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पूरे देश में विभिन्न नाम आैर रूप से राखी मनार्इ, महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा तो राजस्थान में रामराखी के नाम से होता है पर्व

पूरे देश में विभिन्न नाम आैर रूप से राखी मनार्इ, महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा तो राजस्थान में रामराखी के नाम से होता है पर्व

उत्तर प्रदेश में श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। सावन में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी या सलूनो भी कहते हैं। इस अवसर पर बहनें अपना सम्पूर्ण प्यार रक्षा सूत्र के रूप में भाई की कलाई पर बांध कर उड़ेल देती हैं। भाई इस अवसर पर कुछ उपहार देकर भविष्य में संकट के समय उसकी सहायता करने का बचन देता है। रक्षाबंधन का त्यौहार सामाजिक सौहार्द का पर्व भी माना जाता है। काफी प्राचीन काल से कर्इ मुस्लिम राजाआें जैसे हुमायुं आैर शाह आलम सानि आदि को राखी बांध कर हिंदु रानियों के रक्षा करने की मांग करने का वर्णन मिलता है।

उत्तरांचल में रक्षाबंधन को श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपनयन कर्म होता है। इस दिन उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके उनको नवीन यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है।इस दिन वृत्तिवान् ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं। अमरनाथ यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन ही पूर्ण होती है। कहते हैं इसी दिन यहां बर्फ के शिवलिंग भी अपना पूर्ण आकार प्राप्त करते हैं। इस उपलक्ष्य में इस दिन अमरनाथ गुफा में प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन भी होता है।

महाराष्ट्र में राखी का त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। इस दिन जल के देवता वरुण को प्रसन्न करने के लिये नारियल अर्पित करने की परम्परा भी है। इस दिन पूजा करने के कारण मुंबई के समुद्र तट नारियल से भर जाते हैं।

राजस्थान में इस दिन रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से थोड़ी अलग होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है आैर यह भगवान को ही बांधी जाती है। वहीं चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बांधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी में गोबर, मिट्टी और भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है, फिर धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा, गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट अर्थात पूजास्थल बनाकर उनकी मन्त्रोच्चार के साथ पूजा की जाती है। इसके बाद उनका तर्पण कर दिया जाता है ताकि पितृॠण चुकाया जा सके। इसके बाद घर आकर हवन किया जाता है, वहीं पर रेशम के डोरे से राखी बनायी जाती है आैर उसको कच्चे दूध से अभिमन्त्रित किया जाता है। यह राखी भगवान को अर्पित करने के बाद ही भोजन किया जाता है।

इन सबसे हट कर दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे तमिलनाडु आैर केरल के साथ ही देश के विभिन्न भागों में रहने वाले दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। इस दिन ये यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मण  नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण करते हैं आैर फिर नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। मान्यता है कि एेसा करके वे बीते वर्ष के पुराने पापों को पुराने जनेऊ की भांति त्याग देते हैं आैर शुद्घ नये यज्ञोपवीत के साथ नया जीवन आरम्भ करने की प्रतिज्ञा लेते हैं। इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 महीनों का वेद अध्ययन भी शुरू करते हैं। इसलिए इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका अर्थ ही होता है नयी शुरुआत। 

श्रीकृष्ण की लीला स्थली ब्रजधाम में भी राखी का त्योहार बड़े उत्साह आैर विधिविधान से मनाया जाता है। सावन मास में हरियाली तीज यानि श्रावण शुक्ल तृतीया से श्रावणी पूर्णिमा तक यहां के मन्दिरों आैर घरों में ठाकुर जी को झूले में विराजित किया जाता है आैर रक्षाबन्धन वाले दिन ये झूला-दर्शन समाप्त होता है।

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