रविवार की रात. अभी 11 नहीं बजे थे. आईपीएल फ़ाइनल के अति रोमांचक होने की उम्मीद में टीवी सेट से नज़रें गड़ाए और हज़ारों की संख्या में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में बैठे लोगों को बहुत पहले पता चल गया था कि इस बार चेन्नई को चैम्पियन बनने से कोई रोक नहीं सकेगा.
शेन वॉटसन के शतक और अंबाटी रायुडू के विजयी शॉट के बाद स्टेडियम पीला हो चुका था. चेन्नई के खिलाड़ी रेस लगाकर मैदान के बीचों-बीच पहुँच चुके थे.
शेन वॉटसन और रायुडू पर लटकने, उन्हें गले लगाने और उन्हें चूमने का पारंपरिक तरीक़ा अपनाया जा रहा था
लेकिन इन सबसे दूर सात नंबर की जर्सी पहने शांत नज़र आ रहे महेंद्र सिंह धोनी एक किनारे से चलकर हैदराबाद के खिलाड़ियों से मिल रहे थे.
पीले झंडों और पीले पोशाक वाले खिलाड़ियों से दूर धोनी अपने शांत और संयत अंदाज़ में ख़िताबी जीत को उदारता और नम्रता से स्वीकार कर रहे थे.
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धोनी के साथ भी, धोनी के बाद भी
धोनी में कुछ बात तो है
धोनी के इस अंदाज़ को देखने का ये पहला मौक़ा नहीं था. 2007 के टी-20 वर्ल्ड कप की ख़िताबी जीत से लेकर 2011 के विश्व कप तक की जीत को अपने अंदाज़ में मनाने वाले धोनी अपनी तरह के अकेले कप्तान हैं.
हार में उदार, जीत में संयत. खिलाड़ियों का साथ देने वाले, नए-नए प्रयोग करने वाले. शांति से अपनी रणनीति लागू करने वाले, आलोचनाओं की परवाह न करने वाले. कितने गुण गिनाएँगे उनके आप.
मुझे याद है जब 2007 के विश्व कप में भारतीय टीम बुरी तरह हारकर वेस्टइंडीज़ से लौटी थी. सचिन, सौरभ, द्रविड़ और सहवाग जैसे खिलाड़ियों के पोस्टर जलाए जा रहे थे. भारतीय क्रिकेट अपने निराशा के दौर में था.
उसी साल टी-20 का पहला विश्व कप होना था और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को क्रिकेट के इस फ़ॉर्मेट पर सख़्त आपत्ति थी. सीनियर खिलाड़ियों ने इस प्रतियोगिता में खेलने से इनकार कर दिया था.
तब टीम की कमान मिली महेंद्र सिंह धोनी को. उस टूर्नामेंट ने भारतीय क्रिकेट में कैसे जान फूँकी, ये हर क्रिकेट प्रेमी जानता है. क्रिकेट प्रेमी ये भी जानते हैं कि टी-20 का विरोधी भारतीय क्रिकेट बोर्ड आज आईपीएल की बदौलत कैसे विदेशी क्रिकेटरों की पहली पसंद बना हुआ है और कमाई ऐसी कि हर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई से ईर्ष्या करता होगा.
धोनी ने न सिर्फ़ नए खिलाड़ियों की बदौलत ख़िताब जीता, बल्कि निराशा के दौर से भारतीय क्रिकेट को निकाला. अपनी रणनीति पर भरोसा करना, उसे साबित करना धोनी ने दुनिया को दिखाया.
फ़ाइनल में पाकिस्तान एक समय भारत पर भारी पड़ रहा था. लेकिन ऐसे मैच में एक नौसिखिया गेंदबाज़ से आख़िरी ओवर धोनी जैसा कप्तान ही करा सकता था. जोगिंदर शर्मा आज तक वो ओवर नहीं भूले होंगे. कैसे उस ओवर में भारत ने बाज़ी पलटी और फिर नतीजा सबके सामने था.
युवाओं की टीम को पछाड़ दिया
धोनी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. कप्तान के रूप में और खिलाड़ी के रूप में भी. भारतीय क्रिकेट में जब-जब उनके रिटायरमेंट की चर्चा उठी है, धोनी और निखर कर सामने आए हैं.
ये आईपीएल धोनी और चेन्नई सुपरकिंग्स के लिए ख़ास था. दो साल की पाबंदी के बाद चेन्नई की टीम आईपीएल में वापसी कर रही थी. और सवालों के बीच धोनी को ये साबित करना था कि न कप्तानी में और न ही क्रिकेटर के रूप में उनका सूरज अस्त हुआ है.
