“पूरी जिंदगी में मैंने इतने पुलिस जवान नहीं देखे थे. लोग डरे हुए हैं और मैं भी…”
82 साल की सोमरी मुंडाइन के गांव घाघरा में सन्नाटा पसरा है. पुलिस की डर से लोग गांव छोड़कर भाग चुके हैं.
यहां सिर्फ़ औरतें और बूढ़े लोग बचे हैं, जो गांव में बड़ी संख्या में पुलिस की मौजूदगी से सहमे हुए हैं.
खूंटी के सांसद कड़िया मुंडा के गांव घाघरा में बीते 27 जून को पुलिस और ग्रामीणों के बीच हुई हिंसक झड़प में एक ग्रामीण की मौत गोली लगने से हो गई थी.
पुलिस यहां खूंटी गैंग रेप के अभियुक्तों की तलाश में आई थी.
खूंटी गैंग रेप
खूंटी ज़िले के अड़की थाना क्षेत्र में एक एनजीओ की पांच कार्यकर्ताओं के साथ बीते 19 जून को कथित तौर पर गैंगरेप की वारदात हुई थी.
तब वे कोचांग गांव के स्टाकमैन स्कूल में नुक्कड़ नाटक करने गई थीं. इसके माध्यम से वे मानव तस्करी के ख़िलाफ़ लोगों को जागरुक करना चाह रही थीं.
तभी कुछ लोगों ने उन्हें उनकी ही गाड़ी से अगवा कर लिया था. फिर पास के जंगल में उनके साथ कथित गैंगरेप की वारदात हुई.
इसके बाद गैंगरेप करने वालों ने ही उन्हें उसी स्कूल में लाकर छोड़ दिया. ये पूरा ब्योरा इस मामले में कराई गई दोनों पुलिस रिपोर्ट में दर्ज है.
‘काश छुपा लेते ये बात‘
खूंटी की सोशल एक्टिविस्ट लक्ष्मी बाखला ने पुलिस को इस घटना की जानकारी सबसे पहले दी थी. अब वे भी परेशान हैं क्योंकि पीड़ित महिलाएं उन्हें कोस रही हैं.
वे कहती हैं, “तीन हफ़्ते बीतने को हैं. पीड़िताएं अपने घरवालों से भी नहीं मिल पा रही हैं. सिर्फ एक महिला के भाई की रविवार को उनसे मुलाकात हो सकी, वह भी चंद मिनटों के लिए.”
“कुछ दिन पहले जब मैं उनसे मिली, तो उन सभी ने कहा कि लगता है कि हम ही लोग दोषी हैं. न पुलिस को ये बताया होता, न मुसीबत झेलनी पड़ती.”
“घटना के वक्त उनके साथ रहे लड़के भी परेशान हैं. पुलिस उन्हें बुलाकर पूरे-पूरे दिन बैठा लेती है. अब मुझे भी पीड़िताओं से मिलने से रोका जा रहा है.”
इनमें से कुछ महिलाओं के डिप्रेशन का इलाज भी कराया गया है.
खूंटी के उपायुक्त सूरज कुमार ने मीडिया को बताया कि इनकी चिकित्सा और काउंसिलिंग के लिए रांची के मानसिक आरोग्यशाला के डाक्टर खूंटी बुलाए गए थे.
अब कैसे हैं हालात
खूंटी के एक गांव की ग्रामसभा में मौजूद सौ से अधिक लोग आदिवासियों की स्वशासन व्यवस्था और आजादी के नारे लगा रहे थे.
इन नारों का इस वारदात से कोई वास्ता नहीं होता, अगर पुलिस ये दावा नहीं करती कि गैंगरेप में शामिल लोगों का संबंध आदिवासियों के पत्थलगड़ी अभियान से है.
कोचांग के ग्राम प्रधान काली मुंडा कहते हैं, “पुलिस हमसे सहयोग लेती तो हमलोग रेपिस्ट को खोजने में मदद करते. हमें पुलिस उनकी तस्वीरें तो दिखाए.”
वे कहते हैं, “अब गांव के स्कूल में पुलिस कैंप खोलने की बात हो रही हो तो बच्चे पढ़ेंगे कहां.”
पुलिस की कहानी में ‘गैप्स’
खूंटी मामले की जांच के लिए दिल्ली से यहां आई वीमेन अगेंस्ट सेक्शुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन एंड सेक्शुअल रिप्रेशन (डब्लूएसएस) की फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम ने कहा है कि पुलिस की कहानी में कई गैप्स हैं.
डब्लूएसएस ने सरकार और प्रशासन से सार्वजनिक तौर पर सात सवाल पूछे हैं. जांच टीम में शामिल पूजा ने सवाल किया कि इस मामले को पत्थलगड़ी से कैसे जोड़ा जा सकता है.
