केरल में हालिया बाढ़ के प्रकोप ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर हम यूं ही पर्यावरण से खिलवाड़ करते रहे तो स्थिति भयावह हो सकती है। मुंबई और दिल्ली समेत अन्य महानगरों में मूसलाधार बारिश से होने वाले भीषण जलजमाव और उससे उत्पन्न होने वाली परेशानियों से हम सभी वाकिफ हैं। जाहिर है प्रकृति स्पष्ट संदेश दे रही है कि उससे खिलवाड़ हुआ तो परिणाम कुछ इसी रूप में सामने आएंगे। पठारी क्षेत्र होने के बावजूद रांची में शनिवार को हुई इस मानसून की सबसे तेज बारिश ने शहर के कई निचले हिस्सों को तो डुबो ही दिया, रिहायशी इलाके भी इससे अछूते नहीं रह सके।
शहर के सबसे बडे़ वाणिज्यक क्षेत्रों में शुमार महात्मा गांधी मार्ग की दुर्गति को शब्दों में बयां करना मुश्किल है। जलजमाव की वजह से बड़ी संख्या में गाड़ियां जहां-तहां फंस गई, दुकानों में गंदगी तैरने लगी। पूरा शहर घंटों अस्त-व्यस्त रहा।
कहने को झारखंड के शहरों को महानगरीय सुविधा प्रदान किए जाने से संबंधित दावे किए जाते हैं जबकि हकीकत यह है कि राजधानी रांची तक संवर नहीं पाया है। बुनियादी सुविधाओं के राष्ट्रीय बेंचमार्क पर राजधानी कहीं नहीं टिक रही है। आज भी शहर की 75 फीसद गलियां नाली विहीन हैं।
न तो वैज्ञानिक तरीके से कचरे का निपटारा हो रहा है, न ही उसकी रि-साइक्लिंग हो रही है। ठोस कचरा प्रबंधन महज 18.30 फीसद आबादी तक ही सीमित है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत बड़ी संख्या में शौचालय तो बनवा दिए गए, परंतु 2005 से ही सीवरेज-ड्रेनेज निर्माण की योजना झंझावतों में झूल रही है।
लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व ही राज्य में पॉलीथिन के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया, परंतु आज भी चोरी छिपे ही सही, इसका धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है। शहरी जल प्रबंधन के विशेषज्ञों की मानें तो चाहे घर से निकलने वाले बेकार पानी की बात हो अथवा बारिश से होने वाले जलजमाव का मसला, पालीथिन इसका सबसे बड़ा कारण है।
जबतक सरकारी महकमा इमानदारी के साथ इस गंभीर मसले पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी, स्थिति की भयावहता घटने के बजाए बढ़ेगी। इस स्थिति से निपटने के कई चेक प्वाइंट तैयार करने होंगे। आम जनता की सहभागिता भी सुनिश्चित करनी होगी।