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पढ़िए आपके लिए है खुशखबरी, 2016 से पहले किये थे ये काम तो होने वाला है फायदा

taken home loan before april 2016

नई दिल्ली : अप्रैल 2016 से पहले वैसे होम लोन लेनेवालों के लिए राहत की खबर है जिन पर लागू ब्याज दरों को बैंकों ने बाजार दरों के मुताबिक तर्कसंगत नहीं बनाया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने बैंकों को होम लोन पर पुरानी ब्याज दरों को बाजार से जुड़े मौजूदा पैमाने के अनुकूल लाने का निर्देश दिया है।

क्या बदल जाएगा?

रिजर्व बैंक ने बेस रेट को हालिया मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) से जोड़ने के लिए कहा है, जिससे ग्राहकों को ब्याज दर पर बैंकों की मनमानी से मुक्ति मिल जाएगी। हालांकि, रिजर्व बैंक का यह आदेश ऐसे समय में आया है, जिससे बेस रेट से जुड़े ग्राहकों को अधिक ब्याज का भुगतान करना पड़ेगा और उन्हें पिछले साल कम रेट्स का फायदा भी नहीं मिला। 1 अप्रैल से बेस रेट को एमसीएलआर से लिंक कर दिया जाएगा और दोनों में एक साथ बदलाव होंगे।

क्या है इसका मतलब?  

इसका मतलब यह है कि जब बैंक एमसीएलआर में बदलाव करेगा तो उसे कुछ हद तक बेस रेट में भी बदलाव करना होगा। एक साल पहले जनवरी में अधिकतर बैंकों ने एमसीएलआर में 0.80-0.90 पर्सेंट की बड़ी कटौती की थी क्योंकि नोटबंदी के बाद उनके पास कैश काफी बढ़ गया था। हालांकि, उन्होंने तब बेस रेट में कोई बदलाव नहीं किया था। आरबीआई इस बात से चिंतित है कि ज्यादातर लोगों की ब्याज दर अभी भी बेस रेट से जुड़ी हुई है।

पहले क्या था सिस्टम?

2010 के बाद से बैंक बेस रेट के आधार पर कर्ज दे रहे थे। यह ब्याज दर के लिए फ्लोर रेट था, लेकिन एमसीएलआर सिस्टम लागू होने के बाद बैंकों को लोन की मियाद के हिसाब से अलग-अलग ब्याज दर पर कर्ज देने का विकल्प दिया गया। एमसीएलआर रेट में तय समय के अंदर बदलाव नहीं होता है। आरबीआई ने एमसीएलआर सिस्टम इसलिए लागू किया था क्योंकि उसके मुताबिक बैंक पॉलिसी रेट में बदलाव का पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं दे रहे थे।

शिकायतें मिलीं तो RBI ने दिया निर्देश

अप्रैल 2016 से पहले होम लोन्स बेस रेट आधारित रहे थे जिसका एकतरफा निर्धारण बैंक किया करते हैं। जब शिकायतें आने लगीं कि बेस रेट में ब्याज दरें घटने का फायदा नहीं दिखता तो आरबीआई ने फॉर्म्युले पर आधारित मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट (MCLR) लागू किया जो फंड्स की लागत से जुड़ा है। अप्रैल 2016 के बाद से लोन लेनेवालों को एमसीएलआर का फायदा मिल रहा है, लेकिन इसके पहले लोन लेनेवाले बेस रेट के आधार पर ही पेमेंट कर रहे हैं।

MCLR का यह फायदा

बेस रेट खत्म करने के बाद 21 महीनों में वेटेड ऐवरेज लेंडिंग रेट 11.23% से घटकर दिसंबर 2017 में महज 10.26% रह गया। इसका फायदा जिन्हें मिल रहा है, उनमें ज्यादातर वे लोग हैं जिनके लोन पर लागू ब्याज की दर एमसीएलआर से जुड़ी हुई है। ज्यादातर बैंकों ने कॉस्ट ऑफ फंड्स (लोन देने की कुल लागत) के मुताबिक ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया है, लेकिन एसबीआई ने पिछले महीने होम लोन पर ब्याज दर 30 बेसिस पॉइंट्स घटाकर 8.65% प्रतिशत कर दिया।

कैसे तर्कसंगत हो पाएंगे रेट्स?

बैंक ऑफ अमेरिका के भारत में कंट्री हेड नाकु नखाटे ने कहा, ‘एमसीएलआर का बेस रेट से समायोजन का सुझाव लोन बंटवारे में सुधार लाने और लेंडिंग रेट्स कम करने में बहुत मददगार साबित होगा।’ इस कदम की घोषणा करते हुए आरबीआई के डेप्युटी गर्वनर विश्वनाथन ने कहा, ‘हम बेस रेट की गणना को एमसीएलआर से जोड़ रहे हैं।’ हालांकि, यह भी स्पष्ट नहीं है कि आरबीआई बेस रेट को एमसीएलआर के अनुरूप तर्कसंगत कैसे बनाएगा। हालांकि, इतना स्पष्ट है कि बेस रेट से जुड़े लोन भविष्य में एमसीएलआर से जुड़ जाएंगे।

NBFCs भी RBI के लोकपाल के दायरे में 

अपने पॉलिसी स्टेटमेंट में रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि वे 1 अप्रैल 2018 से बेस रेट को एमसीएलआर से लिंक करें। कर्ज लेनेवालों के लिए एक और फायदे की बात यह है कि अब नॉन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनियों को भी आरबीआई के लोकपाल के अंदर ला दिया गया है। इससे लोन लेनेवालों की शिकायतों का निपटारा बिना किसी खर्च के हो सकेगा।

गौरतलब है कि रिजर्व बैंक होम लोन देनेवाली कंपियों को नॉन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनीज (NBFCs) के रूप में रजिस्टर करता है।

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