पूजा कहती हैं, “जब इस गैंगरेप का वीडियो कथित तौर पर पुलिस के पास है, तो फिर अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमे क्यों किए गए.”
“पुलिस ने रेपिस्ट को पकड़ने के नाम पर घाघरा गांव की ग्रामसभा पर क्यों छापा मारा. वह भी तब जब वहां पत्थलगड़ी महोत्सव चल रहा था.”
“जबकि पुलिस को पता है कि संदिग्ध सरायकेला खरसांवा ज़िले के हैं, न कि घाघरा के. ऐसे कई और सवाल हैं, जिनका जवाब पुलिस को देना चाहिए.”
क्या हुआ था घाघरा गांव में
घाघरा में बीते 27 जून को पुलिस और ग्रामीणों के बीच हुई हिंसक झड़प में एक ग्रामीण की मौत गोली लगने से हो गई थी.
पुलिस आजतक यह पता नहीं लगा सकी है कि उन्हें किसने गोली मारी थी.
ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस ने लाठीचार्ज कर भगदड़ मचाई और फिर गोली मारकर उसकी हत्या कर दी.
भगदड़ के बाद कड़िया मुंडा के आवास की सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस के चार जवानों को ग्रामीणों ने कथित तौर पर बंधक बना लिया जिन्हें दो दिन बाद नाटकीय तरीके से छोड़ दिया गया.
चंद घंटे बाद ही कथित तौर पर उनसे लूटे गए हथियारों की बरामदगी पुआल के एक ढेर से कर ली गई. तब पुलिस ने कहा कि उन्हें एक पर्ची के जरिए वहां हथियार छिपाए जाने की सूचना मिली थी.
झारखंड पुलिस का दावा
हालांकि पुलिस का दावा है वह इस मामले की निष्पक्ष जांच कर रही है.
झारखंड पुलिस के प्रवक्ता और एडीजी आरके मल्लिक ने बीबीसी से कहा कि ”पुलिस ने कोई भी एंगल ख़ुद से न तो जोड़ा है और न इसे छिपाने की कोशिश की है. बची बात पत्थलगड़ी से जोड़ने की तो भुक्तभोगियों ने इस संबंधित बयान कोर्ट में दर्ज कराया है. पुलिस तो उस बयान के आधार पर अपना काम कर रही है.”
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और देश के पूर्व गृह राज्यमंत्री सुबोधकात सहाय के नेतृत्व में विपक्षी दलों की एक टीम ने इस गांव का दौरा करने के बाद खूंटी में प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत की.
विपक्षी नेताओं ने अफ़सरों से कहा कि उन्हें गांव के लोगों को शीघ्र वापस बुलाने की पहल करनी चाहिए ताकि खेती-किसानी के समय वे आराम से अपना काम कर सकें. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो वे खाएंगे क्या.
पुलिस अभी तक सिर्फ़ दो अभियुक्तों को पकड़ सकी है. कई संस्थाएं अपने स्तर से इसकी जांच कर रही हैं. ज़ाहिर है यह मामला आने वाले कुछ और दिनो तक सुर्खियों में बना रह सकता है.
खूंटी गैंगरेप का ‘सच
रेशमा एसोसिएशन फ़ॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशियटिव (आली) की प्रोग्राम को-आर्डिनेटर हैं और इन दिनों खूंटी मामले की जांच में लगी हैं.
वे कहती हैं, “खूंटी गैंगरेप का सच अभी नज़रबंद है. इस कहानी के सभी पात्र कहीं न कहीं फंसे हैं. वैसी जगहों पर हैं, जहां हमारी-आपकी पहुंच नहीं. वहां सिर्फ़ पुलिस पहुंचती है.”
“फिर, अफ़सर हमें एक कहानी बताते हैं. मीडिया उसी कहानी को दिखाता-पढ़ाता और सुनाता है. ऐसे में सच कौन बताएगा. सिविल सोसायटी के सामने या तो आधा-अधूरा सच है, या फिर वह सच के क़रीब ही नहीं है. भारत के इतिहास की यह रेयर घटना होगी जब पीड़ित और अभियुक्त दोनों सिविल सोसायटी की पहुंच से दूर कर दिए गए हैं.”
“गैंगरेप की शिकार महिलाओं को पुलिस ने अपनी निगरानी में रखा है. आप सुरक्षा के नाम पर किसी को कैसे नज़रबंद कर सकते हैं.”
“हमलोग उन्हें लीगल सपोर्ट देना चाहते थे. पुलिस ने हमें उनसे मिलने ही नहीं दिया. उन तक किसी की पहुंच नहीं है. ऐसे में सच कैसे सामने आएगा.”