टी-20 क्रिकेट में जब नए और युवा खिलाड़ियों के लिए बाक़ी की टीमें जान लगा रही थी, वहीं शांत चित्त धोनी दूसरी रणनीति बनाने में व्यस्त थे. कैसे खिलाड़ी उनकी टीम को चैम्पियन बनाएँगे.
आप यक़ीन करें या न करें धोनी की टीम में नौ ऐसे खिलाड़ी थे, जो 30 से ज़्यादा की उम्र के थे. धोनी जानते थे कि फ़िटनेस की बात अपनी जगह है, लेकिन उन्हें अनुभवी खिलाड़ियों की आवश्यकता है.
धोनी ने शेन वॉटसन, अंबाटी रायुडू, डू प्लेसी और भज्जी जैसे खिलाड़ियों पर दांव लगाया. ये उसी रणनीति का हिस्सा था कि धोनी ऐसे खिलाड़ियों पर दांव लगाकर जीत गए और युवा खिलाड़ियों के नाम पर लाखों ख़र्च करने वाली दिल्ली की टीम टांय-टांय फिस्स हो गई.
अगर मुंबई की टीम को इस सीज़न एक फ़ैसला लंबे समय तक दुखी करेगा, वो था अंबाटी रायुडू को छोड़ना. रायुडू ने न सिर्फ़ शानदार बल्लेबाज़ी की, बल्कि कई जीत के वो कर्ता-धर्ता रहे. अपनी टीम की ओर से सबसे ज़्यादा रन भी उन्होंने बनाए.
वॉटसन और रायुडू ने टीम को कई बेहतरीन शुरुआत दी. लेकिन जोड़-घटाव में व्यस्त धोनी ने एकाएक इस जोड़ी को तोड़ दिया. अंबाटी रायुडू को चौथे नंबर पर भेजा जाने लगा.
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बल्लेबाज़ों पर लगाया बड़ा दांव
मैच के उतरार्ध में चेन्नई को निचले क्रम में भी अनुभवी बल्लेबाज़ों की आवश्यकता थी. यानी अगर सलामी बल्लेबाज़ न भी चले तो नीचे एक और स्टार बल्लेबाज़ मौजूद हो. दीपक चहार हों या फिर शार्दुल ठाकुर- सभी धोनी का गुणगान करते नहीं थकते.
धोनी ने कैसे इस सीज़न दीपक चहार को स्टार बना दिया. भले ही दोनों ने रन दिए हों, लेकिन मौक़े-बेमौक़े विकेट चटका कर उन्होंने धोनी को वो तोहफ़ा दिया, जिसे धोनी कभी भूलना नहीं चाहेंगे.
फ़ाइनल के दिन जब टॉस के बाद धोनी से पूछा गया कि उन्होंने गेंदबाज़ी क्यों चुनी, तो धोनी का सधा सा जवाब था- “मैं अपने बल्लेबाज़ों से उम्मीद कर रहा हूँ कि वे दबाव झेलें और प्रदर्शन करके दिखाएँ.”
रणजी में न्यूनतम स्कोर का रिकॉर्ड
धोनी ने अपनी रणनीति का बहुत बड़ा दांव बल्लेबाज़ों पर चला. उन्होंने वॉटसन, रायुडू, रैनी और डू प्लेसी जैसे खिलाड़ियों के सामने चुनौती फेंकी. गेंदबाज़ों को लगा उन्हें भी कुछ कर दिखाना है. 179 रन का लक्ष्य आसान नहीं था. लेकिन सच ये भी है कि धोनी के गेंदबाज़ों ने हैदराबाद को 200 तक नहीं पहुँचने दिया.
अनुभव की बात करने वाले धोनी ने फ़ाइनल में हरभजन को क्यों ड्रॉप कर दिया, ये सवाल भी सब पूछ रहे थे. लेकिन भज्जी की जगह टीम में आए करण शर्मा ने जब ख़तरनाक दिख रहे केन विलियम्सन को पवेलियन भेजा, तो सब जान गए थे कि कप्तान साहब ने क्यों भज्जी को फ़ाइनल में मौक़ा नहीं दिया.
रणनीति तो सभी कप्तान बनाते हैं, लेकिन रणनीति को अमली जामा पहनाना कोई धोनी से सीखे.
