पटना : बाल विवाह एक सामाजिक अभिशाप है चाहे वह लड़कियों का हो या लड़के का ऐसा कहा जाता है कि बाल विवाह में लड़कियों को शारीरिक और मानसिक दोनों को शोषण का शिकार होना पड़ता है जहां उसे कच्ची उम्र में ही जिम्मेदारियां सौंप दी जाती है। लेकिन लड़कियों के बाल विवाह को लेकर जबसे जागरूकता अभियान शुरू हुआ है तब से लोगों को जागरुक भी हुए हैं और बाल विवाह में कमी आई है पर अगर आकंड़े पर गौर करें तो बिहार में हर साल लड़कियों के अपेक्षा लड़के की शादी नबालिक अवस्था में हो जाती है। ऐसे मे अब सवाल यह कि लोग लड़कियों के प्रति तो बाल विवाह के प्रति जागरूक हुए हैं लेकिन लड़कों की हालात बिल्कुल वैसे ही है नबालिक अवस्था में शादी होने के बाद जहां लड़कियों को शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार होना पड़ता है वही लड़के भी आर्थिक और मानसिक शोषण का शिकार होते हैं जिंहें खेलने की उम्र में वह सारी जिम्मेदारी दे दी जाती है जिसे पूरा करने में वह लग जाते हैं और सारी जिंदगी उसी में उलझे रहते हैं। पिछले 10 साल से बाल विवाह के खिलाफ अभियान और जागरूकता चलाया जा रहा है। जिसे देखते हुए लड़कियों की संख्या में कमी आई है तो लड़कों की संख्या काफी बढ़ गई है अब नाबालिक लड़के शादी के जोड़े में धड़ल्ले से बंध रहे है।
राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ सर्वेक्षण रिपोर्ट 4 के आंकड़े पर अगर गौर करें तो राज्य में जहां 39.1% लड़कियां बाल विवाह की शिकार हैं, वहीं इस मामले में लड़कों की संख्या 40% है, जो लड़कियों से 0.9% अधिक है।तो राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ सर्वेक्षण-3 के आंकड़ों में बाल विवाह के शिकार होने वाली लड़कियों का आकंडा काफी अधिक था जिसमें जागरुकता के बाद काफी कमी आई है । सर्वेक्षण रिपोर्ट 3 में बाल विवाह का शिकार होने वाले लड़कों की संख्या 39.1% थी, जबकि लड़कियों की संख्या 60.3% थी। इसका कारण विशेषज्ञ मानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रॉप आउट और कम उम्र में पलायन से लड़के पर कम उम्र में ही जिम्मेदारी सौंप दी जाती है क्योंकि गांव वालों का ऐसा मानना है कि जब लड़के नौकरी करने के लिए प्रदेश चले जाते हैं तो वापस लौटने का नाम नहीं लेते हैं इसी कारण उंहें प्रदेश जाने से पहले उनकी शादी करा दी जाती है क्योंकि पत्नी की लालच में वह परदेश से अपने घर आते हैं।
अब अगर इन आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 10 साल में बाल विवाह कानून के खिलाफ चलाए गए जागरुकता अभियान को लेकर जहां लड़कियों में 21.2% की भारी गिरावट आयी, वहीं लड़कों की संख्या 0.9% बढ़ गयी है। वर्ष 2015-16 39.1% लड़कियां तो 40% लड़के बाल विवाह के शिकार हुए हैं वहीं 2005- 6 कि अगर बात करें तो 60.3% लड़कियां और 39.1% लड़के बाल विवाह के शिकार हुए थे। इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और पिछले कई सालों से बाल विवाह के प्रति सक्रिय रहने वाली शाहिना परवीन से जब बात किया गया तो उन्होंने बताया कि इसको लेकर सबसे बड़ी वजह क्या है कि सरकार और संस्थाओं ने बाल विवाह के खिलाफ सिर्फ लड़कियों पर फोकस किया था क्योंकि इस कानून के अंतर्गत लड़के उनके एजेंडे में नहीं थे इसीलिए लड़कियों की संख्या में कमी आई है तो लड़कों का संख्या बढ़ गया है। और यह तभी कम हो सकता है जब बाल विवाह के मुद्दे को स्त्री केंद्रित मानकर नहीं चलते हुए पुरुष की समस्या पर भी ध्यान देना होगा ।
नाबालिग अवस्था में लड़की की शादी होने के बाद बहुत जल्द उनके ऊपर पारिवारिक जिम्मेदारी आ जाती है ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए जहां उनकी पढ़ाई लिखाई पूरी तरह खत्म हो जाती है तो वह रोजगार के लिए मजदूरी करने निकल पड़ते हैं। अब अगर सरकार इस कानून पर अगर लगाम लगाना चाहती है तो लड़कियों के साथ साथ लड़कों के खिलाफ की समाज के लोगों को जागरुक करना होगा क्योंकि बाल विवाह से जितना लड़कियों का शोषण होता है उतना ही लड़कों का। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह लड़ाई आधी अधूरी रह जाएगी ।