ज्ञान का बहुत तेजी से फैला हुआ था उस समय यह विश्व का सबसे प्रचलित बौद्ध साधना का केंद्र था ।बौद्ध धर्म के धर्मवालंबी सिद्धि के लिए यही साधना करते थे।