एक बार जब पत्रकारों ने धोनी से ये पूछा कि वो भज्जी को टीम में रखकर भी उनसे कई बार कम गेंदबाज़ी क्यों कराते हैं, इस पर धोनी का जवाब था- “मेरे पास कई कार और बाइक हैं, लेकिन मैं सबकी सवारी एक साथ नहीं करता. जब और जैसे जिसकी ज़रूरत होती है, उसका इस्तेमाल होता है.”
जब सारी टीमें करोड़ों रुपयों में अपने स्ट्राइक बॉलर्स को ख़रीद रही थी, धोनी ने दक्षिण अफ़्रीका के युवा गेंदबाज़ एंगिडी पर दाँव खेला और किसी को बताने की ज़रूरत नहीं कि एंगिडी ने चेन्नई के लिए क्या शानदार प्रदर्शन किया.
मैच समाप्त होने के बाद कमेंटेटर धोनी की धमक का गुणगान करने में व्यस्त थे. स्टेडियम में धोनी-धोनी के नारे लग रहे थे.
शेन वॉटसन हों या डू प्लेसी या फिर नए उभरते हुए सितारे- सभी एक सुर में कह रहे थे कि धोनी का साथ और समर्थन उनके लिए जीवनदान की तरह था.
क्रिकेट में धोनी का योगदान याद किया जाएगा
ये बात किसी से छिपी नहीं है कि सौरभ गांगुली के बाद किसी ने भारतीय क्रिकेट को नई-नई प्रतिभाएँ देने में अपना जी-जान लगा दिया हो, वो धोनी ही हैं.
विराट कोहली हों, रवींद्र जडेजा हों, आर अश्विन हों या रोहित शर्मा या कई और खिलाड़ी- धोनी ने इन सब क्रिकेटरों को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के गुर सिखाए हैं, उन्हें तैयार किया है.
झारखंड जैसे पिछड़े राज्य से आने वाले धोनी ने दिखाया है क्रिकेट और क्रिकेटर मुंबई, दिल्ली और चेन्नई के अलावा भी अन्य शहरों में भी बसते हैं और अच्छा भी करते हैं.
गांगुली से सीखते हुए क्रिकेट की नई परिभाषा को गढ़ने वाले धोनी का योगदान इस कारण भी अद्वितीय है. कप्तान के रूप में धोनी ने भारतीय क्रिकेट को क्या दिया है, ये किसी से छिपी हुई बात नहीं है.
धोनी का मैदान पर होना किसी भी टीम के लिए इतना बड़ा फ़ायदा है, ये अब टीम की कप्तानी कर रहे विराट कोहली कई बार कह चुके हैं.
भारतीय क्रिकेट भाग्यशाली रहा है कि हर दौर में उसे कोई न कोई स्टार खिलाड़ी मिला है. सुनील गावस्कर से पहले भी और बाद में भी, सचिन से पहले भी और बाद में भी ये दौर आता रहा है. विराट कोहली से पहले भी और बाद में भी ये दौर रहेगा.
लेकिन धोनी का दौर एक ऐसा यादगार दौर रहेगा, जहाँ भारतीय क्रिकेट को असली सफलता मिली. टीम ने सफलता का स्वाद चखा, सिर्फ़ एक खिलाड़ी ने नहीं. धोनी की यही कामयाबी उन्हें बाक़ी स्टार क्रिकेटरों से अलग करती है.
चेन्नई की टीम आईपीएल में तीसरे ख़िताब का जश्न मना रही थी. कप्तान धोनी को ख़िताबी ट्रॉफ़ी मिलती है. तभी चेन्नई के खिलाड़ियों का हुजूम मंच पर आ जाता है. जीत में उछलते-कूदते चेन्नई के खिलाड़ी मस्त हैं. ट्रॉफी धोनी के हाथ से खिलाड़ियों के हाथ में आ गई है.
लंबे समय तक कैमरे के फ्रेम से धोनी ग़ायब हैं. फिर धोनी दिखते हैं झूमते और मदमस्त खिलाड़ियों के पीछे अपनी बेटी जीवा के साथ. शांत और संयमित जीवा से ठिठोली करते महेंद्र सिंह धोनी. यही है इस लीडर की सफलता की असली कहानी, जीत का उसका मंत्र.
ख़ाली होते स्टेडियम में बच गए फ़ैन्स के हाथों में धोनी के बड़े-बड़े पोस्टर हैं. उनकी आवाज़ अब मद्धम पड़ने लगी है.
लेकिन क्रिकेट और कप्तान के रूप में धोनी के उपलब्धियों की लौ इतनी जल्दी मद्धम नहीं पड़ने वाली.